कही सिर्फ़ किताबों में तो नही है यह प्रावधान ?
एक्सपर्ट मीडिया न्यूज डेस्क। बिहार पब्लिक लैंड एनक्रॉचमेंट एक्ट की धारा 16 में वर्णित प्रवधान के मुताबिक किसी भी व्यवहार न्यायालय (सिविल कोर्ट) को इससे जुड़े किसी भी मुकदमें को सुनने, उसे पंजीकृत करने का अधिकार ही नहीं है। प्रशासन के विरुद्ध ऐसे मामलों को हाई कोर्ट या सुप्रीम कोर्ट में भी चुनौती नहीं दिया जा सकता है।
लेकिन राजगीर मलमास मेला सैरात भूमि से अतिक्रमण हटाने के दौरान बड़े भूमाफियाओं की किस न्यायालय के किस सुनवाई और किस आदेश के आधार पर प्रशासनिक अधिकारियों द्वारा उन्हें यूं ही छोड़ दिया गया है, यह एक बड़ा सबाल उठ खड़ा हुआ है।
पटना हाई कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता विश्वनाथ प्रसाद ने आज अपने फेसबुक वाल पर बिहार पब्लिक लैंड एनक्रॉचमेंट एक्ट बुक की पृष्ठ संख्या-40 इस सवाल के साथ जारी किया है कि “कहीं किताबों में तो नहीं यह प्रावधान ?”
वेशक उनका यह सबाल राजगीर मलमास मेला सैरात भूमि पर कायम बड़े अतिक्रमण कारियों और जिम्मेवार नीचे से उपर सभी स्तर के जिम्मेवार प्रशासनिक महकमों के करींदों को ही कटघरे में खड़ा नहीं करता, बल्कि उपरोक्त संदर्भ में बाधा उत्पन्न करने वाली न्यायालयों को भी अपनी परिधि में ले लेता है।
क्योंकि ऐसा हो ही नहीं सकता कि बिहार पब्लिक लैंड एनक्रॉचमेंट एक्ट की धारा 16 के तहत जिन प्रशासनिक अधिकारियों के पास न्यायालय से अधिक अधिकार और दायित्व हासिल हो, वह किसी भी न्यायालय में अपना बचाव नहीं कर सकता और उसके आदेश को मानने को बाध्य हो जाये।
नीचे गौर से पढ़िये कि क्या कहता है बिहार पब्लिक लैंड एनक्रॉचमेंट एक्ट की धारा 16 और राजगीर मलमास मेला सैरात भूमि को लेकर क्या भूमिका निभा रही है प्रशासन और न्यायालय………