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BPSC पेपर लीक पर बोले चिराग पासवान- सत्ता में हैं, इसलिए चुप रहेंगे!

Chirag Paswan and BPSC paper leak We are in power, so we will keep quiet!
Chirag Paswan and BPSC paper leak We are in power, so we will keep quiet!

पटना (एक्सपर्ट मीडिया न्यूज)। बिहार लोक सेवा आयोग (BPSC) के पेपर लीक मामले ने राज्य में शिक्षा और प्रशासनिक प्रक्रियाओं की विश्वसनीयता पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। इस मामले में लोजपा (रामविलास) नेता और केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान का बयान चर्चा में है।

उन्होंने एक टीवी चैनल इंटरव्यू में दो टूक स्वीकार किया है कि BPSC पेपर लीक हुआ है और 22 से अधिक केंद्रों पर धांधली हुई है। इससे ना सिर्फ हजारों छात्रों का भविष्य प्रभावित हुआ है, बल्कि उनके अपने परिवार के बच्चे भी इस गड़बड़ी का शिकार हुए हैं।

चिराग पासवान ने स्पष्ट रूप से कहा कि यदि वे विपक्ष में होते, तो इस मामले पर जोर-शोर से आवाज उठाते। लेकिन सत्ता में रहते हुए उनकी चुप्पी ने उनकी प्राथमिकताओं पर सवाल खड़े कर दिए हैं। क्या यह चुप्पी सत्ता में बने रहने की मजबूरी है? या फिर यह छात्रों और उनके भविष्य की उपेक्षा का प्रमाण है?

यह स्थिति उन नेताओं की राजनीति का आईना है, जो सत्ता के लिए अपने सिद्धांतों और मूल्यों को ताक पर रख देते हैं। यह विरोधाभास तब और गंभीर हो जाता है जब उनके अपने परिवार के बच्चे भी इस धांधली का शिकार होते हैं, लेकिन फिर भी वे न्याय के लिए कदम उठाने से पीछे हटते हैं।

दरअसल BPSC परीक्षा लाखों छात्रों के लिए एक सपना होती है। यह उनके करियर और भविष्य का आधार है। पेपर लीक जैसी घटनाओं से इन सपनों को तोड़ना न केवल उनकी मेहनत का अपमान है, बल्कि यह राज्य की शिक्षा प्रणाली की खामियों को भी उजागर करता है। जब सत्ता में बैठे नेता इस मुद्दे पर चुप्पी साध लेते हैं तो यह छात्रों की उम्मीदों पर सीधी चोट होती है।

चिराग पासवान का यह रवैया यह सवाल खड़ा करता है कि क्या सत्ता में बने रहना छात्रों के भविष्य से अधिक महत्वपूर्ण हो गया है? क्या नेता अब केवल राजनीतिक समीकरणों में उलझे रहेंगे और जनहित को दरकिनार करते रहेंगे?

यह पेपर लीक मामला बिहार की शिक्षा व्यवस्था की विश्वसनीयता पर बड़ा धक्का है। यह घटना दिखाती है कि किस तरह से भ्रष्टाचार और लापरवाही ने प्रशासनिक प्रक्रियाओं को प्रभावित किया है।

यह जरूरी है कि छात्र इस मामले में न्याय की मांग करें और सरकार व प्रशासन से जवाबदेही सुनिश्चित करें। साथ ही नेताओं को यह समझना होगा कि सत्ता में बने रहना ही सब कुछ नहीं है। यदि वे जनता और विशेष रूप से छात्रों के प्रति अपनी जिम्मेदारियों को नहीं निभाएंगे तो उनकी साख पर स्थायी दाग लग सकते हैं।

इसमें कोई शक नहीं कि चिराग पासवान का बयान यह साबित करता है कि सत्ता की राजनीति अक्सर जनता की उम्मीदों और उनके अधिकारों को किनारे कर देती है। पेपर लीक जैसे मुद्दे केवल एक परीक्षा तक सीमित नहीं हैं, बल्कि यह पूरे राज्य और उसकी भावी पीढ़ी के भविष्य को प्रभावित करते हैं। अब सवाल यह है कि क्या बिहार के नेता और प्रशासन इस समस्या को गंभीरता से लेंगे या फिर सत्ता की लालसा में छात्रों की मेहनत और उनके सपनों की कुर्बानी देते रहेंगे?

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