“कैग की इस रिपोर्ट के बाद नालंदा विश्वविद्यालय और उससे जुड़े हुए कमेटियों में खलबली मच गई है। आगे क्या कार्रवाई होती है इसके लिए सबकी नजर केन्द्र सरकार और विश्वविद्यालय के कुलाधिपति की ओर लगी है।”
कुलपति की लापरवाही व उपेक्षा से जमीन अधिग्रहण और राशि आवंटन के छह साल बाद भी विश्वविद्यालय भवन निर्माण कार्य शुरु नहीं हुआ। इसका खुलासा नियंत्रक एवं महालेखाकार परीक्षक ( कैग ) ने किया है।
कैग द्वारा संसद में पेश किए गए ताजा रिपोर्ट के अनुसार अब तक विश्वविद्यालय में नियमित संचालन मंडल का गठन तक नहीं किया गया तथा एकेडमिक स्टाफ की नियुक्ति के लिए नियम भी नहीं बनाए गए हैं। विश्वविद्यालय में विद्यार्थियों का पंजीकरण भी अनुमान से बहुत कम है। 16 देशों के सहयोग से बन रहे इस विश्वविद्यालय का संचालन विदेश मंत्रालय से होता है।
इस विश्वविद्यालय की स्थापना 2010 में बाकायदा एक कानून पारित करके की गई है। इस विश्वविद्यालय में कुल 7 स्कूलों में पढ़ाई होनी है। विश्वविद्यालय कानून की धारा 15 (1 ) के अनुसार विश्वविद्यालय के कुलपति की नियुक्ति विजिटर यानी राष्ट्रपति संचालक मंडल की सिफारिश पर कम से कम तीन लोगों की एक पैनल से किया जाना है।
कैग ने अपनी जाँच पड़ताल में पाया कि विश्वविद्यालय में संचालक मंडल का गठन अब तक नहीं हुआ है। इनकी जगह पर नालंदा परामर्शदाता समूह ने ही कुलपति के रूप में तीन नाम के बजाए केवल एक ही व्यक्ति डॉक्टर गोपाल सभरवाल के नाम की सिफारिश कर दी, जो नियमानुकूल नहीं है।
वही परामर्शदाता समूह नवंबर 2010 में संचालक मंडल में बदल दिया गया था और उसे ही कुलपति के नामों की सिफारिश की शक्ति भी प्रदान की गई थी। लेकिन परामर्शदाता समूह यह शक्ति मिलने के 4 महीने पहले ही अगस्त 2010 में डॉक्टर गोपा सभरवाल के नाम की सिफारिश कर दी थी। इस प्रकार कुलपति के रूप में डॉक्टर गोपा सभरवाल की नियुक्ति में अनियमितता बरती गई है।
कैग के अनुसार संचालक मंडल ने बिना किसी लिखित रिकार्ड के मनमाने तरीके से कुलपति डा. सभरवाल का वेतन दो लाख रूपये प्रतिमाह से बढ़ाकर 3.50 लाख रुपये प्रतिमाह कर दिया। इसी प्रकार इस विश्वविद्यालय में विशेष कार्य पदाधिकारी के पद का प्रावधान नहीं होने के बावजूद अनियमितता बरतते हुए डॉक्टर अंजना शर्मा की नियुक्ति दो लाख रुपए मासिक वेतन पर कर दिया गया।
नालंदा विश्वविद्यालय परिसर का निर्माण कार्य 2010 से 2022 तक पूरा करने का लक्ष्य निर्धारित किया है। लेकिन अफसोस है कि मार्च 2016 तक केवल चाहरदीवारी का निर्माण कराया गया है। भवन निर्माण की दिशा में कोई पहल नहीं की गई।
इतना ही नहीं कैग ने चहारदीवारी की निर्माण में भी अनियमितता होने की पुष्टि की है। नालंदा विश्वविद्यालय परिसर के पहले चरण के निर्माण के लिए निकाली गई निविदा में भी कैग ने अनियमितता पकड़ी है।