पटना (एक्सपर्ट मीडिया न्यूज)। बिहार में संवैधानिक पद पर बैठे राज्यपाल राजेंद्र आर्लेकर और प्रशासनिक महकमे में शिक्षा विभाग के अपर मुख्य सचिव केके पाठक के बीच तनातनी कम नहीं हो रहा है।
एक तरफ मुख्य अपर सचिव केके पाठक कुलपति, सचिव, रजिस्टार आदि की लगातार बैठकें बुलाते रहे हैं। तो वहीं राजभवन उनकी बैठकों में शामिल होने से विश्वविद्यालय के अधिकारियों को सीधे मना करता रहा है।
नतीजतन मुख्य अपर सचिव की बुलाई तीन बैठकों में विश्वविद्यालय से कोई नहीं पहुंचा है। फिर भी केके पाठक ने हार नहीं मानी है और उन्होंने चौथी बार फिर बैठक बुलाई है।
इस बैठक में भी शायद ही कोई शामिल हो, क्योंकि राज्यपाल ने विश्वविद्यालय अधिकारियों को केके पाठक की बुलाई किसी बैठक में जाने से मना कर दिया है। नाराज होकर अपर मुख्य सचिव ने दूसरी बार इन अधिकारियों के वेतन पर रोक लगा दी है।
एक बार तो पाठक ने विश्विद्यालयों के बैंक खातों के संचालन पर भी रोक लगा दी थी। एफआईआर तक का आदेश दे दिया था। हालांकि बाद में उसे वापस ले लिया।
केके पाठक का बार-बार बैठक बुलाने का कारणः दरअसल सीएम नीतीश कुमार ने केके पाठक को शिक्षा विभाग का अपर मुख्य सचिव बना कर उन्हें बिहार की बेपटरी हुई शिक्षा व्यवस्था को पटरी पर लाने का जिम्मा दिया है।
प्राथमिक से लेकर उच्च विद्यालयों तक को सुधारने के पाठक ने अब तक जो प्रयत्न किए हैं, उसका अच्छे नजीते भी सामने आए है। उससे उत्साहित होकर उन्होंने विश्वविद्यालयों को भी सुधारने की ठानी है।
बिहार में छात्रों की यह शिकायत आम है कि समय पर परीक्षाएं नहीं होतीं है। परीक्षा फल विलंब से जारी होते हैं। इससे छात्रों को भारी परेशानी का सामना करना पड़ता है। प्रतियोगी परीक्षाओं को पास करने और नौकरी के लिए चयनित होकर भी छात्र परीक्षा फल समय पर नहीं मिलने के कारण अवसर से वंचित हो जाते हैं।
समय पर परीक्षाएं हों और परिणाम जारी हो जाएं, इसी संदर्भ में केके पाठक विश्वविद्यालयों के कुलपति, सचिव और परीक्षा नियंत्रकों के साथ बैठक करना चाहते हैं। वे इसके लिए कैलेंडर बनाना चाहते हैं, ताकि सब कुछ समय पर सुनिश्चित किया जा सके।
आखिर बैठक से मना क्यों कर रहे हैं राज्यपालः राजभवन का कहना है कि विश्वविद्यालय अधिनियम के मुताबिक विश्वविद्यालयों के अधिकारियों की बैठक बुलाने का अधिकार सिर्फ राज्यपाल को है। संवैधानिक प्रमुख होने के नाते राज्यपाल विश्वविद्यालयों के कुलाधिपति होते हैं। प्रशानिक महकमे का कोई अधिकारी इनकी बैठक नहीं बुला सकता। इस जिच में राजभवन वीसी और अन्य विश्वाविद्यालय के अधिकारियों को बैठक में जाने से मना करता रहा है।
नतीजतन अपर मुख्य सचिव ने तीन बार बैठक बुलाई, लेकिन राज्यपाल की मनाही के बाद बैठक में कोई शामिल नहीं हुआ। पहली बैठक 28 फरवरी को बुलाई गई थी। दूसरी बार नौ मार्च और तीसरी बार 15 मार्च को केके पाठक ने बैठक बुलाई। बैठक में कोई नहीं पहुंचा।
कुलपतियों ने इस बाबत राजभवन से सलाह मांगी तो वहां से उन्हें बैठक में जाने से साफ मना कर दिया गया। अब चौथी बार केके पाठक ने बैठक बुलाई है। हालाकि इससे पहले ही राजभवन ने 20 मार्च को सभी कुलपतियों की बैठक बुलाई है। इसमें केके पाठक को भी हाजिर होने को कहा गया है।
राजभवन ने मुख्य अपर सचिव की बैठक में जाने से सीधे रोकाः पहली बार 28 फरवरी को शिक्षा विभाग ने विश्वविद्यालय अधिकारियों की बैठक बुलाई थी। राजभवन ने बिना उसकी अनुमति के बैठक में भाग लेने से मना कर दिया।
इस तरह चार बैठकें मुख्य अपर सचिव ने बुलाई, पर कोई नहीं पहुंचा। नाराज होकर मुख्य अपर सचिव ने उनके वेतन रोक दिए। एफआईआर करा दी।
मुख्य अपर सचिव और राजभवन के बीच तनातनी इतनी बढ़ गई कि तत्कालीन शिक्षा मंत्री विजय चौधरी और डेप्युटी सीएम सम्राट चौधरी को हस्तक्षेप करना पड़ा। वे राजभवन गए। बैठक हुई। फिर वेतन भुगतान से रोक हटाई गई।
अब तो कुलाधिपति के नाते राज्यपाल ने ही 20 मार्च को बैठक बुला ली है। इस बैठक में कुलपतियों के अलावा मुख्य अपर सचिव को भी हाजिर रहने के लिए कहा गया है।
20 मार्च को केके पाठक राजभवन तलबः राजभवन ने 20 मार्च को बुलाई बैठक में केके पाठक को भी तलब किया है। अब देखना है कि केके पाठक राजभवन की ओर से बुलाई बैठक में शामिल होते हैं कि नहीं?
दरअसल राजभवन विश्विद्यालय अधिनियम के तहत विश्वविद्यालयों के कार्यों में दूसरे किसी की दखल नहीं चाहता है। केके पाठक प्रशासी अधिकारी के नाते बैठक बुलाना अपना अधिकार मानते हैं।
हालांकि जिस मकसद से पाठक बैठक बुलाना चाहते हैं, वह वाकई चिंता का विषय है। संभव है कि राजभवन की बैठक में समस्या का कोई समाधान निकल आए।
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