
Grok AI: नीतीश को लेकर देश में बनी आम धारणाओं पर गजब लिख डाला !
“Grok AI का दावा है कि उसने इस विश्लेषण को 56 हजार उपलब्ध वेब पेजों का विश्लेषण के बाद लिखा है…
एक्सपर्ट मीडिया न्यूज डेस्क। Analysis of Grok AI: नीतीश कुमार बिहार के मुख्यमंत्री और जनता दल (यूनाइटेड) के नेता हैं। उन्हें लेकर भारत में हाल के वर्षों में लोगों की धारणाएं काफी बदलती रही हैं। उनकी लंबी राजनीतिक पारी बार-बार गठबंधन बदलने की प्रवृत्ति और बिहार में उनके शासन के प्रदर्शन के आधार पर जनता के बीच उनकी छवि को लेकर मिश्रित विचार हैं। आज 20 मार्च 2025 तक नीतीश कुमार के बारे में देश में कुछ प्रमुख आम धारणाएं इस प्रकार हैं:
पलटीमार की छवि: नीतीश कुमार को लेकर सबसे प्रचलित धारणा यह है कि वे राजनीतिक अवसरवाद के प्रतीक हैं। पिछले एक दशक में उन्होंने कई बार गठबंधन बदले हैं। एनडीए से महागठबंधन और फिर वापस एनडीए। जिसके कारण उन्हें पलटूराम जैसे तंज सुनने पड़ते हैं। लोग मानते हैं कि वे सत्ता में बने रहने के लिए किसी भी दल के साथ समझौता कर सकते हैं।
प्रशासनिक क्षमता की पहचान: नीतीश को बिहार में उनके शुरुआती कार्यकाल (2005-2014) के लिए एक कुशल प्रशासक के रूप में याद किया जाता है, जब उन्होंने राज्य में सड़क, बिजली, शिक्षा और कानून-व्यवस्था जैसे क्षेत्रों में सुधार किया। हालांकि हाल के वर्षों में उनकी यह छवि धूमिल हुई है। क्योंकि लोग मानते हैं कि अब वे पहले जितने प्रभावी नहीं रहे।
कमजोर और निर्भर नेता: एक धारणा यह भी बन रही है कि नीतीश अब पहले जैसे मजबूत नेता नहीं रहे। उनकी उम्र और स्वास्थ्य को लेकर चर्चाएं होती हैं और कई लोग मानते हैं कि वे अब बीजेपी या अन्य सहयोगियों पर ज्यादा निर्भर हो गए हैं। उनकी पार्टी का घटता जनाधार भी इस धारणा को मजबूत करता है।
विपक्षी एकता के सूत्रधार से हाशिए पर: 2023 में नीतीश को विपक्षी गठबंधन इंडिया का सूत्रधार माना गया था। लेकिन 2024 में एनडीए में वापसी के बाद लोगों में यह धारणा बनी कि वे राष्ट्रीय स्तर पर अपनी विश्वसनीयता खो चुके हैं। अब उन्हें एक क्षेत्रीय नेता के रूप में ही ज्यादा देखा जाता है, जिसकी राष्ट्रीय महत्वाकांक्षा अधूरी रह गई।
तुष्टिकरण और विवादास्पद बयान: नीतीश के कुछ फैसले जैसे रामनवमी जुलूस पर पथराव की घटनाओं के दौरान इफ्तार पार्टी का आयोजन और विधानसभा में जनसंख्या नियंत्रण पर दिए गए विवादित बयान ने उनकी छवि को धार्मिक तुष्टिकरण से जोड़ा है। बीजेपी समर्थक और कुछ हिंदू संगठन उन्हें इसके लिए आलोचना करते हैं।
बिहार की प्रगति में सीमित सफलता: हालांकि नीतीश के शासन में बिहार में गरीबी दर घटी और मासिक व्यय बढ़ा। लेकिन राष्ट्रीय औसत से तुलना में यह प्रगति धीमी मानी जाती है। लोग मानते हैं कि वे बिहार को गरीबी और पलायन से पूरी तरह बाहर नहीं निकाल पाए।
बीजेपी पर निर्भरता: एक धारणा यह भी है कि नीतीश अब स्वतंत्र रूप से फैसले लेने में सक्षम नहीं हैं और बीजेपी के बंधुआ मुख्यमंत्री बन गए हैं। खासकर 2024 के लोकसभा चुनाव के बाद जब उनकी पार्टी को कम सीटें मिलीं। माना जाता है कि वह केंद्र में बीजेपी की सरकार के लिए महत्वपूर्ण सहयोगी हैं। लेकिन उनकी अपनी सियासी ताकत कमजोर हो गई है।
मानसिक और शारीरिक कमजोरी की चर्चा: हाल की घटनाओं जैसे सार्वजनिक मंचों पर उनके गुस्से या असंगत बयानों ने यह धारणा बनाई है कि उम्र और थकान उनकी सेहत और निर्णय क्षमता पर असर डाल रही है। कुछ लोग उनके लंबे कार्यकाल को सम्मान देते हैं। लेकिन सहानुभूति के साथ यह भी कहते हैं कि वह अब पहले जैसे प्रभावी नहीं रहे। बीते दिन राष्ट्रगाण के दौरान उनकी अजीबोगरीब हरकतें ताजा हकीकत बयां करते हैं।
विवादास्पद बयानों का केंद्र: नीतीश के कुछ बयान जैसे 2023 में विधानसभा में जनसंख्या नियंत्रण पर की गई टिप्पणी ने उन्हें विवादों में डाला। लोग उन्हें अब एक ऐसे नेता के रूप में देखते हैं जो गंभीर मुद्दों पर भी हल्कापन या असंवेदनशीलता दिखा सकते हैं। जिससे उनकी छवि को नुकसान हुआ है।
कुल मिलाकर नीतीश कुमार को लेकर देश में आज एक मिश्रित धारणा है। कुछ लोग उन्हें अनुभवी और विकास-उन्मुख नेता मानते हैं, जबकि ज्यादातर उनकी अवसरवादी राजनीति और घटती लोकप्रियता के लिए आलोचना करते हैं। उनकी छवि अब पहले जितनी मजबूत और सकारात्मक नहीं रही और यह बिहार के बाहर खासकर सोशल मीडिया पर उनकी आलोचना से भी झलकता है।
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