“28 नवंबर 2000 को लोजपा बनी थी। तब से पहली बार पार्टी में टूट हुई है। अब संगठन में भी बड़ी संख्या में लोग पारस के साथ जा सकते हैं। इससे चिराग की ताकत और घट सकती है…
एक्सपर्ट मीडिया न्यूज डेस्क। राजनीति में कोई अपना नहीं होता है। कुर्सी के लिए नेता कुछ भी कर सकता है। बिहार की राजनीति में थाली के बैगन वाली ही अधिक चरित्र देखने को मिल रहा है। चाहे वह कोई भी दल हो, सब इसी विकृति से पीड़ित है।
खबर है कि दिवंगत रामविलास पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा) के पांच सांसदों ने राष्ट्रीय अध्यक्ष चिराग पासवान को सभी पदों से हटा दिया है। उनके स्थान पर चाचा पशुपति कुमार पारस को अपना नेता चुन लिया है। पारस को राष्ट्रीय अध्यक्ष के साथ संसदीय दल के नेता का जिम्मा भी सौंपा गया है।
इसके साथ ही लोजपा सांसद पशुपति कुमार पारस, चौधरी महबूब अली कैसर, वीणा सिंह, चंदन सिंह और प्रिंसराज की चिराग से राहें अलग हो गई हैं। पार्टी में इस टूट की वजह भाजपा और जदयू के बीच चिराग को लेकर जारी तकरार को माना जा रहा है।
कहा जाता है कि बीते कल देर शाम तक चली लोजपा सांसदों की बैठक में इस फैसले पर मुहर लगी। बाद में पांचों सांसदों ने अपने फैसले की जानकारी लोकसभा अध्यक्ष ओम बिड़ला को भी दी।
इन सांसदों ने लोकसभा अध्यक्ष को आधिकारिक पत्र भी सौंप दिया। सोमवार को ये सांसद चुनाव आयोग को भी इसकी जानकारी देंगे। उसके बाद अपने फैसलों की आधिकारिक घोषणा भी करेंगे।
बताया जाता है कि पशुपति कुमार पारस पिछले कुछ दिनों से लगातार जदयू सांसद ललन सिंह के संपर्क में थे। पटना में दोनों के बीच मुलाकात भी हुई थी। दिल्ली में भी इनके बीच लगातार बातचीत होती रही है। सांसदों के साथ भी उनका संपर्क बना हुआ था।
पारस लोजपा सांसदों में सबसे वरिष्ठ हैं। वे रामविलास पासवान के छोटे भाई हैं। जाहिर है कि उनके नेता होने से दूसरे सांसद भी असहज महसूस नहीं करेंगे। 5 सांसदों के फैसले के बाद लोजपा में बड़े घमासान होना लाजमि है। लोजपा के कई नेता पहले भी जदयू में शामिल हो चुके हैं। आगे यह सिलसिला बढ़ सकती है।
अभी तक चिराग को रामविलास पासवान का पुत्र होने का फायदा मिलता रहा है। विस चुनाव के दौरान चिराग ने खुद को पीएम मोदी का हनुमान बताया था। लेकिन अब उनकी पार्टी पर कब्जे को लेकर जोर-आजमाइश होनी तय है।
इन दिनों केंद्रीय मंत्रिमंडल विस्तार की चर्चा तेज है। ऐसे में पारस केन्द्र में मंत्री बन सकते हैं। 2019 में जब प्रधानमंत्री मोदी ने दोबारा कमान संभाली तब एक फॉर्मूला बना कि सहयोगी दलों को मंत्रिपरिषद में एक-एक सीट दी जाएगी।
तब 16 सांसदों वाली जदयू मंत्रिपरिषद में शामिल नहीं हुई। उसकी कम से कम दो सीटों की मांग थी। वहीं 6 सांसदों वाली लोजपा से रामविलास पासवान मंत्री बने थे।
लेकिन विधानसभा चुनाव के ठीक पहले रामविलास पासवान का निधन हो गया। इसके बाद केंद्रीय मंत्रिमंडल में लोजपा का खाली हुआ कोटा भरा नहीं गया। विधानसभा चुनाव में भी लोजपा एनडीए से अलग 135 सीटों पर अकेले चुनाव लड़ी।
इसमें जदयू की 115 सीटों पर उसने प्रत्याशी उतारे थे। इस चुनाव में जदयू ने 36 सीटों के नुकसान के लिए लोजपा को सीधे जिम्मेदार माना था। तभी से सवाल उठने लगे कि लोजपा, एनडीए फोल्ड में रहेगी या नहीं।