जयप्रकाश / एक्सपर्ट मीडिया डेस्क। “न जाने किस भंवर में है जिंदगी। ठहाके मौन है, गायब हँसी है। नहीं परछाईयां तक साथ देती, इसी का नाम शायद बेबसी है।”
किसी कवि की यह पंक्ति विलोपित चंडी विधानसभा के एक पूर्व विधायक पर अक्षरश: सटीक बैठती है। पिछले सत्रह साल से राजनीतिक हाशिए पर चल रहे और राजनीतिक वनवास झेल रहें पूर्व विधायक अनिल सिंह का राजनीतिक सूखापन लगता है कि अब समाप्त होने वाला है। अपने पिता पूर्व शिक्षा मंत्री डॉ रामराज सिंह की 35 वीं स्मृति दिवस पर अपनी राजनीतिक शक्ति दिखाने की तैयारी में जुट गए हैं ।
विलोपित चंडी विधानसभा के पूर्व विधायक अनिल सिंह 4 दिसम्बर को अपने पिता पूर्व शिक्षा मंत्री डॉ रामराज सिंह की 35 वीं स्मृति दिवस पर अपने राजनीतिक शक्ति का परीक्षण करेंगे । कई साल बाद पूर्व शिक्षा मंत्री की स्मृति समारोह में कई दिग्गजों का जुटान होने वाला है। एक बार फिर से उनका अंजूमन गुलजार होने वाला है।
पूर्व शिक्षा मंत्री की स्मृति समारोह में बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, केन्द्रीय मंत्री गिरिराज सिंह, अश्विनी चौबे तथा कृषि मंत्री सह भाजपा विधायक दल नेता प्रेम कुमार, दिल्ली प्रदेश भाजपा अध्यक्ष सह भोजपुरी गायक-कलाकार सांसद मनोज तिवारी आदि सरीखे कई दिग्गजों के आने की संभावना बन रही है। स्मृति सामारोह को लेकर व्यापक तैयारी चल रही है।
चंडी विधानसभा से पांच बार विधायक और कई विभागों में मंत्री रहें डॉ रामराज सिंह के पुत्र अनिल सिंह 1982 में उनके निधन के बाद 1983 में हुए उपचुनाव में पहली बार किस्मत आजमाई, लेकिन सफलता हासिल नहीं हुई।
लेकिन 1985 के आम विधानसभा चुनाव में श्री सिंह कांग्रेस से पहली बार विधायक बनने में कामयाब हुए। 1990 में उन्हें शिकस्त का सामना करना पड़ा । इसी दौरान जनता दल में एक और टूट हो चुकी थी।
सीएम नीतीश कुमार उस दौरान एक नई पार्टी समता पार्टी बनाने की कवायत कर रहे थे। समता पार्टी के गठन में श्री सिंह की भी भूमिका अग्रणी मानी जाती है।1993 में अपने समर्थकों के साथ समता पार्टी में शामिल हो गए।
1995 में अनिल सिंह समता पार्टी के टिकट पर चंडी विधानसभा से चुनाव मैदान में उतरे। इस चुनाव में अपने परम्परागत प्रतिद्वंद्वी हरिनारायण सिंह को कांटे के मुकाबले में पटखनी दे दी। समता पार्टी के टिकट पर गिने चुने विधायकों में अनिल सिंह भी एक थे।
लेकिन 2000 के चुनाव में अनिल सिंह का टिकट समता पार्टी से नीतीश कुमार ने काट दिया । उनके जगह राजद छोड़कर आए पूर्व विधायक हरिनारायण सिंह को टिकट दे दिया। अनिल सिंह हाथ पर हाथ धरे रह गए। यही उनकी सबसे बड़ी राजनीतिक भूल मानी जाती है। जिन्हें एक भूल ने डेढ़ दशक से राजनीतिक हाशिए पर ढकेले हुए है।
टिकट नहीं मिलने के बाद चंडी की जनता में जितना गुस्सा और उबाल था कि कहा नहीं जा सकता था । अगर श्री सिंह निर्दलीय चुनाव मैदान में होते तो नीतीश कुमार को करारा जबाब दे सकते थे ।
हो सकता था वह उस समय निर्दलीय चुनाव जीत भी जाते। अगर नहीं भी जीत पाते तो कम से कम समता पार्टी के तत्कालीन उम्मीदवार हरिनारायण सिंह को तो हरा ही सकते थे ।
लेकिन उन्होंने ऐसा कुछ नहीं किया जैसा कि आज की राजनीतिक में देखने को मिलता है। टिकट कटने पर लोग बगाबती हो जाते हैं।
बाद में समता पार्टी का विलय जद यू में हो गया । लेकिन जदयू की तरफ से कोई हरी झंडी नहीं मिलने और उपेक्षा से नाराज अनिल सिंह ने राजद का थामन थाम लिया और 4 दिसम्बर 2001 को अनिल सिंह अपने पिता की स्मृति समारोह राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद को आमंत्रित कर अपनी ताकत दिखाई थी।
तब से श्री सिंह राजद, एनसीपी , रालोसपा तथा निर्दलीय लोकसभा और विधानसभा में कई बार किस्मत आजमाई लेकिन, सफल नहीं बचा सकें ।
जब सब जगह से थक हार गए तो दो साल पूर्व वे अपने लाव -लश्कर के साथ पटना में भाजपा अध्यक्ष मंगल पांडेय के समक्ष भाजपा में शामिल हो गए। अनिल सिंह इस आशा एवं विश्वास के साथ के साथ भाजपा में शामिल हुए थे कि शायद ‘भगवा रंग’ उनके जीवन को रंगीन कर दें ।
पिछले विधानसभा चुनाव में हरनौत से भाजपा टिकट मिलने की उन्हें पूरी आशा थी। लेकिन ऐन मौके पर भाजपा की सहयोगी लोजपा सीट ले गई। पूर्व विधायक की किस्मत एक बार भी दगा दे गई ।
अपने राजनीतिक भंवर को पिछले डेढ़ दशक संभालने के प्रयास में लगे रहे पूर्व विधायक कई बार जद यू में वापसी करना चाहा।लेकिन जद यू की नजर में वे हमेशा ‘अछूत’ बने रहे।
जद यू से ठुकराए जाने के बाद अपने राजनीतिक अस्तित्व को बचाने के लिए एक मात्र विकल्प ‘भगवा बिग्रेड’ ही बचा था। लेकिन अब तक यहां भी दाल नहीं गली। पिछले चुनाव में इन्हें टिकट भी नसीब नहीं हुआ।
पूर्व विधायक अनिल सिंह अपने पिता रामराज सिंह की राजनीतिक विरासत को संभालने की जद्दोजहद कर रहे हैं । 4 दिसम्बर को पूर्व विधायक अपने पिता की 35 वीं स्मृति समारोह में अपनी राजनीतिक कूबत का प्रदर्शन करने की ठान ली है।
इस स्मृति समारोह में उन्होंने अब सीएम नीतीश कुमार को आमंत्रण कर उनके मन को भांपने का मन बना लिया है। सबसे बड़ी बात यह है कि सीएम नीतीश कुमार के साथ बीजेपी के कई ऐसे दिग्गज भी मंच साझा करेंगे, जो सहयोगी दल होने के बाद भी नीतीश कुमार के राजनीतिक विरोधी माने जाते हैं ।
उनमें केन्द्रीय मंत्री गिरिराज सिंह, अश्विनी चौबे तथा कृषि मंत्री सह भाजपा विधायक दल नेता प्रेम कुमार, दिल्ली प्रदेश भाजपा अध्यक्ष सह भोजपुरी गायक-कलाकार सांसद मनोज तिवारी आदि शामिल है। इस समारोह में शिक्षा मंत्री कृष्ण नंदन वर्मा सहित कई दिग्गज नेता भी शामिल होंगे।
4 दिसम्बर को आयोजित स्मृति समारोह के बाद पता चल जाएगा कि पूर्व विधायक का अगला पड़ाव क्या होगा। इनका राजनीतिक वनवास खत्म होगा या नहीं। लेकिन यह राजनीतिक संभावनाओं का खेल है और राजनीतिक गलियारे में सब कुछ संभव है।