देश

राम नगरी अयोध्या का वैभव, विवाद, विध्वंस, निर्माण, प्राण प्रतिष्ठा, सब कुछ जानिए

इंडिया न्यूज रिपोर्टर डेस्क। सरयू नदी के तट पर भगवान राम की नगरी जिसे अवध नगरी या अयोध्या के नाम से भी जाना जाता है, वह मूलतः देवालयों का शहर ही माना जाता है। अयोध्या नगरी को बसाए जाने के संदर्भ में जो प्रमाण मिलते हैं, उनके अनुसार इसे वैवस्वत मनु के द्वारा बसाया गया था। अयोध्या में सूर्यवंशी राजाओं का प्रताप महाभारत काल तक रहने के प्रमाण भी मिलते हैं।

वैवस्वत मनु या श्राद्धदेव मनु के बारे में पुराणों में जो उल्लेख मिलता है उसके अनुसार वे मानव जाति के प्रणेता एवं प्रथम पुरूष स्वायंभुव मनु के उपरांत सातवें मनु थे। प्रत्येक मन्वंतर में एक प्रथम पुरूष होता है जिसे मनु की संज्ञा दी जाती है।

वर्तमान काल में ववस्वत मन्वन्तर चल रहा है, जिसके प्रथम पुरुष वैवस्वत मनु थे, जिनके नाम पर ही मन्वन्तर का भी नाम है। पुराणों में मिलने वाले उल्लेख के अनुसार ब्रम्हाण्ड के राजा भगवान सूर्य का विवाह भगवान विश्वकर्मा की पुत्री संज्ञा से हुआ। विवाह के बाद संज्ञा ने श्राद्धदेव और यम अर्थात यमराज नामक दो पुत्रों और यमुना (नदी) नामक एक पुत्री को जन्म दिया। यही विवस्वान यानि सूर्य के पुत्र वैवस्वत मनु कहलाये।

अयोध्या के बारे में अगर आप इतिहास खंगालें तो इस अवध नगरी के दशरथ महल में ही मर्यादा पुरूषोत्तम भगवान राम का अवतार हुआ था। वैभव युक्त संपन्न, धन धान्य, रत्न आभूषणों से परिपूर्ण इस अवध नगरी की अतुलनीय छटा और सुंदर भवनों का वर्णन भी महर्षि बाल्मीकि के द्वारा लिखी गई रामायण में भली भांति मिलता है, यही कारण रहा होगा कि महर्षि बाल्मीकि के द्वारा अपने इस महाकाव्य में अयोध्या शहर की तुलना करते हुए इसे दूसरे इंद्रलोक की संज्ञा दी थी।

हर तरह से संपन्न अयोध्या नगरी के बारे में यह भी कहा जाता है कि भगवान श्रीराम के द्वारा जल समाधि लेकर मानव देह को त्यागने के उपरांत अयोध्या का वैभव पूरी तरह समाप्त हो गया था, या यूं कहा जाए कि अयोध्या नगरी उजाड़ ही हो गई थी तो अतिश्योक्ति नहीं होगा। कालांतर में भगवान श्री राम के पुत्र कुश के द्वारा एक बार पुनः अयोध्या नगरी का पुनर्निमाण कराया, जिससे इसकी आभा पहले की ही तरह हो गई। दूसरी बार सुंदर शहर में तब्दील हुई अयोध्या में सूर्यवंश की 44 पीढ़ियां इस नगरी के उतार चढ़ाव की साक्षी रहीं और उनका अस्तित्व पूरी तरह आभामण्डल ही रहा। महाभारत युद्ध के उपरांत अयोध्या एक बार फिर उजड़ी और यहां लगभग वीरानी ही छा गई।

पौराणिक कथाओं में इसका उल्लेख मिलता है कि मर्यादा पुरूषोत्तम भगवान श्री राम की जन्म भूमि अयोध्या और यहां के देवालों को बार बार आक्रांताओं के आक्रमण का सामना करना पड़ा था। मुगल आक्रांताओं ने भी अयोध्या को तहस नहस करने के लिए अनेक बार अभियान भी चलाए गए, बाबरी का ढांचा भी खड़ा किया गया, अनेक देवालयों को जमींदोज कर मस्जिदों का निर्माण कराया गया,  किन्तु मार्यादा पुरूषोत्तम की जन्म भूमि जस की तस ही बनी रही।

जो प्रसंग पुराणों में मिलते हैं उनके मुताबिक अयोध्या नगरी का इतिहास वैसे तो त्रेतायुग से भी पहले का है, पर हमने कोशिश की है कि इस स्थल के बारे में जो भी प्रसंग मिले हैं उनके आधार पर लगभग पांच सदियों का इतिहास आपके साथ साझा किया जाए। 1528 से 2024 तक लगभग 496 सालों में श्री राम जन्म भूमि प्रसंग में अनेक मोड भी आए।

कभी स्याह सन्नाटा पसरा रहा तो कभी दीपावली मनाई जाती रही। अंततः 09 नवंबर 2019 को पांच न्यायधीशों वाली संवैधानिक पीठ ने इस श्रीराम जन्म भूमि के संबंध में ऐतिहासिक फैसला सुनाया। वैसे श्री राम जन्म भूमि प्रकरण के बारे में यह भी कहा जाता है कि यह देश में चलने वाले सारे प्रकरणों में सबसे लंबा प्रकरण था।

सबसे पहले हम 1528 में आपको लेकर चलते हैं। 1528 में मुगल आक्रांता बाबर के एक खास सिपाहसलार मीर बाकी के द्वारा अयोध्या में विवादित स्थान पर एक मस्जिद का निर्माण कराया गया। उस समय भी हिन्दू धर्मावलंबियों के द्वारा यह दावा किया गया था कि यह मर्यादा पुरूषोत्तम भगवान श्री राम की जन्म भूमि है, जहां एक प्राचीन देवालय था। यह भी कहा गया कि मस्जिद के तीन गुंबदों में से एक गुंबद के नीचे ही भगवान श्री राम का जन्म स्थान था।

इसके बाद लगभग सवा तीन सौ साल तक विवाद चलता रहा और उसके बाद 1853 में श्री राम जन्म भूमि के जिस स्थान पर मस्जिद का निर्माण कराया गया था उस जगह के आसपास पहली बार सद्भावना बिगड़ी, आपसी तकरार के साथ ही भयानक तौर पर दंगे होने की बात भी प्रकाश में आती है।

कुछ समय तक अंग्रेज शासकों ने इस पर काबू करने का प्रयास किया किन्तु जब वे सफल नही हुए तो 1859 में अंग्रेज हुक्मरानों के द्वारा विवादित स्थल को बाड़ से घेर कर मुस्लिमों को ढांचे अंदर तो हिन्दुओं को बाहर चबूतरे पर पूजा उपासना की इजाजत प्रदान कर दी गई।

इसके लगभग 90 साल उपरांत 23 सितंबर 1949 को एक बार फिर विवाद सुलगता प्रतीत हुआ क्योंकि बाबरी ढांचे में भगवान राम की प्रतिमाएं मिलीं। इसके बाद हिन्दु धर्मावलंबियों ने इसे साक्षात राम लला अर्थात भगवान श्री राम के प्रकट होने की बात कही तो मुस्लिम समुदाय के द्वारा आरोप लगाया गया कि किसी ने चुपके से इन प्रतिमाओं को अंदर रख दिया था।

अयोध्या में कानून और व्यवस्था की स्थिति निर्मित होने पर उत्तर प्रदेश में उस समय चूंकि राष्ट्रपति शासन लगा हुआ था इसलिए तत्कालीन राज्यपाल के द्वारा इन प्रतिमाओं को तत्काल हटवाने के लिए जिला दण्डाधिकारी के. के. नायर को आदेश दिया किन्तु डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट के द्वारा धार्मिक भावनाओं को ठेस न पहुंचे और दंगे न भड़क उठें इस डर से राज्य शासन के आदेश को मानने में अपनी असमर्थता जाहिर कर दी गई। इसके बाद सरकार के द्वारा ही यहां ताला लगा दिया गया।

अगले ही साल 1950 में फैजाबाद के न्यायालीन अधिकार वाले अयोध्या के लिए फैजाबाद सिविल कोर्ट में दो अर्जियां दाखिल की गईं। पहली अर्जी विवादित भूमि पर रामलला के पूजन अर्चन की इजाजत एवं दूसरी प्रतिमा रखे जाने को लेकर थी। इसके बाद 1959 में निर्मोही अखाड़े द्वारा तीसरी अर्जी भी दाखिल कर दी गई।

लगभग 11 साल के उपरांत 1961 में उत्तर प्रदेश सुन्नी वक्फ बोर्ड के द्वारा न्यायालय में एक आवेदन दिया गया, जिसमें विवादित भूमि का कब्जा दिलाए जाने और प्रतिमाओं को हटाने की बात कही गई। इसके बाद ही विश्व हिन्दु परिषद ने भी इस मामले में अपना पक्ष रखना आरंभ कर दिया।

इसके लगभग 23 साल बाद सन 1984 में विवादित ढांचे के स्थान पर मंदिर बनाए जाने के लिए एक कमेटी का गठन किया गया। दो साल के उपरांत फैजाबाद के जिला एवं सत्र न्यायधीश के.एम. पाण्डेय के द्वारा 01 फरवरी 1986 को विवादित स्थान पर हिन्दुओं को पूजा करने और विवादित ढांचे को ताले से मुक्त कराने का आदेश दिया गया।

कुछ सालों तक मामला ज्यादा सुर्खियों में नहीं रहा, पर 06 दिसंबर 1992 को विश्व हिन्दु परिषद, शिवसेना सहित अनेक संगठनों के लाखों की तादाद में कार्यकर्ता अयोध्या पहुंचे और विवादित ढांचे को गिरा दिया। इसके बाद देश दंगे की चपेट में चला गया। देश भर में सांप्रदायिक दंगे हुए और बड़ी तादाद में लोगों को जान भी गंवानी पड़ी।

लगभग 18 साल के बाद सन 2010 में इलहाबाद उच्च न्यायालय के द्वारा एक फैसला देते हुए विवादित भूमि को रामलला विराजमान, सुन्नी वक्फ बोर्ड और निर्मोही अखाड़े को बराबार हिस्सों में बांटने के आदेश दिए गए। अगले ही साल 2011 में सर्वोच्च न्यायालय के द्वारा इलहाबाद हाईकोर्ट के फैसले पर रोक लगा दी गई। वर्ष 2017 में सर्वोच्च न्यायालय के द्वारा आऊट ऑफ कोर्ट सेटलमेंट का प्रस्ताव दिया गया।

08 मार्च 2019 को सर्वोच्च न्यायालय के द्वारा मध्यस्थता के लिए भेजा गया और आठ सप्ताह के अंदर कार्यवाही को पूर्ण करने के निर्देश दिए गए। इसके बाद 01 अगस्त को मध्यस्थता पेनल के द्वारा अपनी रिपोर्ट पेश की गई और 02 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट के द्वारा कहा गया कि मध्यस्थता पेनल भी समाधान निकालने में सफल नहीं रहा। 06 अगस्त से सर्वोच्च न्यायालय में इस मामले की सुनवाई रोजाना आरंभ हुई। 16 अक्टूबर को सुनवाई पूरी होने के बाद सर्वोच्च न्यायालय ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया।

09 नवंबर 2019 को देश की सबसे बड़ी अदालत में 05 न्यायधीशों की बैंच ने श्रीराम जन्मभूमि के पक्ष में फैसला सुनाया और 2.77 एकड़ विवादित भूमि को राम मंदिर हेतु एवं मस्जिद के लिए 05 एकड़ भूमि प्रथक से मुहैया करवाने के निर्देश दिए गए।

25 मार्च 2020 को लगभग तीन दशकों के बाद रामलला टेंट से निकलकर फाईबर से निर्मित एक मंदिर में विराजे और इसके बाद 05 अगस्त को यहां मंदिर के लिए भूमिपूजन किया गया। 2023 में श्री राम की नगरी अयोध्या में भगवान श्री राम का मंदिर बनकर तैयार हो चुका है। अब यहां 2024 की 22 जनवरी को राम नगरी अयोध्या में राम लला का अभिषेक होगा और 05 सदी अर्थात 500 सालों से चले आ रहे विवाद का पटाक्षेप भी इसी दिन हो जाएगा।

अवध नगरी अयोध्या को दुल्हन की तरह सजाया जा रहा है। यहां के रेल्वे स्टेशन का नाम भी बदलकर अयोध्या धाम कर दिया गया। यहां के एयरपोर्ट का नाम अब महर्षि बाल्मीकि विमानतल रख दिया गया है। 22 जनवरी 2024 को रामलला के मंदिर के भव्य उद्याटन के बाद श्रृद्धालु यहां के दर्शन कर पाएंगे।

जानें पाकिस्तान पर ईरान की एयर स्ट्राइक की पूरी कहानी, कितना बढ़ेगा तनाव?

राजस्थानः न बालक न वसुन्धरा, जानें कौन हैं नए सीएम भजनलाल

कोहली, शर्मा और यादव से जुड़े अजब खेल का गजब संयोग

चार धाम सड़क परियोजना हादसाः अंदर फंसे 36 मजदूरों की लाइफ लाइन बनी पानी आपूर्ति पाइपलाइन

महाराष्ट्र : क्रेन गिरने से 16 मजदूरों की मौत, 3 जख्मी

Related Articles

Back to top button
error: Content is protected !!

Adblock Detected

Please consider supporting us by disabling your ad blocker