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कांग्रेस में जान फूंकने के लिए ‘पीके’ का सहारा क्यों? लौट सकता है कांग्रेस का पुराना वैभव?

इंडिया न्यूज रिपोर्टर डेस्क।  यह पहली बार ही हुआ है जबकि कांग्रेस लंबे समय से न केवल केंद्र में सत्ता से बाहर है वरन सूबों में भी कांग्रेस अब सिमटती दिख रही है। कांग्रेस में आला नेताओं का जी 23 भी अंदर ही अंदर तलवार पजाते नजर आ रहे हैं।

कांग्रेस का वैभव रातों रात नहीं समाप्त हुआ है। कांग्रेस में जैसे जैसे आलाकमान के द्वारा ढिलाई बरतना आरंभ किया गया वैसे ही अराजकता हावी होती गई।

मनमोहन सिंह की 10 साल पारी में भ्रष्टाचार के सारे रिकार्ड मानो ध्वस्त हो गए। कांग्रेस में श्रीमति सोनिया गांधी और राहुल गांधी को उनके सलाहकारों ने इस कदर भ्रमित कर रखा था कि वे कोई ठोस निर्णय भी नहीं ले पा रहे थे।

कभी देश पर एकछत्र राज करने वाली कांग्रेस आज छत्तीसगढ़ और राजस्थान में ही सत्ता में है। झारखण्ड एवं महाराष्ट्र में कांग्रेस गठबंधन के घटक दल की भूमिका में है। कांग्रेस के लिए यह वाकई विचार करने वाली बात है।

कांग्रस आलाकमान को सभी बातों पर गौर करना होगा। सबसे पहले तो उन्हें अपने सलाहकार बदलने होंगे, क्योंकि जिन सलाहकार रूपी बैसाखियों के बल पर आज सोनिया गांधी और राहुल गांधी चल रहे हैं, वह बहुत मजबूत नहीं दिख रही हैं।

कांग्रेस को प्रदेश स्तर से लेकर ब्लाक स्तर के संगठन की भूमिका पर भी गौर करना जरूरी है। जिला स्तर पर स्थानीय भाजपा सांसदों या विधायकों की गलत नीतियों का विरोध कांग्रेस के जिला प्रवक्ताओं के द्वारा क्यों नहीं किया जाता इस बारे में भी विचार करना जरूरी है।

हाल ही में प्रशांत किशोर और सोनिया गांधी के बीच बार बार हो रही बैठकों की खबरें जमकर वायरल हो रही हैं। कहा जा रहा है कि प्रशांत किशोर के जरिए अगर कांग्रेस को उबारने का प्रयास किया जा रहा है, तो एक संदेश यह भी जा रहा है कि क्या कांग्रेस में करिश्माई नेतृत्व समाप्त हो गया है!

हर राज्य में विधान सभाओं में कांग्रेस के द्वारा विपक्ष की भूमिका का निर्वहन क्या ईमानदारी से किया जा रहा है! संभाग, जिला, तहसील या ब्लाक स्तर पर कांग्रेस क्या स्थानीय मुद्दों को जोर शोर से उठा रहे हैं! इस तरह की बातों पर भी सर्वेक्षण किया जाना बहुत जरूरी महसूस हो रहा है।

बहरहाल, जो खबरें बाहर आ रही हैं उनके अनुसार पीके के द्वारा लोकसभा की 543 सीटों के बजाए साढ़े तीन सौ सीटों के आसपास ही अपना लक्ष्य साधने की बात कही जा रही है। इसके अलावा कांग्रेस के पास नारों की कमी साफ दिखाई देती रही है। जब जब राहुल गांधी पर सोशल मीडिया में हमले हुए हैं, तब तब कांग्रेस की राष्ट्रीय स्तर से लेकर प्रदेश और जिलों की आईटी सेल ने इसका प्रतिकार तक नहीं किया!

आखिर राहुल गांधी के मामले में आईटी सेल खामोश कैसे रह जाती है! इसका सीधा सा जवाब है कि आईटी सेल के पदाधिकारियों को बाकायदा प्रशिक्षण नहीं दिया जाता है। वर्तमान समय सोशल मीडिया का है।

सोशल मीडिया पर कांग्रेस के नेता जन्म दिवस की बधाई हो, तीज त्यौहारों पर शुभकामना संदेश हों या कोई और मौका अपनी बड़ी सी तस्वीर लगाकर प्रदेश या राष्ट्रीय स्तर के अपने नेता की फोटो लगाकर सोशल मीडिया पर इसे डाल देते हैं। इसमें कांग्रेस अध्यक्ष, प्रदेशों के अध्यक्षो, विधायकों, सांसदों को बिसार दिया जाता है।

वैसे पीके अगर कांग्रेस में प्रवेश लेते हैं या कांग्रेस से उनका गठबंधन होता है तो उनकी टीम कितना जोर मार पाएगी यह कहना बहुत मुश्किल ही है। इस साल गुजरात और हिमाचल में चुनाव हैं तो अगले साल अंत में मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में चुनाव होने हैं।

इसके बाद 2024 में आम चुनाव हैं। इन पांच राज्यों में कांग्रेस के कदमताल देखकर यह प्रतीत नहीं होता है कि कांग्रेस अभी चुनाव मोड में आ चुकी है। कांग्रेस के अनुषांगिक संगठन भी सुस्सुप्तावस्था में ही दिख रहे हैं।

कांग्रेस का एक अनुषांगिक संगठन सेवादल के नाम से जाना जाता है। कांग्रेस सेवादल एक समय में कांग्रेस की रीढ़ रहा करता था, पर अब यह बड़े नेताओं के आगमन पर सलामी देने तक ही सीमित रह गया है।

जो बात अभी हमने कही कि पीके को लाने का मतलब यही निकाला जाएगा कि कांग्रेस में करिश्माई नेता का अभाव है! वहीं, जी 23 के आसपास के लोग यह चर्चा करते भी दिख रहे हैं कि क्या वजह है कि सवा सौ साल पुरानी कांग्रेस को आऊटसोर्स करना पड़ रहा है।

पिछले चुनावों में नरेंद्र मोदी ने एक दो स्थानों पर कहा था कि कांग्रेस को ढूंढते रह जाएंगे लोग! आज कमोबेश हालात वैसे ही दिखाई देने लगे हैं। कांग्रेस मुख्यालय 24 अकबर रोड के एक बड़े नेता ने पहचान उजागर न करने की शर्त पर इशारों इशारों में यह तक कह दिया कि सिर्फ एक कक्ष में रंग रोगन कराने से क्या होगा, यहां तो पूरी इमारत ही मरम्मत मांग रही है! कुछ लोग नेहरू गांधी परिवार के बिना कांग्रेस के बिखर जाने की बात करते हैं तो कुछ लोग नए और युवा नेतृत्व के हिमायती दिख रहे हैं।

वर्तमान समय में कांग्रेस अगर महज दो राज्यों में ही रह गई है तो कांग्रेस के आला नेताओं को यह स्वीकार करना चाहिए कि युवा पीढ़ी परिवर्तन चाहती है। सिर्फ परिवर्तन ही नहीं युवा पीढ़ी नए भारत का निर्माण करने लालायित है।

आज साठ के दशक की नीतियों पर चलकर नए भारत का निर्माण शायद न हो पाए। मानव संसाधन विकास मंत्रालय के द्वारा शालेय और महाविद्यालयों के पाठ्यक्रमों में जो भी बातें इतिहास से संबंधित शामिल की थीं, उनकी पोल भी आज युवा खोलते नजर आ रहे हैं।

कुछ भी कहें, धारा 370, जम्मू काश्मीर मसला, राम मंदिर का निर्माण आदि एक बड़े वर्ग की दुखती नब्ज ही मानी जा सकती थी, जिस पर भाजपा ने हाथ रखा है। आज कांग्रेस इन सारे मामलों में जितना भी विरोध दर्ज कराती है वह कांग्रेस के लिए लाभ के बजाए घाटे का सौदा ही साबित होता नजर आ रहा है।

गोवा में सरकार न बना पाना, मध्य प्रदेश में सरकार रहते हुए गिर जाना जैसे मामलों में आलाकमान की चुप्पी से बहुत सारे संदेश कार्यकर्ताओं के बीच जाते हुए दिख रहे हैं।

दरअसल, कांग्रेस में एक ट्रेंड सदा से रहा है। अगर किसी राज्य में सरकार नहीं बन पाई तब उस सूबे के आला नेताओं के द्वारा आंकड़ों की बाजीगरी दिखाकर आलाकमान को यह बताने का प्रयास किया जाता था कि भले ही हम सरकार नहीं बना पाए हों, पर हमारा वोट परसेंटेज बढ़ा है।

इससे अलाकमान संतुष्ट भी नजर आते थे, पर आला नेता यह भूल जाते हैं कि इस बार हार गए तो उसके पांच सालों के बाद होने वाले चुनावों में वे मतदाता भी भाग लेंगे जो उस चुनाव के समय 13 बरस के होंगे, और इन मतदाताओं को अपने पक्ष में करने के लिए कांग्रेस के पास कोई ठोस रणनीति नजर नहीं आती है।

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