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National Education Policy-1986: डिग्री कॉलेजों से इंटर की पढ़ाई खत्म, नया दौर शुरु

पटना (एक्सपर्ट मीडिया न्यूज)। बिहार में शिक्षा के क्षेत्र में एक बड़ा बदलाव (National Education Policy-1986) देखने को मिल रहा है। राज्य के डिग्री कॉलेजों में अब इंटरमीडिएट (11वीं और 12वीं कक्षा) की पढ़ाई पूरी तरह से बंद हो चुकी है। शैक्षिक सत्र 2025-2027 से डिग्री कॉलेजों में इंटरमीडिएट की कक्षाएं संचालित नहीं होंगी। यह बदलाव राष्ट्रीय शिक्षा नीति-1986 के तहत शुरू की गई व्यवस्था का परिणाम है। जिसके तहत इंटरमीडिएट शिक्षा को डिग्री कॉलेजों से अलग कर स्कूलों और विशेष इंटरमीडिएट कॉलेजों में स्थानांतरित किया गया है।

पिछले कुछ वर्षों से यह बदलाव धीरे-धीरे लागू हो रहा था। शैक्षिक सत्र 2024-2026 के तहत 11वीं कक्षा में डिग्री कॉलेजों में नामांकन की प्रक्रिया पिछले साल ही बंद कर दी गई थी। उस दौरान केवल 12वीं कक्षा के छात्र-छात्राएं शैक्षिक सत्र 2023-2025 का हिस्सा थे, वे डिग्री कॉलेजों में पढ़ाई कर रहे थे। 25 फरवरी, 2025 को इस सत्र का इंटरमीडिएट रिजल्ट जारी होने के साथ ही डिग्री कॉलेजों में इंटरमीडिएट की पढ़ाई का इतिहास अब पूरी तरह समाप्त हो गया है।

शिक्षा विभाग के आंकड़ों के अनुसार बिहार में कुल 537 डिग्री कॉलेज हैं। जिनमें 266 अंगीभूत महाविद्यालय और 271 संबद्ध डिग्री महाविद्यालय शामिल हैं। इन सभी कॉलेजों में अब केवल स्नातक और उससे ऊपर की पढ़ाई होगी।

अब कहां होगी इंटरमीडिएट की पढ़ाई? बिहार विद्यालय परीक्षा समिति के अध्यक्ष आनंद किशोर ने शनिवार को जानकारी दी कि राज्य में अब इंटरमीडिएट की पढ़ाई केवल उच्च माध्यमिक विद्यालयों और इंटरमीडिएट कॉलेजों तक सीमित होगी।

नए शैक्षिक सत्र से 1,006 उच्च माध्यमिक विद्यालयों और इंटरमीडिएट कॉलेजों में 11वीं कक्षा में छात्र-छात्राओं का नामांकन शुरू होगा। इनमें कुछ संबद्ध डिग्री महाविद्यालय भी शामिल हैं, जहां इंटरमीडिएट खंड को पूरी तरह से अलग कर दिया गया है।

राष्ट्रीय शिक्षा नीति-1986 का प्रभावः राष्ट्रीय शिक्षा नीति-1986 लागू होने से पहले बिहार में इंटरमीडिएट की पढ़ाई विश्वविद्यालयों के अधीन थी। उस समय 11वीं और 12वीं की कक्षाएं स्कूलों में नहीं, बल्कि डिग्री कॉलेजों में ही संचालित होती थीं। पाठ्यक्रम से लेकर परीक्षा और रिजल्ट तक सब कुछ विश्वविद्यालयों के नियंत्रण में होता था।

हालांकि 1986 की नीति में 10+2+3 प्रणाली लागू की गई। जिसके तहत 10वीं तक की शिक्षा को स्कूली शिक्षा का हिस्सा बनाया गया। जबकि 11वीं और 12वीं (इंटरमीडिएट) को अलग स्तर पर रखा गया। इसके बाद स्नातक (3 वर्ष) की पढ़ाई डिग्री कॉलेजों में होती थी। इस नीति ने इंटरमीडिएट को विश्वविद्यालयों से छीनकर स्कूलों और विशेष कॉलेजों की ओर स्थानांतरित कर दिया।

बदलाव का असर और भविष्यः यह बदलाव शिक्षा व्यवस्था में सुधार और विशेषज्ञता को बढ़ावा देने की दिशा में एक कदम माना जा रहा है। डिग्री कॉलेजों से इंटरमीडिएट को हटाने से इन संस्थानों का ध्यान अब पूरी तरह से उच्च शिक्षा पर केंद्रित होगा। वहीं उच्च माध्यमिक विद्यालयों और इंटरमीडिएट कॉलेजों में 11वीं और 12वीं के छात्रों को बेहतर संसाधन और शिक्षण व्यवस्था मिलने की उम्मीद है।

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