पेयजल एवं स्वच्छता विभागः इस चीफ इंजीनियर के कारनामे तो देखिए

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श्वेताभ के खिलाफ 15 साल पूर्व हुई थी एफआईआर, अब तक नहीं हुई कोई कार्रवाई !

इस सूबे में इंजीनियरों के बड़े तबके के पास जादू की ऐसी छड़ी है कि सभी सरकारों के मंत्री इनसे वशीभूत हो जाते हैं। कहा जाता है कि ये मंत्रियों के लिए कामधेनू साबित होते हैं। इसलिए इन्हें पाला-पोसा जाता है। आज हम बात कर रहे हैं पेयजल एवं स्वच्छता विभाग की, जिसे घोटाला डिवीजन भी कहा जाता है….

corruption 1एक्सपर्ट मीडिया न्यूज / इंद्रदेव लाल। झारखंड में इंजीनियरों-ठेकेदारों के गठजोड़ ने बड़े-बड़े कारनामे किये हैं। अब देखिये न, पेयजल एवं स्वच्छता विभाग के इतिहास में रिपेयरिंग और मेंटेनेंस का काम कभी राज्य के बाहर की कंपनियों को नहीं मिला। लेकिन 2019 में स्थानीय संवेदकों को दरकिनार कर ग्लोबल टेंडर के जरिए बाहरी कंपनी को काम थमा दिया गया।

जलापूर्ति ऑपरेशन का काम नागपुर की कंपनी के जिम्मेः 

पेयजल एवं स्वच्छता विभाग में पिछले 40 साल से, 10 से 50 लाख तक का काम स्थानीय संवेदकों से कराया जा रहा था। लेकिन विभाग के अभियंता प्रमुख श्वेताभ कुमार ने चार दशक से चली आ रही इस परंपरा को एक झटके में तोड़ दिया।
उन्होंने 2019-20 में ग्लोबल टेंडर कर दिया। नागपुर की कंपनी मेसर्स विश्वराज इन्वायरमेंटल प्राइवेट लिमिटेड को जलापूर्ति के ऑपरेशन के मेंटेनेंस का ठेका दे दिया। जुलाई 2019 में एक साल के लिए कंपनी को करीब 10 करोड़ का ठेका मिल गया। अगस्त 2020 में कंपनी का एक साल पूरा हो गया है। खबर है कि इस कंपनी को तीन महीने का और एक्सटेंशन दे दिया गया है।

नहीं हो पा रहा है गुणवत्तापूर्ण कार्यः

उल्लेखनीय है कि पेयजल एवं स्वच्छता विभाग में पिछले साल वर्ष 2019-20 में अलग-अलग कार्यों जैसे, केमिकल की आपूर्ति, पाइप मरम्मत, जल शोध संस्थान के रख-रखाव, मेकेनिकल, आउटसोर्सिंग और अन्य तरह के कार्यों को एक साथ सम्मिलित कर एक वृहद प्राक्कलन तैयार कर ग्लोबल निविदा के जरिए स्थानीय संवेदक को कार्य से वंचित कर दिया गया है। जिससे कार्य की गुणवत्ता भी प्रभावित हुई है।
पुराने संवेदक को जितना भुगतान होता था, उससे दुगने का, यानी लगभग दस करोड़ के काम मिलने के बाद भी पाइप मरम्मत का कार्य ससमय एवं गुणवत्तापूर्ण नहीं हो पा रहा है। सड़कों पर लिकेज हो रहा है। सड़क पर पानी बहता रहता है। गर्मी में एक तरफ पानी की किल्लत तो दूसरी तरफ पानी की बर्बादी हो रही है।
बूटी प्रथम चरण का पहला साइडिंग मेन एवं द्वतीय चरण का दूसरा साइडिंग लाइन महीनों से बंद है। लेकिन कंपनी मेंटेनेंस-रिपेयरिंग के काम पर ध्यान नहीं दिया जा रहा है। ऐसा आरोप पेयजल एवं स्वच्छता संवेदक महासंघ की ओर से लगाया गया है। इसका विरोध किया गया लेकिन साल भर बाद भी इसका कोई फलाफल नहीं निकला है।

स्थानीय संवेदकों ने सीएम को लिखा पत्रः

पेयजल एवं स्वच्छता संवेदक महासंघ के अध्यक्ष अरुण कुमार सिंह ने इस संबंध में मुख्यमंत्री हेमंत को एक माह पूर्व लिखे पत्र में कहा है कि रांची शहरी जलापूर्ति का 40 साल से जिम्मा संभालनेवाले संवेदकों को बर्बादी के कगार पर छोड़ दिया गया है। अब लंबे समय से कार्य कर रहे सभी स्थानीय संवेदकों के सामने अब आर्थिक संकट उत्पन्न हो गया है।
श्री सिहं ने कहा है कि स्थानीय संवेदकों को काम के मद में जितना भुगतान होता था, उससे दुगने का लगभग दस करोड़ का भुगतान होने के बावजूद पाइप मरम्मत कार्य ससमय और गुणवत्तापूर्ण कार्य नहीं हो पा रहा है।
पत्र में उन्होंने कहा कि जलशोध संस्थान से की जानेवाली जलापूर्ति का भुगतान शीर्ष प्रमंडल से किया जाता है, जबकि जलशोध संस्थानों के भवन के रख-रखाव का कार्य नहीं किया जा रहा है।
स्थानीय निबंधित संवेदक पूर्व की भांति दस लाख से पचास लाख की निविदा कर लोकल संवेदकों से कार्य कराने से विभाग को लगभग 3 करोड़ की बचत हो रही थी, लेकिन इसपर ध्यान नहीं दिया गया।
उन्होंने कहा कि यही काम लोकल संवेदकों से कराने से 6-7 करोड़ में बाहरी कंपनी की तुलना स्थानीय संवेदक बेहतर काम करते आये हैं।

बताइये मंत्री जी ! कैसे होगा लोकल वोकलः

महासंघ ने सीएम से कहा है कि केंद्र सरकार लघु उद्यमी संवेदक के लिए लोकल को वोकल बनाने की बात करती है। बाहरी कंपनी को काम देने से स्थानीय संवेदक पिछले एक साल से बेरोजगार हो गए हैं। इसके कारण करीब पचास परिवार की जीविका का सवाल खड़ा हो गया है।

पूर्व मंत्री ने पकड़ी थी श्वेताभ की गड़बड़ीः

मिली जानकारी के अनुसार 2005 में श्वेताभ कुमार धनबाद में कार्यपालक अभियंता के पद पर रहते हुए जिला जलापूर्ति से संबंधित कार्य के दौरान उनकी गड़बड़ी पकड़ी गई थी। कार्यों में अनियमितता पाये जाने पर पूर्व जल संसाधन मंत्री कमलेश सिंह ने बीस सूत्री अध्यक्ष की हैसियत से इंजीनियर के काम की समीक्षा की तो, गड़बड़ी सामने आयी।
इसके बाद पूर्व मंत्री ने धनबाद डीसी को इंजीनियर के खिलाफ जांच का निर्देश दिया। जांच समिति की रिपोर्ट में इंजीनियर के कार्यों में अनियमितता पाये जाने के बाद डीसी ने इंजीनियर के खिलाफ एफआईआर दर्ज करा दी।
एफआईआर दर्ज हुए 15 साल गुजर गए हैं, लेकिन आज तक उनके खिलाफ कार्रवाई नहीं हुई। धनबाद जिला प्रशासन में आज भी संचिका लंबित है।

गलत करते रहे, प्रमोट होते रहेः

झारखंड में अक्सर वर्षों से अनियमितताओं के आरोपित इंजीनियरों के खिलाफ के मामले लंबित रहते हैं। उनके सीआर को नजरअंदाज कर ऐसे इंजीनियरों को प्रमोट कर दिया जाता है। श्वेताभ कुमार के साथ भी ऐसा ही हुआ।
घपले के आरोपी इंजीनियर डोरंडा स्थित नागरिक अंचल, रांची में अधीक्षण अभियंता के पद पर 5 साल से अधिक समय तक काबिज रहे। इसके बाद वे पेयजल स्वच्छता के मुख्यालय में क्षेत्रीय मुख्य अभियंता के पद पर करीब 3 साल रहे।

क्यों हुए बाहरी कंपनी पर मेहरबान?

2018 में उन्हें अभियंता प्रमुख बना दिया गया। यहां दिलचस्प बात ये रही कि इस दौरान वे अधीक्षण अभियंता के पद पर रहते हुए 10 लाख तक के काम के संवेदकों का निबंधन भी करते रहे। दूसरी तरफ अभियंता प्रमुख के रोल में रहते हुए रजिस्ट्रर्ड संवेदकों का काम छीन कर बाहरी कंपनी पर मेहरबान हो गए।
बताते चलें कि पीडब्ल्यूडी कोड के अनुसार ग्लोबल टेंडर का प्रावधान ही नहीं है। बाहरी कंपनी को मिला काम एसओआर से बाहर का है। कंपनी को दिये गए काम में 1.40 पैसे प्रति किलोलीटर का दर निर्धारण किया गया है, जबकि जलापूर्ति के लिए आवश्यक कार्य की दर 70-75 पैसे प्रति किलोलीटर निर्धारित होना चाहिए।
बताया गया कि बाहरी कंपनी को काम मिलने के साल भर बाद भी बिल्डिंग, फिल्टरेशन प्लांट, पाइपलाइन व मरम्मत कार्य का 50 प्रतिशत भी काम नहीं हुआ, लेकिन कंपनी को सौ फीसदी भुगतान हो गया है। 

मंत्री के आश्वासन दिए बीते तीन माहः

पेयजल एवं स्वच्छता विभाग में 40 साल से का काम कर रहे 20 संवेदकों का एक प्रतिनिधिमंडल मई माह में रूक्का प्लांट में निरीक्षण के लिए आये विभागीय मंत्री मिथलेश ठाकुर से मिलकर अपनी समस्या बतायी थी।
मंत्री ने उस समय समस्या के समाधान का आश्वासन दिया था। लेकिन तीन माह बाद भी उनकी फरियाद नहीं सुनी गई। इसके बाद पेयजल एवं स्वच्छता संवेदक महासंघ ने 2 जून को सीएम के नाम त्राहिमाम संदेश भेजा। एक माह बीत गए, लेकिन कोई फलाफल नहीं निकला है।

श्वेताभ से खफा हैं सहकर्मीः

बताया गया कि कनीय से लेकर वरीय अधिकारी तक इंजीनियर इन चीफ की कार्यशैली से खफा हैं। लेकिन उनपर इनका कोई असर नहीं है। बताया गया कि रूक्का प्लांट में करीब 30 और बुटी जल वितरण प्रमंडल में 20-22 कर्मी कार्यरत हैं।
इनके रहने की व्यवस्था रूक्का प्लांट और बुटी जलवितरण प्रमंडल के खाली पड़े आवासों में की गयी है। बिजली-पानी भी फ्री में देने का आरोप है। रूक्का गांव के करीब 30 स्थानीय मजदूर आउटसोर्सिंग के तहत रूक्का प्लांट में मजदूरी कर रहे हैं।

अब कैसे दिलवा पाएंगे बाहरी कंपनी को ठेकाः

खबर है कि अब इस कंपनी को रिपेयरिंग और मेंटेनेंस के काम के लिए एक साल के लिए नहीं, बल्कि तीन साल के करीब 30 करोड़ का ठेका मिलने की संभावना है। इसके लिए अभियंता प्रमुख जुगाड़ तंत्र भिड़ाये हुए हैं।
इसी बीच झारखंड सरकार ने कुछ दिन पूर्व 25 करोड़ तक का ठेका स्थानीय संवेदकों को देने का निर्णय लेने से उनकी परेशानी थोड़ी जरूर बढ़ गयी है।