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      आरबीआई को आशंका, सुरसा की तरह अभी और बढ़ेगी मंहगाई, नहीं बन रहा मुद्दा

      इंडिया न्यूज रिपोर्टर डेस्क। भारत देश में मंहगाई सुरसा के मुंह जैसी बढ़ती जा रही है यह मुहावरा 70 के दशक से ही विपक्ष में रहने वाले दलों के द्वारा उपयोग में लाया जाता रहा है। मंहगाई आज जिस चरम पर दिख रही है वह वास्तव में चिंता की बात ही मानी जा सकती है। निम्न मध्यम वर्ग अर्थात लोअर मिडिल क्लास एवं निम्न वर्ग अर्थात लोअर क्लास पर इसका सबसे ज्यादा असर पड़ रहा है।

      भारत को विकासशील देश माना जाता है, और भारत में जिस तेज गति से महंगाई का ग्राफ बढ़ रहा है वह सिर्फ चिंताजनक ही नहीं दुखद भी माना जा सकता है।

      एक आंकलन के अनुसार देश में लगभग एक चौथाई अर्थात 32 करोड़ लोग गरीब माने जा सकते हैं। इसके अलावा लगभग इतने ही निम्न मध्यम वर्ग के माने जा सकते हैं।

      इस लिहाज से लगभग 64 करोड़ लोगों पर मंहगाई का असर सीधे सीधे ही पड़ता दिख रहा है। अर्थात देश की आधी आबादी मंहगाई से जूझ रही है और विपक्ष इसे मुद्दा बनाने में असफल ही प्रतीत हो रहा है।

      उधर, सरकार की मानें तो सरकार के द्वारा देश में 80 करोड़ लोगों को निशुल्क अनाज योजना के लिए पात्र माना है। इस लिहाज से शेष बचे महज 50 करोड़ लोग ही इस श्रेणी में आते हैं जिन पर मंहगाई का असर नहीं हो रहा है।

      पचास करोड़ लोगों में आधे सरकारी कर्मचारी होंगे और ज्यादातर मध्यम वर्गीय लोग। इसके बाद बचते हैं लगभग दस लाख लोग जिनकी आय में दिन दूनी रात चौगनी बढ़ोत्तरी दर्ज की गई है।

      इस तरह के दस लाख लोगों के हाथ में ही देश की अर्थ व्यवस्था की कमान मानी जा सकती है। इन दस लाख लोगों में नेताओं की तादाद भी ज्यादा हो सकती है, संभवतः यही कारण है कि मंहगाई बढ़ती जा रही है पर इसे देशव्यापी मुद्दा अभी तक नहीं बनाया जा सका है।

      मंहगाई के खिलाफ कोई भी राजनैतिक पार्टी खुलकर मैदान में नहीं दिख रही है। सड़कों पर जो आंदोलन हो रहे हैं, वे महज रस्म अदायगी के लिए ही माने जा सकते हैं।

      मंहगाई बढ़ने का एक कारण कोविड जैसी महामारी वाली आपदा को भी माना जा सकता है। पिछले साल की आखिरी तिमाही से ही मंहागाई के समाधान की मांग हो रही है, पर यह मांग उस तरह बुलंद नहीं है।

      कहा जा रहा है कि कोविड के चलते बुरी तरह छिन्न भिन्न हो चुकी अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए मंहगाई को एक सोची समझी रणनीति के तहत बढ़ने के मार्ग प्रशस्त ही किए गए हैं।

      देश में शायद ही कोई ऐसा राज्य बचा हो जहां मंहगाई न बढ़ रही हो। देखा जाए तो झारखण्ड, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश आदि राज्यों में मंहगाई बहुत ज्यादा बढ़ चुकी है। देश का हृदय प्रदेश तो मंहगाई के मामले में पहली पायदान पर ही है।

      सरकारी कर्मचारियों को तो वेतन भत्ते बढ़ाकर सरकार उन्हें राहत दे देती है पर रोज कमाने खाने वालों के लिए सरकार के क्या प्रयास हैं! जाहिर है मंहगाई की असली मार इन्हीं पर पड़ती है और सरकार समझती है कि सरकारी नुमाईंदों के वेतन भत्ते बढ़ाकर मंहगाई में राहत प्रदान कर दी गई है।

      मंहगाई की वैश्विक रेटिंग करने वाली एजेंसी एस एण्ड पी के द्वारा भारत की विकास दर को 7.8 से घटाकर 7.3 पर ला दिया है। इस एजेंसी का अनुमान है कि चालू वित्त वर्ष में मुद्रा स्फीति 6.9 प्रतिशत रह सकती है।

      रूस यूक्रेन युद्ध से भी महंगाई बढ़ रही है, पर आम जनता को इससे क्या लेना देना! जनता तो मंहगाई कम होने की रास्ता ही देख रही है। एक दशक पहले 25 पैसे का सिक्का चलन से बाहर हो गया, अब पचास पैसा तो छोड़िए एक रूपए भी कोई लेता नहीं दिखता।

      प्रौढ़ हो रही पीढ़ी इस बात की गवाह है कि पांच पैसे का जेब खर्च बच्चों को एक सप्ताह के लिए दिया जाता था। आज पांच रूपए का मूल्य क्या रह गया है! बाजार में जो भी चीजें मिल रहीं हैं उनके दामों में बेतहाशा बढ़ोत्तरी दर्ज की गई है। दवाओं के दामों में तीस फीसदी इजाफा हो चुका है। सरकार को इस मामले में विचार करना होगा।

      साथ ही विपक्ष को भी जनता की इस दुखती रग पर हाथ रखना होगा। सभी को मिलकर कुछ इस तरह के प्रयास करने होंगे कि मंहगाई के दानव पर अंकुश लगाया जा सके। इसके लिए शुरूआत प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्रियों, मंत्रियों, सांसदों, विधायकों, सरकारी कर्मचारियों की सुविधाओं में कटौती से ही आरंभ कर सरकार को नजीर पेश करना चाहिए।

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