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जज मानवेन्द्र मिश्रा का फैसला- ‘2 माह तक यह जागरुकता अभियान चलाए मारपीट का दोषी किशोर’

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सजायाफ्ता किशोर अगले दो माह तक बिहार शरीफ नगर आयुक्त सौरव जोरवाल की निगरानी में “प्लास्टिक/पोलिथीन से होने वाले प्रदुषण के प्रति लोगों के बीच जागरुकता अभियान चलाएगा…………..”

एक्सपर्ट मीडिया न्यूज नेटवर्क। नालंदा जिला किशोर न्याय परिषद के प्रधान दंडाधिकारी मानवेन्द्र मिश्रा ने जेजेबी वाद संख्या-130/15 एवं भादवि की धारा 341,447,307,504, 323 के तहत सारे थाना में दर्ज कांड संख्या-22/12 के एक किशोर आरोपी को दोषी करार देते हुए दो माह तक सामाजिक कार्य लेने की सजा दी हैSATYMEV JAYTE 1

किशोर न्याय परिषद के अभियोजन पदाधिकारी राजेश पाठक ने बताया कि अभिलेख पर उपलब्ध साक्ष्यों से यह प्रतीत हुआ कि दोषी किशोर की वर्तमान उम्र 21 वर्ष है और वह स्नातक अंतिम वर्ष का छात्र है तथा प्रतियोगिता परीक्षा की तैयारी कर रहा है।

दोषी किशोर को पर्वेक्षण गृह में आवासित करने से उसका अध्ययन प्रभावित न हो, इसी मानवीय दृष्टिकोण से प्रधान दंडाधिकारी मानवेन्द्र मिश्रा ने उसे दो माह तक “प्लास्टिक/पोलिथीन से होने वाले प्रदुषण के प्रति लोगों के बीच जागरुकता अभियान चलाने की सजा दी है।

उन्होंने बताया कि सजा अवधि में दोषी किशोर दो माह तक बिहार शरीफ नगर आयुक्त सौरव जोरवाल के निर्देशन में अपनी सामाजिक जागरुकता का कार्य  करेगा। उक्त कार्य अवधि के दौरान किशोर के आचरण पर भी ध्यान दिया जाना आवश्यक है कि क्या वह इस अवधि में वह सदाचारी रहकर अपने कर्तव्यों का सम्यक रुप से पालन किया।

किशोर न्याय परिषद के सदस्य धर्मेंद्र कुमार ने इस फैसले की बाबत बताया कि इस तरह की सजा देने का मुख्य उदेश्य किशोर में मानवीय गुणों का विकास और राष्ट्र व समाज के प्रति उसकी जिम्मेवारी का बोध कराना है।, जिससे उसमें बचपन में आए समाजिक अपराधिक मनोवृति दूर हो सके तथा भविष्य में एक अच्छा नागरिक बनकर अपने कर्तव्यों का सम्यक रुप से निर्वहण कर सके।

दोषी किशोर पर आरोप था कि उसने अपने पड़ोसी के साथ गाली-गलौज की और फिर आवेश में आकर एक महिला के सिर पर डंडा दे मारा, जिससे उसका सर फट गया और खून बहने लगा। बाद में उसे बेहोशी की हालत में उसे अस्पताल में भर्ती कराया गया।

इसी मामलें में किशोर न्याय परिषद के प्रधान दंडाधिकारी मानवेन्द्र मिश्र ने उभय पक्षों के अंतिम बहस सुनने और उपस्थित अभिलेख विवेचन के बाद अपने आदेश में लिखा है कि सभी तथ्यों को देखते हुए परिषद यह निष्कर्ष पर पहुंचती है कि किशोर अपराधी को दंड देते समय यह बात ध्यान रखने योग्य है कि विधि विरुद्ध किशोर के साथ भी न्याय हो अथार्त उसे सुधारने के लिए उसे अपराध के अनुपात के बराबर ही दंड दिया जाना चाहिए।

उन्होंने आगे लिखा है कि किशोर अपराधी के मामले में कठोर दंड देकर भय द्वारा अपराध का निराकरण करना सम्यक प्रतीत नहीं होता है। क्योंकि भय सच्ची नैतिकता का आधार कभी नहीं बन सकता है।

फिर भी दंड विधि की अपनी अपेक्षाएं हैं कि अगर कोई अभियुक्त अपने पूर्ण ज्ञान में किसी अपराध को कारित करता है तो उसे सजा मिलनी ही चाहिए।

चूकि विधि विरुद्ध किशोर द्वारा मारपीट जैसे अपराध कारित किया गया है। अतः भारतीय दंड संहिता की धारा 341, 447, 307, 504,323 में संलिप्तता के लिए सामाजिक कार्य करने का आदेश दिया जाता है।

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