“अगर इस कॉलेज की सही ढंग से सीबीआई जांच हो तो यहाँ एक बड़े मेधा घोटाले का पर्दाफाश हो सकता है। साथ ही एक वित्तीय घोटाला भी सामने आ सकता है।”
जूनियर शिक्षक को प्रभारी प्राचार्य नियुक्त किए जाने के खिलाफ वरीय शिक्षकों ने मोर्चा खोलते हुए इसकी शिकायत राज्यपाल से की है।
वर्ष 1977 में स्थापित मगध महाविद्यालय मगध विश्वविद्यालय की संबद्ध ईकाई है। इस महाविद्यालय की स्थापना में चंडी के गोखुलपुर निवासी उमेश प्रसाद तथा 1977 में पहली बार विधायक बने हरिनारायण सिंह के प्रयास से हुआ था। तब उमेश प्रसाद कॉलेज के सचिव बनाए गए थे। वहीं दूसरी तरफ विधायक हरिनारायण सिंह तब से कॉलेज कमिटी से जुड़े हुए हैं।
इस कॉलेज की सबसे बड़ी खासियत यह है कि यह कॉलेज मगध महाविद्यालय से ज्यादा “भाई -भतीजावाद कॉलेज” के नाम से जाना जाता है। इस कॉलेज में आधे से ज्यादा शिक्षक एवं कर्मचारी किसी न किसी रूप में कॉलेज प्रबंधन के रिश्ते से जुड़े हुए हैं।
यहाँ तक कि साला-बहनोई जैसे रिश्तेदार भी कॉलेज में हैं। यही कारण है कि पिछले 40 साल से इस कॉलेज में परिवारवाद और रिश्ते हावी है। पिछले 40 साल से ही (कभी चंडी और अब हरनौत) विधायक हरिनारायण सिंह कॉलेज कमिटी में एकछत्र हैं।
विधायक हरिनारायण सिंह के चहेते ही इस कॉलेज के प्राचार्य बनते रहे हैं। लंबे समय तक प्रो अयोध्या प्रसाद सिंह प्राचार्य रहे।
लेकिन पिछले साल मार्च में उनके सेवानिवृत्त होने के बाद विधायक के खास जूनियर शिक्षक स्वर्ण किरण सिन्हा को वरीयता निर्धारण को तार- तार कर प्रभारी प्राचार्य बना दिया गया ।
मगध महाविद्यालय में एक जूनियर शिक्षक को प्रभारी प्राचार्य बना दिए जाने पर कॉलेज के वरीय शिक्षकों ने मोर्चा खोलते हुए इसकी शिकायत राज्यपाल से की है।
मगध महाविद्यालय के गणित विभाग के प्रो अर्जुन प्रसाद सिंह ने पत्रकार वार्ता में आरोप लगाते हुए कहा कि कॉलेज में दस साल जूनियर शिक्षक को प्राचार्य नियुक्त कर दिया गया जो वरीय शिक्षकों के साथ अन्याय है।
उन्होंने बताया कि पिछले 31 मार्च को तत्कालीन प्राचार्य अयोध्या प्रसाद सेवानिवृत्त हो गए। उनकी जगह प्राचार्य नियुक्ति को लेकर 6 अप्रैल 17 को शासी निकाय की बैठक हुई।
उन्होंने बताया कि प्रभारी प्राचार्य 14 जूलाई 87 को कॉलेज में योगदान दिए हैं। जबकि वे 13 दिसम्बर 1978 से ही कार्यरत हैं साथ ही कॉलेज सेवा आयोग द्वारा अनुशंसित एवं विश्वविद्यालय द्वारा अनुमोदित भी है।
मगध महाविद्यालय में फिलहाल सबसे वरीय शिक्षक राजनीतिक विज्ञान के बीजेन्द्र प्रसाद है जो प्राचार्य बनना नही चाहते हैं। इसलिए दूसरे वरीय शिक्षक अर्जुन प्रसाद प्राचार्य के योग्य मानें जा रहे हैं।
लेकिन कॉलेज में प्राचार्य नियुक्ति में वरीयता निर्धारण की धज्जियां उड़ा कर जूनियर शिक्षक के द्वारा प्राचार्य की कुर्सी हथिया लिए जाने से कॉलेज के वरीय शिक्षकों एवं कर्मचारियों में मायूसी दिख रही है। वे अपने को उपेक्षित महसूस कर रहे हैं।
इस मामले को लेकर प्रो अर्जुन प्रसाद ने कुलाधिपति सह राज्यपाल को शिकायत भी की थी। जिसके आलोक में राज्यपाल सचिवालय के ओएसडी अहमद महमूद ने मगध विश्वविद्यालय के कुल सचिव को जांच कर कार्रवाई करने का निर्देश दिया था। लेकिन अभी तक यह मामला फाइलों में दबा है या फिर राजनीतिक दबाव से दबाया जा रहा है।
पीड़ित शिक्षक ने कहा कि अगर उन्हें न्याय नहीं मिला तो वें न्यायालय का दरवाजा खटखटाएंगें। कॉलेज के कुछ कर्मचारियों ने बताया कि कॉलेज के चंद ठेकेदारों ने उनकी जिंदगी बर्बाद कर दी।
यह कॉलेज 1985 में ही अंगीभूत हो जाता। लेकिन कुछ स्वार्थ लोलुप ने ऐसा होने नहीं दिया। जिसका परिणाम आज हम लोग भुगत रहे हैं।
सवाल उठता है कि इस तरह के मनमानी करने वाले कॉलेज को खुली छूट कब तक मिलती रहेंगी। ऐसे कॉलेज पर नकेल कसना जरूरी हो गया है।