पटना (एक्सपर्ट मीडिया न्यूज)। इस साल के गणतंत्र दिवस पर बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने 19 साल पुरानी परंपरा को तोड़ते हुए सियासी हलचल मचा दी। दिलचस्प बात यह है कि यह परंपरा खुद नीतीश कुमार ने ही शुरू की थी। 2005 में बिहार की सत्ता में आने के बाद उन्होंने स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस पर गांधी मैदान में झंडा फहराने के बाद महादलित टोले में जाकर वहां के लोगों के बीच समारोह आयोजित करने की परंपरा डाली थी। लेकिन इस बार नीतीश कुमार ने उस परंपरा को न सिर्फ नजरअंदाज किया, बल्कि इसके लिए महुली गांव के महादलित टोले में जाने की योजना भी रद्द कर दी।
गणतंत्र दिवस पर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की अनुपस्थिति के कारण राजनीतिक हलकों में तरह-तरह की चर्चाएँ उठ रही हैं। हालांकि वे पटना के गांधी मैदान में हुए मुख्य झंडा रोहण समारोह में मौजूद थे। लेकिन इसके बाद सीधे अपने आवास लौट गए। उनके बजाय बिहार सरकार के मंत्री विजय चौधरी ने महुली गांव के महादलित टोले में झंडोत्तोलन की रस्म अदा की और इस दौरान बुजुर्ग सुभाष रविदास ने वहां झंडोत्तोलन किया।
यह बदलाव सियासी हलकों में कई सवाल खड़े कर रहा है। क्या नीतीश कुमार भाजपा की ओर झुके हैं या फिर उन्होंने खुद को अपने पुराने दृष्टिकोण से बाहर निकालते हुए नई दिशा में कदम बढ़ाया है? इस बदलाव के बाद यह भी देखा गया कि नीतीश कुमार के करीबी सहयोगी और डिप्टी मुख्यमंत्री सम्राट चौधरी भी महुली गांव में आयोजित समारोह में शामिल नहीं हुए। जबकि वे पटना के प्रभारी मंत्री हैं।
कुछ दिनों पहले 20-21 जनवरी को पटना में हुए एक महत्वपूर्ण सम्मेलन में भी नीतीश कुमार ने भाग नहीं लिया, जिसमें देश भर के विधानसभा अध्यक्ष और लोकसभा अध्यक्ष भी मौजूद थे। इसके अलावा 24 फरवरी को कर्पूरी जयंती के अवसर पर भी उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के पटना दौरे पर नीतीश कुमार अनुपस्थित रहे। जब कर्पूरी ठाकुर के पैतृक गांव में केंद्रीय कृषि मंत्री और उपराष्ट्रपति के साथ कार्यक्रम आयोजित था, नीतीश कुमार सिर्फ फूल-माला चढ़ाकर वापस लौट आए।
इन घटनाओं ने बिहार की राजनीति में हलचल पैदा कर दी है। क्या ये बदलाव भाजपा के बढ़ते प्रभाव की वजह से हो रहे हैं या फिर नीतीश कुमार खुद को राजनीतिक परिपाटी से अलग करते हुए नए विचारों की ओर बढ़ रहे हैं। यह देखना दिलचस्प होगा।
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