चुनाव डेस्कआस-पड़ोसदेशदो टूकफीचर्डबिग ब्रेकिंगराजनीति

हरियाणा की ढोल बजाकर मीडिया दबा रहा जम्मू-कश्मीर की पोल

नई दिल्ली (एक्सपर्ट मीडिया न्यूज)। इंडियन पॉल्टिक्स में कुछ घटनाएं गहरे संदेश देती हैं, परंतु उन्हें वही देख पाते हैं जो पूरे परिदृश्य को ध्यान से समझते हैं। जम्मू-कश्मीर के हालिया असेंबली इलेक्शन में जो हुआ, वह इसी श्रेणी में आता है। इतिहास में पहली बार किसी राज्य से उसका पूर्ण राज्य का दर्जा छीनकर केंद्र शासित प्रदेश बनाया गया और उसका विभाजन भी कर दिया गया। परंतु दस साल बाद जनता ने वोट के माध्यम से बीजेपी के दांव-पेंचों पर अपना ग़ुस्सा ज़ाहिर कर दिया और इंडिया एलायंस को पूर्ण बहुमत देकर सत्ता में पहुंचाया। हालांकि, यह जीत मीडिया की सुर्खियों से गायब रही, क्योंकि हरियाणा में बीजेपी की मामूली जीत का ढोल पीटने में जुटी मीडिया ने जम्मू-कश्मीर की हार को दबा दिया।

यह हार सिर्फ़ बीजेपी की नहीं है, बल्कि आरएसएस की विचारधारा पर भी कड़ा प्रहार है। अनुच्छेद 370 को हटाने और जम्मू-कश्मीर को केंद्र शासित प्रदेश बनाने की प्रक्रिया को जिस तरह से लागू किया गया, वह राज्य के लोगों के लिए अस्वीकार्य साबित हुआ। मोदी सरकार ने जनता की ख़ुशहाली का दावा करते हुए जो क़दम उठाए, उन्हें जनता ने वोट के माध्यम से पूरी तरह से खारिज कर दिया। जम्मू-कश्मीर की जनता ने इंडिया एलायंस को जीताकर यह साफ़ कर दिया कि वे बीजेपी की नीतियों से असंतुष्ट हैं।

हरियाणा में बीजेपी की जीत पर सवालः दूसरी ओर हरियाणा में कांग्रेस और बीजेपी के बीच का फ़ासला महज एक फ़ीसदी से भी कम रहा। जबकि मैदान में लोगों की नाराज़गी, विशेष रूप से किसानों, जवानों और पहलवानों की नाराज़गी साफ़ दिख रही थी, बीजेपी फिर भी इलेक्शन जीतने में सफल रही। इससे कांग्रेस द्वारा लगाए गए धांधली के आरोपों को बल मिलता है और यह मांग भी उठती है कि इन आरोपों की गहन जांच होनी चाहिए, ताकि लोकतंत्र पर जनता का विश्वास बरक़रार रह सके।

अगर धांधली के आरोपों को नज़रअंदाज़ भी कर दिया जाए, तब भी यह जीत ऐसी नहीं है कि बीजेपी लोकसभा चुनावों में इसे बड़े पैमाने पर भुनाने की स्थिति में हो। हरियाणा में न तो मोदी की रैलियों में लोगों की भारी भीड़ जुटी और न ही उन्हें सुनने में जनता ने विशेष रुचि दिखाई। आख़िरी वक्त में पार्टी ने पोस्टरों से मोदी का चेहरा भी हटा दिया था। इसके बावजूद बीजेपी की अप्रत्याशित जीत ने कई सवाल खड़े किए हैं।

जम्मू-कश्मीर की जनता ने दिया कड़ा संदेशः बीजेपी सरकार ने जम्मू-कश्मीर में सत्ता पाने के लिए हर संभव कोशिश की। परिसीमन के तहत जम्मू में सीटों की संख्या बढ़ाई गई, जहां बीजेपी की पकड़ मानी जाती है, जबकि कश्मीर में सिर्फ़ एक सीट बढ़ाई गई। जम्मू में कुल 43 सीटों में से बीजेपी ने 29 पर जीत हासिल की, परंतु कश्मीर घाटी में बीजेपी का खाता भी नहीं खुला। यहां इंडिया एलायंस की पार्टियों ने भारी जीत दर्ज की।

बीजेपी की रणनीति जम्मू-कश्मीर में ‘त्रिशंकु’ विधानसभा लाने की थी, ताकि निर्दलीय और प्रॉक्सी दलों के साथ मिलकर सरकार बनाई जा सके। लेकिन जनता ने यह साज़िश नाकाम कर दी। नेशनल कॉन्फ्रेंस को 42 सीटें मिलीं, जबकि कांग्रेस को 6 और सीपीएम को 1 सीट मिली। इस प्रकार इंडिया एलायंस के पास कुल 49 सीटें हैं, जो बहुमत के लिए पर्याप्त हैं। इस जीत ने बीजेपी और आरएसएस की रणनीति को ध्वस्त कर दिया।

मीडिया की भूमिका पर सवालः इसके बावजूद मीडिया ने जम्मू-कश्मीर की इस बड़ी हार को अनदेखा कर दिया और हरियाणा की मामूली जीत को ज़ोर-शोर से पेश किया। मीडिया ने जम्मू-कश्मीर में आरएसएस-बीजेपी की हार पर चर्चा करने की बजाय हरियाणा की जीत को बीजेपी की सफलता के रूप में चित्रित किया। परंतु हक़ीक़त यह है कि जम्मू-कश्मीर में वोटिंग प्रतिशत में भी गिरावट आई। 2014 में जहां 65% वोट पड़े थे, वहीं 2024 में यह आंकड़ा 63.88% रहा।

हरियाणा की जीत को परदा बनाकर बीजेपी की वैचारिक पराजय को छिपाने की कोशिश हो रही है। अब आगे के इलेक्शन विशेषकर महाराष्ट्र और झारखंड के, देश के पॉल्टिक्सक मूड को और स्पष्ट करेंगे। जम्मू-कश्मीर की हार ने यह साबित कर दिया है कि बीजेपी की नीतियां और उसके किए गए दावे जनता के बीच अपनी विश्वसनीयता खो चुके हैं।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!
भयानक हादसा का शिकार हुआ तेजस्वी यादव का जन विश्वास यात्रा काफिला These 5 science museums must be shown to children once The beautiful historical Golghar of Patna Naxalite bunker and camp demolished in forested hilly area of Jharkhand