इंडिया न्यूज रिपोर्टर डेस्क। इन दिनों बिहार के सीएम नीतीश कुमार के गृह जिले नालंदा अवस्थित बिहारशरीफ मंडल कारा में कैदियों का समाजवाद खूब दिख रहा है। भाईचारे और प्रेम का ऐसा नजारा बिहार के किसी जेल में नहीं मिल सकता है, जो नजारा बिहारशरीफ जेल में दिखने को मिल रहा है।
बीते शनिवार को मंडल कारा का निरीक्षण करने पहुंचे जज मानवेन्द्र मिश्र भी कैदियों के बीच भाईचारे को देखकर हतप्रभ रह गए।
उन्होंने निरीक्षण के दौरान देखा कि एक कठौती में पांच कैदी एक साथ भोजन कर रहे हैं।
आमतौर पर ऐसा दृश्य दोस्तों के बीच देखा जाता रहा है। लेकिन कैदियों का एक ही बर्तन में खाते देखकर जज श्री मिश्र पहले तो अंचभित हुए। फिर वहां की व्यवस्था देखकर उन्हें जेल व्यवस्था पर खींज भी आई।
उन्होंने जेल प्रशासन को कड़ी फटकार लगाते हुए आदेश दिया कि हर हालत में जेल मैनुअल का पालन होना चाहिए।
जज मानवेन्द्र मिश्र शनिवार को जिला जज डॉ रमेश चंद्र द्विवेदी के निर्देश पर मंडल कारा बिहारशरीफ में छापेमारी करने पहुंचे। वहां के हालात देखकर उन्हें काफी गुस्सा भी आया।
कैदियों को एक ही कठौती में एक साथ खाते देखकर उन्हें आश्चर्य हुआ, आखिर ऐसा कैदी क्यों कर रहे हैं। लेकिन बाद में उन्हें हकीकत ज्ञात हुआ कि जेल में कैदियों के बीच थाली नहीं बांटी गई है। इसलिए चार पांच कैदी एक साथ कठौती में ही जानवर की तरह खाते हैं।
उन्हें तब और ज्यादा आश्चर्य हुआ कि कुछ कैदी उस कठौती के खाली होने का इंतजार कर रहें थें ताकि वे भी चार-पांच लोगों के साथ सामूहिक भोजन कर सके। जज मानवेन्द्र मिश्र ने जेल में भरी गंदगी और कमरे में जाले देखकर जेल प्रशासन पर नाराजगी प्रकट की।
यहां तक कि जेल के वार्ड में एक ही चौकी पर तीन चार कैदी किसी तरह रात काटते हैं। कुछ कैदियों ने उनसे कंबल तथा अन्य सुविधाएं नहीं होने की शिकायत की।
जज मानवेन्द्र मिश्र ने सजायाफ्ता कैदियों को दूसरे जेल में शिफ्ट करने का आदेश भी जेल प्रशासन को दिया। इस मंडल कारा में अधिकतम 739 कैदियों को रखने की क्षमता है लेकिन यहां 1324 कैदी को रखे जा रहे हैं।
बहरहाल, किसी भी सरकार और उसकी विधि व्यवस्था का सही आंकलन करना हो तो जेल हो आईए। राजा-महाराज के दौर में भी शासन के हर पहलु उसके कैदखानों में दिखते थे।
बिहार में पिछले पन्द्रह साल से जिस राजनेता का शासन है, वे इसी जिले के निवासी हैं। उनका राजनीतिक उत्थान इसी जिले से हुआ। वे अपने गृह जिला पर मेहरबान खूब रहें हैं।
उन्होंने गाँव-शहर के लोगों तक शुद्ध पेयजल तो दूर, सीधे गंगाजल पहुंचाने का बीड़ा उठा रखा है। ऐसे भी गंगा जल की जरुरत कब होती है, यह किसी से छुपी हुई नहीं है।
उनके सुशासन-विकास को मुंह चिढ़ाती बिहार शरीफ मंडल जेल की ताजा हालत साफ स्पष्ट करता है कि सरकार और उससे तंत्र अब पूरी तरह से ‘चौपाया…’ हो गया है।
अब देखना है कि जज साहब के दौरे और निर्देश के बाद बिहार शरीफ मंडल कारा की हालत में कितना सुधार हो पाता है? क्योंकि बिहार शरीफ जेल में यह कोई नया समस्या नहीं हैं।
यहाँ जेल प्रबंधन से जु़ड़े लोग सारी समस्याएं सिर्फ कमाई के लिए जान बूझ कर पैदा करते है। क्योंकि कैदियों को जितनी अधिक तकलीफ होगी, उसके परिजन मुक्ति के लिए उतनी ही अधिक चढ़ावा पहुंचाएंगे। और पहुंचाते भी है।
वैसे लोगों को सब सुविधा उपलब्ध होती है। उन्हें मोबाईल पर अपनी प्रेमिका तक से घंटो बतियाने की छूट होती हैं। अंदर से ही गंभीर वारदात को अंजाम उनके बाँए हाथ का खेल होता है। और जो समर्थ नहीं होते। जिनका कोई नहीं होता, यहाँ भी उसका कोई नहीं होता। यह सब किसी से छुपी हुई नहीं है।
यह कदापि नहीं माना जा सकता है कि सरकार का गृह कारा जैसे संवेदनशील विभाग का बजट इतना कम होता है कि कैदियों को भोजन के लिए कठौती का सहारा लेना पड़े। उसमें भी कतार में खड़ा होना पड़े। आधा पेट या भूखा सोना पड़े।
अगर ऐसा है तो विकास के कसीदे गढ़ने वाले सीएम नीतीश कुमार तक के लिए इससे बड़ी शर्म की बात क्या हो सकती है? सरकार को जेलों और उसकी व्यवस्था को लेकर श्वेत पत्र जारी करनी चाहिए, क्योकिं इंसानों से पशुवत व्यवहार सभ्य शासन का हिस्सा कदापि नहीं हो सकता।
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