रांची (एक्सपर्ट मीडिया न्यूज)। राजनीति भावनाओं का खेल है या कार्यकर्ताओं का अंर्तमेल है। इसे रांची के सांसद रामटहल चौधरी सरीखे अनुभवी बेहतर समझते हैं। मोदी सरकार के दो साल को लेकर उनके घर-आंगन ओरमांझी एसएस हाई स्कूल मैदान में विकास पर्व का आयोजन हुआ।
इसमें पूर्व प्रचार के बाबजूद सीएम और प्रदेश अध्यक्ष ताला मरांडी शरीक नहीं हुये। वे क्यों नहीं हुये। अंदरुनी तौर पर क्या कारण रहे, यह अलग बात है। लेकिन कार्यकर्ताओं के बीच इसका अच्छा संदेश नहीं गया।
हालांकि, राजनीतिक विश्लेषक इसे सांसद के लिये एक सबक मानते हैं। इस बार सांसद बनने के बाद श्री चौधरी ने उन लोगों को अधिक तरजीह दिया, जिनकी गांव-जेवार पर कोई पकड़ नहीं है। जो कभी भाजपा के परोक्ष-अपरोक्ष कार्यकर्ता भी न रहे, उसे सांसद प्रतिनिधि तक बना दिया गया। आम सक्रिय कार्यकर्ताओं की उपेक्षा कर एक विश्वसनीय टीम बनाने में जुट गये। उधर येन केन प्रक्रेरेण अचानक जिला भाजपा ग्रामीण अध्यक्ष बन कर सबको चौंका देने वाले ने पूरी कर दी।
जिला भाजपा के ग्रामीण मंडलों पर खुद के विश्वसनीय लोगों बैठाने के प्रयास किये। कहीं-कहीं तो आम चुनाव में विजयी सक्रिय कार्यकर्ताओं की जगह वैसे लोगों को मंडल अध्यक्ष मनोनित कर डाले, जो कभी पार्टी या चुनावी गतिविधियों में शामिल न रहे और न ही उनकी आम जन मानस पर कोई पकड़ रही।
इसका नतीजा सामने है। सक्रिय कार्यकर्ता विकास पर्व के ऐन पूर्व गौण हो गये और मैदान खाली रह गया। अगर स्कूली बच्चे-बच्चियों और माननीयों के साथ आये खासमखास लोगों को भीड़ से अलग कर दिया जाये तो आकड़ा हजार भी पार न होगी। अब दौर बदल चुका है। अब जाति की नहीं, जमात की बात होती है। खास लोग आम नहीं होते बल्कि आम लोग खास होते हैं।
कम से कम राजनीति में संभावना तलाश रहे लोगों को इसे भलि-भांति समझनी चाहिये कि सबका साथ, सबका विकास की रणनीति ही उनके भविष्य के लिये बेहतर होगी। क्योंकि आज का समाज इतना जागरुक अवश्य हो उठा है कि वह राजनीति का विश्लेषण नेताओं से अधिक और अच्छी ढंग से करने की क्षमता रखती है।
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