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राँची के देव कुमार की ‘मैं हूँ झारखंड’ पुस्तक बनकर तैयार, सुप्रसिद्ध लेखक दीपक सवाल ने लिखी यूं प्रस्तावना

इस पुस्तक में देव कुमार की मेहनत और लगन साफ तौर पर देखी जा सकती है। इस पुस्तक में कुल 43 अध्याय हैं और सभी के सभी काफी उपयोगी बन गए हैं। हर अध्याय में उपयोगी और अनेक नई जानकारियों को रोचक तरीके से प्रस्तुत किया गया है...

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एक्सपर्ट मीडिया न्यूज नेटवर्क डेस्क। ‘मैं हूँ झारखंड’ (झारखंड सामान्य ज्ञान की अनोखी पुस्तक) की रचना देव कुमार द्वारा की गई है। उनकी पहली कृति ‘बिरहोर-हिंदी-अंग्रेजी शब्दकोश’ है एवं ‘मैं हूँ झारखंड’ दूसरी कृति है। इस पुस्तक की प्रस्तावना सुप्रसिद्ध लेखक व प्रभात खबर के वरीय संवाददाता दीपक सवाल द्वारा लिखी गई है।

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सुप्रसिद्ध लेखक व प्रभात खबर के वरीय संवाददाता दीपक सवाल…

प्रस्तावना में उन्होंने उल्लेख किया है कि झारखंड अनंत खूबियों से भरा एक खूबसूरत राज्य है। अकूत खनिज संपदाओं ने इसका महत्व और भी अधिक बढ़ा रखा है।

कोयला, अभ्रक, लोहा, तांबा, चीनी मिट्टी, फायर क्ले, कायनाइट, ग्रेफाइट, बॉक्साइट तथा चुना पत्थर के उत्पादन में अपना झारखंड अनेक राज्यों से आगे है। एस्बेस्टस, क्वार्ट्ज तथा आण्विक खनिज के उत्पादन में भी झारखंड का महत्वपूर्ण स्थान है।

इसके अलावा अनेक बड़े-बड़े कारखानों व अन्य बड़ी परियोजनाओं ने भी दुनिया भर में इस राज्य का ध्यान खींच रखा है। लेकिन, इसे विडंबना ही कहेंगे कि इतना परिपूर्ण होने के बावजूद इस राज्य का अपेक्षित विकास थमा हुआ था।

यूं कहें, अविभाजित बिहार के इस हिस्से को विकास की पटरी नहीं मिल पा रही थी। गांवों की दशा आजादी के दशकों बाद भी जश की तश थी। यहां के आदिवासी और मूलवासी शोषण, उत्पीड़न और उपेक्षा के भंवर से निकल नहीं पा रहे थे। प्रतिभाओं को भी उभरने-निखरने का पर्याप्त अवसर नहीं मिल पा रहा था।

कुल मिलाकर कहें तो लोग हताश-निराश थे। झारखंड को उसी अंधेरे से बाहर निकालने के लिए ही पृथक राज्य के निर्माण की मांग दशकों पहले उठी थी और समय-समय पर यह मांग जोर पकड़ती रही।

अनेक संघर्षों और कुर्बानियों के बाद अंततः अबुआ ढिशुम का सपना 15 नवंबर 2000 को पूरा हुआ। देश के मानचित्र पर एक सितारे की तरह अपना झारखंड चमक उठा। इसे दुनियाभर में संभावनाओं से परिपूर्ण राज्य के रूप में देखा जाने लगा।

संभावनाएं हर तरह की थी। आज अलग राज्य बने करीब 22 वर्ष हो चुके हैं। इस अवधि में यह राज्य विकास के मापदंड पर कहां तक पहुंच पाया, यह तो चर्चा का अलग विषय है, लेकिन झारखंड को जानने समझने की लालसा लोगों में पहले भी थी और अलग राज्य के निर्माण के बाद तो और भी बढ़ी है।

झारखंड का ऐसा कोई कोना नहीं, जहां कोई ना कोई विशेषता ना हो। इसके चप्पे-चप्पे में खूबियां भरी पड़ी है। यही वजह है कि झारखंड निर्माण के साथ ही इस राज्य को केंद्रित कर पुस्तक लिखने का सिलसिला भी शुरू हुआ।

यह जरूरी भी था। खासकर प्रतियोगिता परीक्षाओं की तैयारी के लिए विद्यार्थियों को झारखंड को सम्यक रूप से जानने-समझने की जरूरत अधिक थी और आज भी बनी हुई है।

 ‘मैं हूँ झारखंड’ के लेखक देव कुमार….

वैसे तो पिछले दो दशक में झारखंड पर केंद्रित कई पुस्तकें प्रकाशित हुई है। पर, देव कुमार की ‘मैं हूँ झारखंड’ उन सभी से बिल्कुल अलग और कई मायनों में बहुत खास है।

वह इसलिए कि देव कुमार ने इस पुस्तक में अनेक अनछुए पहलुओं को भी दर्शाने का सफल प्रयास किया है, जो अब-तक अन्य लेखकों अथवा संग्रहकर्ताओं से अछूता था।

देव कुमार की यह दूसरी रचना है। इससे पहले इन्होंने ‘बिरहोर- हिंदी-अंग्रेजी शब्दकोश’ तैयार कर अपनी काबिलियत साबित की है। इस पुस्तक को काफी सराहना मिल चुकी है। संभवतः इसकी सफलता ने ही इन्हें ‘मैं हूँ झारखंड’ लिखने को प्रोत्साहित किया। यह काफी कठिन कार्य था।

पहले से जब बाजार में झारखंड पर केंद्रित अनेक पुस्तकें मौजूद थी, वैसे में इन्हें कुछ अलग और कुछ बेहतर करना था। देव कुमार ने उस चुनौती को न केवल स्वीकारा, बल्कि बाकि पुस्तकों से कुछ अलग कर दिखाने में सफलता भी पाई है।

इसमें देव कुमार की मेहनत और लगन साफ तौर पर देखी जा सकती है। इस पुस्तक में कुल 43 अध्याय हैं और सभी के सभी काफी उपयोगी बन गए हैं। हर अध्याय में उपयोगी और अनेक नई जानकारियों को रोचक तरीके से प्रस्तुत किया गया है।

उम्मीद है कि प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करने वाले विद्यार्थियों से लेकर झारखंड को जानने-समझने की जिज्ञासा रखने वाले तमाम लोगों के लिए यह पुस्तक काफी उपयोगी साबित होगी।

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