एक्सपर्ट मीडिया न्यूज नेटवर्क डेस्क। वेशक झारखंड में भ्रष्टाचार की जड़े इतनी गहरी हो गई हैं कि ऊपर से लेकर नीचे तक के अधिकारी व कर्मचारी इसमें फंसे हुए हैं। इसके बावजूद सरकारों ने इस ओर ध्यान नहीं दिया। आलम यह है कि राज्य के कई आईएएस अधिकारियों पर भ्रष्टाचार के आरोप हैं, लेकिन आज तक कार्रवाई के नाम पर बस फाइल इधर से उधर से होती रही।
ताजा मामला निलंबित आईएएस अधिकारी पूजा सिंघल से जुड़ा है, जिनकी फाइल दो माह से सरकार के पास है, पर आज तक एसीबी को एफआईआर दर्ज करने की अनुमति नहीं दी।
अपर मुख्य सचिव अरुण कुमार सिंह, पथ निर्माण, भवन निर्माण सचिव सुनील कुमार, छवि रंजन जैसे आईएएस अधिकारियों के विरुद्ध कार्रवाई या जांच की अनुमति संबंधी फाइलें सरकार के पास पेंडिंग है। फिर भी ऐसे अधिकारियों को मलाईदार पोस्ट देकर उनको उपकृत कर रही है।
1. पूजा सिंघलः पूर्व सरकार में बचीं, अब 2 माह से एसीबी को अनुमति नहीं मिली- खूंटी उपायुक्त रहते हुए पूजा सिंघल का नाम मनरेगा घोटाले में आया था, लेकिन जांच में उन्हें दोषमुक्त कर दिया था। इस घोटाले में ईडी की छापेमारी में करोड़ों रुपए कैश सहित अकूत संपत्ति मिलने पर पूजा को गिरफ्तार किया गया।
हाल में ही उन्हें सुप्रीम कोर्ट से बेल मिली है। लगभग दो माह पहले ईडी ने एसीबी जांच की अनुशंसा की थी। एसीबी ने एफआईआर दर्ज कर जांच शुरू करने के लिए राज्य सरकार से अनुमति मांगी गई थी, पर सरकार अंतिम निर्णय नहीं ले रही है। फाइल घूम रही है।
2. सुनील कुमार: कार्रवाई तो दूर, 5 साल से मलाईदार विभाग के सचिव हैं- पथ निर्माण व भवन निर्माण सचिव सुनील कुमार पर बोकारो सिख दंगा पीड़ितों के 71.30 लाख के मुआवजा भुगतान में गड़बड़ी का आरोप है। तत्कालीन मुख्य सचिव राजीव गौबा ने जांच का आदेश दिया था।
उनपर बोकारो डीसी रहते 1.46 एकड़ जमीन को रैयती बता पत्नी के नाम पेट्रोल पंप खोलने का आरोप है। ये मामला 5 वर्ष से लंबित हैं।
कार्रवाई तो दूर वो 9 फरवरी 2018 (21 फरवरी से 6 सितंबर 20 छोड़कर) से अब तक भवन निर्माण व 24 अप्रैल 20 से पथ निर्माण के सचिव हैं।
3. अरुण सिंह: सीबीआई को नहीं मिली एफआईआर दर्ज करने की अनुमति- स्वास्थ्य विभाग के अपर मुख्य सचिव सह विकास आयुक्त अरुण कुमार सिंह पर पश्चिमी सिंहभूम के घाटकुरी में लौह अयस्क खदान के आवंटन में गड़बड़ी का आरोप है।
सीबीआई की प्राथमिक जांच में अरुण सिंह दोषी पाए गए, जिस पर मुकदमा दर्ज करने के लिए सीबीआई ने डीओपीटी से अनुमति मांगी।
चूंकि मामला राज्य सरकार से जुड़ा था इसलिए डीओपीटी ने लगभग दो माह पहले राज्य सरकार से मुकदमा दर्ज करने की अनुमति मांगी है। लेकिन अभी तक अनुमति नहीं मिली।
4. छवि रंजन : आवासीय परिसर से पेड़ कटवाने का मामला 3 साल से लंबित- समाज कल्याण निदेशक छवि रंजन पर कोडरमा डीसी रहते सरकारी आवासीय परिसर से सागवान और शीशम के पेड़ कटवाने का मामला निगरानी में लंबित है।
एसीबी में मामला जाने के बाद भी वह रांची के डीसी पद पर जमे रहे। लगभग तीन साल से राज्य सरकार ने एसीबी को एफआईआर दर्ज कर जांच करने की अनुमति नहीं दी है।
5. गोपाल जी तिवारीः सरकार ने एसीबी से जाँच कराई, पर केस की अनुमति नहीं दी- आइएस गोपालजी तिवारी का मामला भी कम दिलचस्प नहीं है। साल 2019 में नई सरकार बनने के बाद सरकार ने तिवारी के विरुद्ध एसीबी जाँच का आदेश दिया।
एसीबी ने प्रारंभिक जाँच के बाद सरकार से एफआईआर दर्ज करने की अनुमति माँगी। एसीबी जाँच का आदेश देने वाली सरकार ने ही एफआईआर दर्ज करने की अनुमति नहीं दी। एसीबी में कोई एफआईआर नहीं होने के बिना पर उन्हें वर्ष 2022 में राज्य प्रशासनिक सेवा से प्रेन्नति देकर आईएएस बना दिया गया।
6. किरण पासीः मनीष रंजन समेत कई अन्य अफसरों पर भी आरोप- आईएस किरण पासी पर गोड्डा डीसी रहते हुए वर्ष 2019 में पोषाक आपूर्ति में हुई लगभग साढ़े पाँच करोड़ की वित्तीय अनियमियता को लेकर 4 साल से जाँच चल रही है।
ग्रामीण विभाग कार्य के सचिव मनीष रंजन के विरुद्ध पदास्थापना काल में कई परिवाद आए। उसमें ईडी द्वारा गिरफ्तार किए गए विरेन्द्र राम द्वारा भी उपकृत किए जाने के परिवाद थे।
लेकिन वे फाइलों में ही बंद रह गए। जबकि एक अधिकारी ने उस समय सभी परिवादों को पुट अप कर आगे की कार्यवाही करने की अनुसंशा फाइल पर की थी।
अरवा कमल और बाघमारे प्रसाद कृष्णा दोनों ही आईएएस अधिकारी वगैर सरकार के स्वीकृति के लंबी छुट्टी पर चले गए। सरकार वर्षों तक इन्हें ढूंढती रही। इनके विरुद्ध विभागीय कार्यवाही भी चली। लेकिन दंड के मामले में अंतिम फैसले संबंधी फाईल उपर जाकर लटकी हुई है।
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