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      बेटा निशांत की एंट्री से नीतीश कुमार हुए बेचैन, बढ़ी सियासी हलचल

      पटना (एक्सपर्ट मीडिया न्यूज)। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार परिवारवाद के घोर विरोधी माने जाते रहे हैं और खासकर राजद नेता लालू प्रसाद यादव पर परिवारवादी राजनीति को लेकर तीखे हमले करते रहे हैं। लेकिन अब खुद अपने बेटे निशांत कुमार की राजनीतिक एंट्री को लेकर असमंजस की स्थिति में नजर आ रहे हैं।

      सत्ता के गलियारों में इन दिनों चर्चा है कि नीतीश कुमार अपने बेटे को राजनीति में लाने की तैयारियों में जुटे हुए हैं। इस सिलसिले में उन्होंने अपने करीबी राजनीतिक खेमें को सक्रिय कर दिया है। ताकि निशांत को सही समय पर राजनीतिक मंच पर उतारा जा सके।

      बीते दिन से बिहार की सियासत में हलचल तब अधिक बढ़ गई, जब 9 साल बाद सीएम आवास में होली मिलन समारोह आयोजित किया गया। इस आयोजन में जदयू के कई वरिष्ठ नेता शामिल हुए और खास बात यह रही कि निशांत कुमार ने भी पहली बार इस तरह के सार्वजनिक आयोजन में हिस्सा लिया। इस मौके पर उन्होंने जदयू नेताओं से मुलाकात की और उनके साथ होली का आनंद लिया। निशांत की यह सार्वजनिक उपस्थिति सियासी हलकों में चर्चाओं का विषय बन गई है।

      इससे पहले पटना में जदयू दफ्तर के बाहर निशांत कुमार के समर्थन में पोस्टर लगाए गए, जिसमें लिखा था, “बिहार की जनता करे पुकार, निशांत का राजनीति में है स्वागत।” एक अन्य पोस्टर में निशांत के नाम से होली और रमजान की शुभकामनाएं दी गईं।  साथ ही उनसे पार्टी में शामिल होने की अपील की गई।

      इन पोस्टरों में नीतीश कुमार और उनके बेटे निशांत की तस्वीरें भी प्रमुखता से प्रदर्शित की गईं। हालांकि निशांत कुमार ने अब तक राजनीति में अपनी एंट्री को लेकर कोई औपचारिक बयान नहीं दिया है। लेकिन इन पोस्टरों से यह साफ संकेत मिल रहा है कि उनकी राजनीतिक शुरुआत जल्द ही हो सकती है।

      यह भी ध्यान देने योग्य है कि निशांत कुमार पहले ही कह चुके हैं कि वे अपने पिता नीतीश कुमार को फिर से मुख्यमंत्री बनते देखना चाहते हैं। एनडीए के भीतर भी कई लोग चाहते हैं कि नीतीश को मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित किया जाए। इसी बीच जदयू के भीतर भी इस बात की चर्चाएं तेज हो गई हैं कि निशांत की एंट्री से पार्टी को नई ऊर्जा मिलेगी और नीतीश कुमार के बनाए राजनीतिक समीकरणों को बनाए रखने में मदद मिलेगी।

      बता दें कि बिहार की राजनीति में परिवारवाद का विरोध करने वाली पार्टियों में भी अब परिवारवाद का असर साफ दिखता है। इनमें लालू प्रसाद यादव के बेटे तेजस्वी यादव और तेजप्रताप यादव, जगन्नाथ मिश्रा के बेटे नीतीश मिश्रा, भागवत झा के बेटे कीर्ति झा, जीतन राम मांझी के बेटे संतोष सुमन, सत्येंद्र नारायण सिंहा के बेटे निखिल कुमार, कर्पूरी ठाकुर के बेटे रामनाथ ठाकुर और रामविलास पासवान के बेटे चिराग पासवान, शकुनी चौधरी के बेटे सम्राट चौधरी शामिल हैं। इन सबकी पृष्ठभूमि परिवारवाद से जुड़ी हुई है। और यही स्थिति जदयू और भाजपा में भी देखने को मिलती है।

      अब यह देखना दिलचस्प होगा कि नीतीश कुमार, जो परिवारवाद के आलोचक रहे हैं, वे कैसे अपने बेटे निशांत की राजनीति में एंट्री को संतुलित करते हैं और क्या निशांत कुमार बिहार की राजनीति में अपनी एक स्वतंत्र पहचान बना पाएंगे या सिर्फ अपने पिता की विरासत को आगे बढ़ाने का काम करेंगे।

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