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पिस्टल भी रखते हैं शिक्षा विभाग के भूमिहीन ACS सिद्धार्थ !

पटना (एक्सपर्ट मीडिया न्यूज)। बिहार शिक्षा विभाग के अपर मुख्य सचिव (ACS) डॉ. एस सिद्धार्थ की संपत्ति का ब्योरा हाल ही में सामने आया है, जो कई रोचक तथ्यों को उजागर करता है। एक ओर जहां उनके पास कोई कृषि या गैर-कृषि भूमि नहीं है। वहीं दूसरी ओर उनके पास एक पिस्टल सहित लाखों की संपत्ति और निवेश है। यह जानकारी उनके द्वारा घोषित संपत्ति विवरण से प्राप्त हुई है, जो चर्चा का विषय बन गई है।

मीडिया रिपोर्टस में आगे जिक्र है कि डॉ. सिद्धार्थ के विभिन्न बैंकों के बचत खातों में कुल 34.79 लाख रुपये जमा हैं। इसके अलावा उन्होंने 11 लाख रुपये के शेयर और बांड में निवेश किया है। गहनों की बात करें तो उनके पास चार लाख रुपये की ज्वेलरी मौजूद है।

हैरानी की बात यह है कि शिक्षा विभाग के इस वरिष्ठ अधिकारी के पास आत्मरक्षा या अन्य कारणों से एक पिस्टल भी है, जो आमतौर पर प्रशासनिक अधिकारियों के पास देखने को नहीं मिलता। हालांकि उनके पास अपना कोई निजी वाहन नहीं है।

संपत्ति के मामले में डॉ. सिद्धार्थ के पास देश के अलग-अलग हिस्सों में शानदार मकान हैं। दिल्ली के द्वारका इलाके में उनका 25 लाख रुपये का फ्लैट है, जबकि तेलंगाना के मेडचल जिले में 65 लाख रुपये का एक मकान और तमिलनाडु के निरकुंडरम में 1.35 करोड़ रुपये का एक आलीशान फ्लैट है। इन संपत्तियों का कुल मूल्य करोड़ों में पहुंचता है। हालांकि उनकी संपत्ति के साथ-साथ कर्ज भी जुड़ा है। उनके ऊपर बैंकों का 90 लाख रुपये का लोन बकाया है।

डॉ. सिद्धार्थ का यह संपत्ति विवरण कई सवाल खड़े करता है। एक ओर जहां उनके पास कोई जमीन नहीं है, वहीं दूसरी ओर महंगे फ्लैट्स और निवेश उनकी आर्थिक स्थिति को दर्शाते हैं। पिस्टल का होना भी लोगों के बीच कौतूहल का विषय बना हुआ है। क्या यह उनकी सुरक्षा से जुड़ा है या व्यक्तिगत रुचि, यह अभी स्पष्ट नहीं है। बहरहाल शिक्षा विभाग के इस भूमिहीन ACS की संपत्ति और जीवनशैली निश्चित रूप से सुर्खियों में है।

National Education Policy-1986: डिग्री कॉलेजों से इंटर की पढ़ाई खत्म, नया दौर शुरु

पटना (एक्सपर्ट मीडिया न्यूज)। बिहार में शिक्षा के क्षेत्र में एक बड़ा बदलाव (National Education Policy-1986) देखने को मिल रहा है। राज्य के डिग्री कॉलेजों में अब इंटरमीडिएट (11वीं और 12वीं कक्षा) की पढ़ाई पूरी तरह से बंद हो चुकी है। शैक्षिक सत्र 2025-2027 से डिग्री कॉलेजों में इंटरमीडिएट की कक्षाएं संचालित नहीं होंगी। यह बदलाव राष्ट्रीय शिक्षा नीति-1986 के तहत शुरू की गई व्यवस्था का परिणाम है। जिसके तहत इंटरमीडिएट शिक्षा को डिग्री कॉलेजों से अलग कर स्कूलों और विशेष इंटरमीडिएट कॉलेजों में स्थानांतरित किया गया है।

पिछले कुछ वर्षों से यह बदलाव धीरे-धीरे लागू हो रहा था। शैक्षिक सत्र 2024-2026 के तहत 11वीं कक्षा में डिग्री कॉलेजों में नामांकन की प्रक्रिया पिछले साल ही बंद कर दी गई थी। उस दौरान केवल 12वीं कक्षा के छात्र-छात्राएं शैक्षिक सत्र 2023-2025 का हिस्सा थे, वे डिग्री कॉलेजों में पढ़ाई कर रहे थे। 25 फरवरी, 2025 को इस सत्र का इंटरमीडिएट रिजल्ट जारी होने के साथ ही डिग्री कॉलेजों में इंटरमीडिएट की पढ़ाई का इतिहास अब पूरी तरह समाप्त हो गया है।

शिक्षा विभाग के आंकड़ों के अनुसार बिहार में कुल 537 डिग्री कॉलेज हैं। जिनमें 266 अंगीभूत महाविद्यालय और 271 संबद्ध डिग्री महाविद्यालय शामिल हैं। इन सभी कॉलेजों में अब केवल स्नातक और उससे ऊपर की पढ़ाई होगी।

अब कहां होगी इंटरमीडिएट की पढ़ाई? बिहार विद्यालय परीक्षा समिति के अध्यक्ष आनंद किशोर ने शनिवार को जानकारी दी कि राज्य में अब इंटरमीडिएट की पढ़ाई केवल उच्च माध्यमिक विद्यालयों और इंटरमीडिएट कॉलेजों तक सीमित होगी।

नए शैक्षिक सत्र से 1,006 उच्च माध्यमिक विद्यालयों और इंटरमीडिएट कॉलेजों में 11वीं कक्षा में छात्र-छात्राओं का नामांकन शुरू होगा। इनमें कुछ संबद्ध डिग्री महाविद्यालय भी शामिल हैं, जहां इंटरमीडिएट खंड को पूरी तरह से अलग कर दिया गया है।

राष्ट्रीय शिक्षा नीति-1986 का प्रभावः राष्ट्रीय शिक्षा नीति-1986 लागू होने से पहले बिहार में इंटरमीडिएट की पढ़ाई विश्वविद्यालयों के अधीन थी। उस समय 11वीं और 12वीं की कक्षाएं स्कूलों में नहीं, बल्कि डिग्री कॉलेजों में ही संचालित होती थीं। पाठ्यक्रम से लेकर परीक्षा और रिजल्ट तक सब कुछ विश्वविद्यालयों के नियंत्रण में होता था।

हालांकि 1986 की नीति में 10+2+3 प्रणाली लागू की गई। जिसके तहत 10वीं तक की शिक्षा को स्कूली शिक्षा का हिस्सा बनाया गया। जबकि 11वीं और 12वीं (इंटरमीडिएट) को अलग स्तर पर रखा गया। इसके बाद स्नातक (3 वर्ष) की पढ़ाई डिग्री कॉलेजों में होती थी। इस नीति ने इंटरमीडिएट को विश्वविद्यालयों से छीनकर स्कूलों और विशेष कॉलेजों की ओर स्थानांतरित कर दिया।

बदलाव का असर और भविष्यः यह बदलाव शिक्षा व्यवस्था में सुधार और विशेषज्ञता को बढ़ावा देने की दिशा में एक कदम माना जा रहा है। डिग्री कॉलेजों से इंटरमीडिएट को हटाने से इन संस्थानों का ध्यान अब पूरी तरह से उच्च शिक्षा पर केंद्रित होगा। वहीं उच्च माध्यमिक विद्यालयों और इंटरमीडिएट कॉलेजों में 11वीं और 12वीं के छात्रों को बेहतर संसाधन और शिक्षण व्यवस्था मिलने की उम्मीद है।

Property dispute: चाचा पशुपति ने चिराग की बड़ी मां को घर से निकाल जड़ा ताला !

पटना (एक्सपर्ट मीडिया न्यूज)। पूर्व केंद्रीय मंत्री और दिवंगत रामविलास पासवान के परिवार में संपत्ति को लेकर बड़ा विवाद खड़ा हो गया है। यह विवाद न केवल परिवार की आंतरिक कलह को उजागर कर रहा है, बल्कि इसे राजनीतिक दृष्टि से भी देखा जा रहा है। इस बार का मामला रामविलास पासवान की पहली पत्नी राजकुमारी देवी से जुड़ा है, जिनका अपने देवर पूर्व केंद्रीय मंत्री पशुपति कुमार पारस के साथ संपत्ति को लेकर विवाद सामने आया है।

मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार खगड़िया जिले के शहरबन्नी गांव स्थित राजकुमारी देवी के घर पर उनके ही सगे संबंधियों ने मालिकाना हक जताया और कुछ कमरों में ताले लगा दिए। बताया जा रहा है कि इस विवाद में पशुपति कुमार पारस और स्वर्गीय रामचंद्र पासवान की पत्नी का नाम सामने आ रहा है। राजकुमारी देवी ने आरोप लगाया कि उन्हें घर से निकालने की कोशिश की गई। हालांकि उन्होंने अब तक इस मामले में कोई प्राथमिकी दर्ज नहीं कराई है। लेकिन वे इस घटनाक्रम से बेहद आहत हैं।

बता दें कि रामविलास पासवान ने दो विवाह किए थे। उनकी पहली पत्नी राजकुमारी देवी ग्रामीण पृष्ठभूमि से आती हैं। वर्ष 1960 में जब उनकी शादी हुई, तब पासवान की उम्र मात्र 14 वर्ष थी। कुछ वर्षों बाद उन्होंने राजकुमारी देवी को तलाक देकर 1983 में रीना शर्मा से विवाह किया। रीना शर्मा से हुए पुत्र चिराग पासवान वर्तमान में राजनीति में सक्रिय हैं और लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) के प्रमुख हैं।

हालांकि, चिराग पासवान अपनी बड़ी मां राजकुमारी देवी का सम्मान करते हैं और अक्सर उनसे मिलने शहरबन्नी जाते हैं। लेकिन अब जब पारिवारिक संपत्ति का मामला तूल पकड़ रहा है तो यह देखना दिलचस्प होगा कि चिराग इस पूरे प्रकरण में क्या रुख अपनाते हैं।

इस विवाद का राजनीतिक प्रभाव भी हो सकता है। क्योंकि पासवान परिवार बिहार की राजनीति में एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है। पशुपति कुमार पारस और चिराग पासवान के बीच पहले से ही राजनीतिक मतभेद चल रहे हैं। ऐसे में इस संपत्ति विवाद से दोनों के रिश्ते और अधिक तनावपूर्ण हो सकते हैं।

फिलहाल, इस मामले को लेकर किसी भी पक्ष की ओर से आधिकारिक बयान नहीं आया है। लेकिन यह स्पष्ट है कि पासवान परिवार का यह अंदरूनी विवाद अब सार्वजनिक हो चुका है। अब देखना यह होगा कि यह विवाद अदालत तक पहुंचता है या परिवार के भीतर ही इसका कोई समाधान निकलता है।

नाबालिग संग गंदा काम करने का आरोपी SHO पर गिरफ्तार

पटना (एक्सपर्ट मीडिया न्यूज)। बेगूसराय जिले के नावकोठी थाना के थानाध्यक्ष (SHO) अरविंद शुक्ला को पुलिस ने हिरासत में ले लिया है। उनके खिलाफ एक नाबालिग ने अप्राकृतिक यौन संबंध बनाने का गंभीर आरोप लगाया है। इस मामले में बढ़ते जनाक्रोश और थाना घेराव के बाद जिले के पुलिस अधीक्षक (SP) मनीष कुमार के आदेश पर SHO की गिरफ्तारी की गई।

सूत्रों के अनुसार नावकोठी थाना क्षेत्र के एक गांव में चार दिन पहले एक जमीनी विवाद को लेकर मारपीट हुई थी। इस झगड़े में नाबालिग के पिता को पुलिस ने गिरफ्तार कर जेल भेज दिया था। पीड़ित नाबालिग अपने पिता की रिहाई के लिए थानाध्यक्ष अरविंद शुक्ला से लगातार संपर्क कर रहा था।

आरोप है कि इसी बीच SHO ने नाबालिग को अपने निजी आवास पर बुलाया और उसके पिता को राहत दिलाने का आश्वासन दिया। बदले में उसने नाबालिग के साथ अप्राकृतिक यौन संबंध बनाया। जब नाबालिग ने विरोध किया तो उसे धमकाया गया। पीड़ित ने जब यह बात अपने परिजनों और गांव वालों को बताई तो आक्रोशित भीड़ ने थाना का घेराव कर दिया।

थाने पर बढ़ते तनाव को देखते हुए जिले के वरीय अधिकारी तत्काल हरकत में आए। बखरी एसडीपीओ कुंदन कुमार और एसपी मनीष कुमार नावकोठी थाना पहुंचे और मामले की गहन जांच की। इसके बाद SP के निर्देश पर थानाध्यक्ष अरविंद शुक्ला को हिरासत में लिया गया। पुलिस ने पीड़ित नाबालिग और आरोपी SHO दोनों की मेडिकल जांच करवाई है।

जानकारी के मुताबिक गांव के मुकेश सहनी की साइकिल से पीड़ित के पिता को ठोकर लग गई थी। जिसके बाद दोनों के बीच मारपीट हुई। गुरुवार रात को मामला थाना पहुंचा और दोनों पक्षों ने एक-दूसरे के खिलाफ आवेदन दिया। पुलिस ने दोनों को हिरासत में ले लिया। तभी से पीड़ित केस हल्का करवाने के लिए थानाध्यक्ष से मिल रहा था। आरोप है कि SHO ने पहले ही कुछ पैसे लिए थे। ताकि केस को हल्का किया जा सके।

इस मामले के सामने आने के बाद स्थानीय लोगों में भारी आक्रोश है। पीड़ित परिवार और गांव वाले निष्पक्ष जांच और कड़ी कार्रवाई की मांग कर रहे हैं। वहीं पुलिस का कहना है कि मामले की निष्पक्ष जांच की जा रही है और दोषी पाए जाने पर SHO के खिलाफ सख्त सजा दिलाई जाएगी।

पटना-आरा-सासाराम फोरलेन ग्रीनफील्ड कॉरिडोर निर्माण को मिली मंजूरी

पटना (एक्सपर्ट मीडिया न्यूज)। पटना-आरा-सासाराम फोरलेन ग्रीनफील्ड कॉरिडोर एनएच-119ए के निर्माण को लेकर एक बड़ी खुशखबरी आई है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में आर्थिक मामलों की कैबिनेट समिति (सीसीईए) ने इस महत्वाकांक्षी परियोजना को मंजूरी दे दी है। इस परियोजना से बिहार के प्रमुख शहरों पटना, आरा और सासाराम के बीच सड़क यातायात की स्थिति में क्रांतिकारी बदलाव आने की उम्मीद है।

यह सड़क निर्माण करीब 120.10 किलोमीटर की लंबाई में हाइब्रिड एनीयूटी मोड (एचएएम) पर 3,712.40 करोड़ रुपये की लागत से किया जाएगा। मौजूदा समय में सासाराम, आरा और पटना के बीच यात्रा के लिए जो रास्ते उपयोग किए जाते हैं। जैसे एसएच-2, एसएच-12, एसएच-81 और एसएच-102, उनमें यातायात का दबाव काफी बढ़ चुका है। खासकर आरा शहर में। यहां की भीड़-भाड़ के कारण यात्रा में तीन से चार घंटे का समय लगता है। जिससे यात्रियों को भारी असुविधा होती है।

इस नए फोरलेन ग्रीनफील्ड कॉरिडोर के निर्माण से इन समस्याओं का समाधान होगा। परियोजना के तहत गड़हनी में उन्नयन के साथ एक नया ग्रीनफील्ड कॉरिडोर विकसित किया जाएगा। यह मार्ग पटना रिंग रोड से शुरू होकर सासाराम में एनएच-19 (पुराना एनएच-2) पर सुअरा के पास समाप्त होगा। इस सड़क के निर्माण से पूरे क्षेत्र में यातायात की सुगमता बढ़ेगी और यात्रा का समय भी कम होगा।

इसके अलावा इस परियोजना में सोन नदी पर एक नया पुल निर्माण भी शामिल है। यह पुल कोइलवर के मौजूदा पुल से लगभग 10 किमी अपस्ट्रीम बनेगा, जो बिन्दौल और कोशीहान के बीच स्थित होगा। इस पुल से भी यातायात में और अधिक सुधार होगा। जिससे बिहार के विभिन्न हिस्सों के बीच संपर्क सशक्त होगा।

इस परियोजना की मंजूरी से न केवल क्षेत्रीय विकास को बल मिलेगा, बल्कि रोजगार के अवसरों में भी वृद्धि होगी और पटना-आरा-सासाराम के बीच यात्रा को सुविधाजनक और समय-समय पर सुलभ बनाएगी।

 

झारखंड में सड़क निर्माण को गति देने के लिए मुख्य सचिव का कड़ा निर्देश

रांची (एक्सपर्ट मीडिया न्यूज)। झारखंड प्रदेश की मुख्य सचिव अलका तिवारी ने राज्य में चल रही विभिन्न सड़क परियोजनाओं की प्रगति को लेकर सभी उपायुक्तों को सख्त निर्देश जारी किया है। राज्य में चालू और प्रस्तावित सड़क परियोजनाओं की समीक्षा बैठक की अध्यक्षता करते हुए उन्होंने कहा है कि सड़क योजनाओं की लगातार मॉनिटरिंग की जाए और किसी भी तरह की बाधा को प्राथमिकता के आधार पर दूर किया जाए। सभी उपायुक्त संबंधित विभागों के साथ समन्वय स्थापित कर निर्बाध निर्माण सुनिश्चित करें।

श्रीमती तिवारी ने जोर देकर कहा कि केंद्र सरकार से सड़क निर्माण परियोजनाओं को राज्य में लाने के लिए कड़ी मेहनत करनी पड़ती है। स्वीकृति मिलने के बाद अगर समय पर काम शुरू नहीं होता, तो परियोजनाएं रद्द होने का खतरा मंडराने लगता है। उन्होंने नेशनल हाइवे ऑथोरिटी ऑफ इंडिया (एनएचएआइ) की परियोजनाओं में आ रही अड़चनों को तत्काल हल करने पर बल दिया। ताकि भविष्य में भी केंद्र से नई सड़क योजनाएं प्राप्त की जा सकें।

सड़क निर्माण में जमीन का मुआवजा सबसे बड़ी चुनौती: समीक्षा के दौरान यह बात सामने आई कि सड़क निर्माण में सबसे बड़ी बाधा जमीन के मुआवजे का भुगतान है। कई मामलों में जमीन के कागजात उपलब्ध नहीं होने से काम रुका हुआ है।

इस समस्या के समाधान के लिए मुख्य सचिव ने निर्देश दिया कि ऐसी जमीनों को सरकारी मानकर निर्माण कार्य शुरू किया जाए। बाद में अगर कागजात के साथ कोई दावा पेश किया जाता है, तो मुआवजे का भुगतान किया जाए। जहां मुआवजा भुगतान में देरी हो रही है, वहां कैंप लगाकर रैयतों को तुरंत भुगतान करने का आदेश दिया गया। इसके अलावा वन विभाग से जुड़े मसलों को शीघ्र सुलझाने और विधि-व्यवस्था की समस्याओं को प्रशासनिक कुशलता से निपटाने की हिदायत दी गई।

17,188 करोड़ से 503 किमी की 15 सड़कों का निर्माण जारीः झारखंड में नेशनल हाइवे की कुल लंबाई 3,536 किलोमीटर है। एनएचएआइ द्वारा 52,476 करोड़ रुपये की लागत से 1,758 किमी सड़क का निर्माण किया जा रहा है। इसमें से 13,993 करोड़ रुपये की लागत से 718 किमी सड़क का काम पूरा हो चुका है। वर्तमान में 17,188 करोड़ रुपये की लागत से 503 किमी की 15 सड़कों का निर्माण प्रगति पर है।

इसके अलावा 11,643 करोड़ रुपये से 273 किमी की 8 सड़कों के निर्माण को स्वीकृति मिल चुकी है, जबकि 9,623 करोड़ रुपये की लागत से 263 किमी की 7 सड़कों का निर्माण डीपीआर और टेंडर प्रक्रिया के चरण में है।

झारखंड में नेशनल हाइवे का आंकड़ाः झारखंड में प्रति एक लाख जनसंख्या पर नेशनल हाइवे की लंबाई 8.62 किमी है, जो राष्ट्रीय औसत 11 किमी से कम है। वहीं, प्रति एक हजार वर्ग किमी में नेशनल हाइवे की लंबाई 43.91 किमी है, जो राष्ट्रीय औसत 40.2 किमी से अधिक है। यह आंकड़ा राज्य में सड़क नेटवर्क के विस्तार की संभावनाओं को दर्शाता है।

समीक्षा बैठक में शामिल हुए अधिकारीः मुख्य सचिव की अध्यक्षता में हुई इस समीक्षा बैठक में पथ निर्माण विभाग के प्रधान सचिव सुनील कुमार, वन विभाग के सचिव अबु बक्कर सिद्धीख, राजस्व विभाग के सचिव चंद्रशेखर, एनएचएआइ के वरिष्ठ अधिकारी और संबंधित जिलों के उपायुक्त वर्चुअल माध्यम से शामिल हुए। बैठक में सड़क निर्माण की प्रगति को तेज करने और बाधाओं को दूर करने के लिए ठोस रणनीति पर चर्चा हुई।

बिहार में मखाना क्रांति: सरकार की नई योजना से किसानों को मिलेगा बढ़ावा 

बिहार सरकार की यह पहल मखाना किसानों के लिए एक सुनहरा अवसर लेकर आई है। अनुदान, भंडारण सुविधा और उन्नत बीजों के जरिए न केवल उत्पादन बढ़ेगा, बल्कि किसानों की आय में भी इजाफा होगा। यह योजना बिहार को मखाना उत्पादन के वैश्विक केंद्र के रूप में स्थापित करने की दिशा में एक बड़ा कदम साबित हो सकती है…

पटना (एक्सपर्ट मीडिया न्यूज)। बिहार सरकार ने मखाना उत्पादन को बढ़ावा देने और इसे वैश्विक स्तर पर पहचान दिलाने के लिए एक व्यापक योजना तैयार की है। देश और दुनिया में मखाना की बढ़ती मांग को देखते हुए राज्य सरकार ने इसकी खेती को मजबूत करने के लिए जिलावार रणनीति बनाई है। इस योजना के तहत मखाना की खेती के क्षेत्र का विस्तार, भंडारण के लिए गोदामों का निर्माण, उन्नत बीजों का विकास और किसानों को आर्थिक सहायता प्रदान करने की तैयारी की गई है। 

बिहार सरकार ने कटिहार, पूर्णिया, दरभंगा, मधुबनी, किशनगंज, सुपौल, अररिया, मधेपुरा और सहरसा जैसे जिलों में मखाना की खेती के लिए नए क्षेत्र विकसित करने का लक्ष्य रखा है। इसके लिए किसानों को खेती में होने वाली लागत का 75 प्रतिशत अनुदान के रूप में दिया जाएगा। जानकारी के मुताबिक खेत प्रणाली के तहत मखाना उत्पादन की प्रति हेक्टेयर लागत 97,000 रुपये होगी। जिसमें से 72,750 रुपये सरकार अनुदान के रूप में वहन करेगी। इससे किसानों पर आर्थिक बोझ कम होगा और वे अधिक उत्साह के साथ मखाना की खेती को अपनाएंगे।

भंडारण की समस्या का समाधानः मखाना किसानों के सामने हमेशा से भंडारण की समस्या एक बड़ी चुनौती रही है। इस समस्या को दूर करने के लिए सरकार ने कटिहार, पूर्णिया, दरभंगा, मधुबनी, किशनगंज, सुपौल, अररिया, मधेपुरा और सहरसा जिलों में भंडार गृह बनाने का फैसला किया है। प्रत्येक भंडार गृह के निर्माण पर 10 लाख रुपये की लागत आएगी। जिसमें से 75 प्रतिशत यानी 7.5 लाख रुपये सरकार अनुदान के रूप में देगी। इन भंडार गृहों के बनने से मखाना का सुरक्षित भंडारण संभव होगा और किसानों को अपनी उपज को बाजार में सही समय पर बेचने में मदद मिलेगी।

उन्नत बीज वितरण और उत्पादनः मखाना की खेती को और बेहतर बनाने के लिए सरकार ने बीज वितरण और उन्नत प्रजातियों के विकास पर भी ध्यान दिया है। कटिहार, पूर्णिया, दरभंगा, मधुबनी, किशनगंज, सुपौल, अररिया, मधेपुरा, सहरसा और खगड़िया जिलों में मखाना के बीज अनुदान पर वितरित किए जाएंगे। बीज की प्रति हेक्टेयर लागत 54,000 रुपये होगी। जिसमें से 75 प्रतिशत (40,500 रुपये) सरकार द्वारा अनुदान के रूप में दिया जाएगा। इसके अलावा पूर्णिया, दरभंगा, मधेपुरा और किशनगंज जिलों में स्वर्ण वैदेही और सबौर मखाना-1 जैसी उन्नत प्रजातियों के बीजों का उत्पादन किया जाएगा। इन उन्नत बीजों के उत्पादन पर 97,000 रुपये प्रति हेक्टेयर की लागत आएगी। जिसमें से 75 प्रतिशत अनुदान सरकार द्वारा वहन किया जाएगा।

मखाना किसानों के लिए नई उम्मीदः यह योजना न केवल मखाना उत्पादन को बढ़ाएगी, बल्कि बिहार के किसानों की आर्थिक स्थिति को भी मजबूत करेगी। मखाना, जिसे फॉक्स नट या लोटस सीड के नाम से भी जाना जाता है। स्वास्थ्य के लिए लाभकारी होने के कारण अंतरराष्ट्रीय बाजार में इसकी मांग तेजी से बढ़ रही है। बिहार पहले से ही देश का सबसे बड़ा मखाना उत्पादक राज्य है और इस नई योजना से राज्य इस क्षेत्र में अपनी स्थिति को और मजबूत कर सकेगा।

 

River Ranching: मछुआरों ने कोशी संगम पर पकड़ी 40 किलो की ‘गंगा की रानी’, उमड़ा जनसैलाब

पटना (एक्सपर्ट मीडिया न्यूज)। River Ranching: प्रकृति और मानवीय प्रयासों के अनोखे संगम की एक रोचक कहानी सामने आई है। बिहार के कटिहार जिले में गंगा और कोशी संगम पर स्थानीय मछुआरों ने एक ऐसी मछली पकड़ी है। जिसका वजन सुनकर हर कोई हैरान है। यह मछली पूरे 40 किलोग्राम की है और इसे देखने के लिए संगम तट पर लोगों की भारी भीड़ जुट गई। यह घटना न सिर्फ मछुआरों के लिए खुशी का सबब बनी, बल्कि मछली पालन की संभावनाओं को भी रेखांकित कर रही है।

मछुआरों का कहना है कि सुबह के शुरुआती घंटों में जब उन्होंने जाल डाला तो उन्हें अंदाजा नहीं था कि उनकी मेहनत का फल इतना बड़ा होगा। जाल में फंसी इस विशाल मछली को बाहर निकालने में कई लोगों की मदद लेनी पड़ी। देखते ही देखते यह खबर जंगल की आग की तरह फैल गई और आसपास के गांवों से लोग इसे देखने के लिए दौड़े चले आए। कुछ लोगों ने इसे ‘गंगा की रानी’ का नाम दिया तो कुछ इसे क्षेत्र के लिए शुभ संकेत मान रहे हैं। इस घटना को जिला प्रशासन के उस प्रयास से जोड़कर देखा जा रहा है, जो मछली पालन को बढ़ावा देने के लिए पहले शुरू किया गया था।

दरअसल कटिहार जिला प्रशासन ने ‘रिवर रैंचिंग’ कार्यक्रम के तहत गंगा और कोशी नदियों में मछली के बीज छोड़े थे। इस कार्यक्रम का मकसद नदियों में मछलियों की आबादी बढ़ाना और स्थानीय मछुआरों की आजीविका को बेहतर करना था। विशेषज्ञों का मानना है कि 40 किलो की यह मछली उसी प्रयास का नतीजा हो सकती है। जो यह दिखाती है कि नदियों में मछली पालन की अपार संभावनाएं मौजूद हैं।

इस विशाल मछली को पकड़ने वाले मछुआरे रामू प्रसाद ने बताया कि हमने पहले भी बड़ी मछलियां पकड़ी हैं। लेकिन इतनी विशाल मछली पहली बार देखी। यह हमारे लिए गर्व की बात है। वहीं स्थानीय लोगों का कहना है कि इससे मछली पालन का कारोबार बढ़ेगा और इलाके में रोजगार के नए अवसर पैदा होंगे।

जिला प्रशासन भी इस घटना से उत्साहित है। एक अधिकारी ने बताया कि रिवर रैंचिंग का उद्देश्य नदियों को फिर से मछलियों से भरपूर करना था। यह मछली उस दिशा में एक सकारात्मक संकेत है। हम इसे और आगे बढ़ाने की योजना बना रहे हैं। प्रशासन अब इस क्षेत्र को मछली पालन के हब के रूप में विकसित करने की संभावनाएं तलाश रहा है।

यह घटना सोशल मीडिया पर भी छाई हुई है। लोग इस मछली की तस्वीरें और वीडियो शेयर कर रहे हैं और कई इसे बिहार की प्राकृतिक संपदा का प्रतीक बता रहे हैं। कुछ पर्यावरणविदों ने इस मौके पर नदियों के संरक्षण की जरूरत पर भी जोर दिया है। ताकि ऐसी घटनाएं भविष्य में भी देखने को मिलें।

खरमास बाद दिल्ली में होगी CM नीतीश के बेटे निशांत की ग्रैंड शादी!

पटना/दिल्ली (एक्सपर्ट मीडिया न्यूज)। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के इकलौते बेटे निशांत कुमार की शादी की तैयारियां जोरों पर हैं। पारिवारिक सूत्रों के अनुसार यह शादी खरमास खत्म होने के बाद दिल्ली में बेहद भव्य और ग्रैंड तरीके से आयोजित की जाएगी। शादी की तैयारियां लगभग पूरी हो चुकी हैं और माना जा रहा है कि इस समारोह में देश के कई बड़े राजनेता और गणमान्य लोग शामिल हो सकते हैं। यह आयोजन न केवल नीतीश कुमार के परिवार के लिए, बल्कि बिहार की राजनीति और सामाजिक हलकों में भी चर्चा का विषय बन गया है।

सूत्रों के मुताबिक निशांत कुमार की होने वाली पत्नी का ताल्लुक किसी राजनीतिक परिवार से नहीं है। वह बिहार के नालंदा जिले की रहने वाली हैं और नीतीश कुमार के परिवार की तरह ही कुर्मी समुदाय से आती हैं। चर्चा है कि लड़की केंद्र सरकार में नौकरी करती है। हालांकि इस बात को अभी आधिकारिक तौर पर पुष्ट नहीं किया गया है। कुछ लोग इसे महज कयास भी बता रहे हैं।

निशांत की उम्र 50 साल के करीब होने के कारण यह सवाल उठ रहा है कि यदि लड़की सरकारी नौकरी में है तो उसकी उम्र भी कमोबेश निशांत के आसपास ही होगी। ऐसे में जानकारों का कहना है कि 15-20 साल नौकरी करने के बाद कोई लड़की शादी क्यों करेगी? यह सवाल शादी की खबर को और भी रोचक बना रहा है।

बता दें कि 20 जुलाई 1975 को जन्मे निशांत कुमार ने अपने पिता नीतीश कुमार की राजनीतिक विरासत को आगे बढ़ाने में कभी रुचि नहीं दिखाई। नीतीश कुमार जहां बिहार की राजनीति के एक कद्दावर नेता हैं। वहीं निशांत ने हमेशा एकांत और शांत जीवन को प्राथमिकता दी।

निशांत की मां मंजू सिन्हा एक शिक्षिका थीं। जिनका 2007 में बीमारी के कारण निधन हो गया था। मां के निधन के बाद निशांत और भी एकाकी जीवन में चले गए। परिवार और करीबियों के मुताबिक, निशांत ने कभी भी राजनीति या सुर्खियों में रहने की चाह नहीं दिखाई। ऐसे में उनकी शादी की खबर ने सभी को चौंका दिया है।

शादी का आयोजन दिल्ली में होने की वजह से यह कयास भी लगाए जा रहे हैं कि नीतीश कुमार अपने राजनीतिक संबंधों को और मजबूत करने के लिए इस मौके का इस्तेमाल कर सकते हैं। सूत्रों का कहना है कि शादी में शामिल होने वाले मेहमानों की लिस्ट में कई बड़े नेता और प्रभावशाली हस्तियां शामिल हो सकती हैं। हालांकि परिवार ने इसे निजी आयोजन बताया है। लेकिन नीतीश कुमार की सियासी हैसियत को देखते हुए यह समारोह चर्चा में बना रहेगा।

निशांत की उम्र 50 साल के करीब होने के कारण उनकी शादी को लेकर कई तरह की बातें हो रही हैं। कुछ लोग इसे देर से लिया गया फैसला बता रहे हैं तो कुछ का मानना है कि निशांत ने अपने लिए सही समय और सही जीवनसाथी का इंतजार किया। होने वाली दुल्हन की उम्र और पेशे को लेकर भी अटकलें जारी हैं। अगर वह वाकई केंद्र सरकार में नौकरी करती हैं तो यह शादी न केवल सामाजिक, बल्कि प्रशासनिक हलकों में भी चर्चा का विषय बन सकती है।

फिलहाल नीतीश कुमार का परिवार इस शादी को लेकर ज्यादा कुछ बोलने से बच रहा है। लेकिन खरमास खत्म होने के साथ ही यह शादी बिहार और दिल्ली के सामाजिक एवं राजनीतिक परिदृश्य में एक नई कहानी लिखने को तैयार है। देखना यह होगा कि यह ग्रैंड समारोह कितना भव्य होता है और इसमें कौन-कौन से बड़े चेहरे शामिल होते हैं।

राष्ट्रगान का अपमान: सीएम नीतीश कुमार पर मुजफ्फरपुर कोर्ट में शिकायत दर्ज

पटना (एक्सपर्ट मीडिया न्यूज)। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार एक बार फिर विवादों के घेरे में हैं। इस बार उन पर राष्ट्रगान का अपमान जैसे गंभीर आरोप लगा है, जिसके चलते मुजफ्फरपुर की मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी (सीजेएम) पश्चिमी कोर्ट में उनके खिलाफ शिकायत दर्ज की गई है। यह मामला भारतीय दंड संहिता और राष्ट्रीय गौरव अपमान निवारण अधिनियम, 1971 की धाराओं के तहत दायर किया गया है। जिसमें राष्ट्रगान का अपमान करने की सजा तीन साल तक की कैद या जुर्माना या दोनों हो सकती है। इस घटना ने बिहार की राजनीति में हलचल मचा दी है और विपक्षी दलों ने इसे लेकर नीतीश कुमार पर हमला तेज कर दिया है।

दरअसल, यह विवाद 20 मार्च को पटना में आयोजित सेपक टकरा विश्व कप के उद्घाटन समारोह से शुरू हुआ। इस कार्यक्रम के दौरान राष्ट्रगान बजाया जा रहा था और एक वायरल वीडियो में नीतीश कुमार को अपने प्रधान सचिव दीपक कुमार से बात करते और हंसते हुए देखा गया। वीडियो में यह भी दिख रहा है कि वह सावधान मुद्रा में खड़े होने के बजाय लोगों की ओर हाथ जोड़कर अभिवादन कर रहे थे। जबकि पास खड़े अधिकारी उन्हें इशारों में सीधे खड़े रहने का संकेत दे रहे थे। इस व्यवहार को विपक्ष ने राष्ट्रगान का अपमान करार दिया और इसे राष्ट्रीय सम्मान के साथ खिलवाड़ बताया।

मुजफ्फरपुर के अधिवक्ता सूरज कुमार ने इस घटना को आधार बनाते हुए सीजेएम कोर्ट में परिवाद दायर किया। शिकायत में कहा गया है कि मुख्यमंत्री का यह व्यवहार न केवल राष्ट्रगान का अपमान है, बल्कि पूरे देश की भावनाओं को ठेस पहुंचाने वाला है। शिकायतकर्ता ने इसे अक्षम्य अपराध बताते हुए नीतीश कुमार के खिलाफ सख्त कार्रवाई की मांग की है।

इस घटना के बाद बिहार की सियासत गरमा गई। राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) के नेता और नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव ने सोशल मीडिया पर वीडियो साझा करते हुए लिखा, “कम से कम राष्ट्रगान का तो अपमान मत करिए, माननीय मुख्यमंत्री जी।” उन्होंने नीतीश कुमार की मानसिक स्थिति पर सवाल उठाते हुए कहा कि यह घटना बिहार के लिए “काला दिवस” है। तेजस्वी ने यह भी मांग की कि नीतीश कुमार को तुरंत इस्तीफा देना चाहिए या उनके खिलाफ कानूनी कार्रवाई होनी चाहिए।

वहीं पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी ने विधान परिषद में इस मुद्दे को जोर-शोर से उठाया। उन्होंने कहा, “राष्ट्रगान के दौरान मुख्यमंत्री का ऐसा व्यवहार शर्मनाक है। अगर उनका दिमाग ठीक नहीं है, तो गद्दी छोड़ दें।” विपक्षी विधायकों ने विधानसभा और विधान परिषद में जमकर हंगामा किया। जिसके चलते दोनों सदनों की कार्यवाही स्थगित करनी पड़ी। सड़क से लेकर सदन तक प्रदर्शन हुए। जिसमें विपक्षी नेताओं ने तख्तियां लेकर नीतीश कुमार से माफी और इस्तीफे की मांग की।

दूसरी ओर सत्तारूढ़ जनता दल (यूनाइटेड) और भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने नीतीश कुमार का बचाव किया। जेडीयू नेता और बिहार सरकार के मंत्री विजय चौधरी ने कहा कि यह विपक्ष की साजिश है। नीतीश कुमार राष्ट्रगान और राष्ट्रीय सम्मान का पूरा ख्याल रखते हैं। यह महज एक गलतफहमी है, जिसे राजनीतिक रंग दिया जा रहा है। बीजेपी नेताओं ने भी इसे तूल देने से इनकार करते हुए कहा कि विपक्ष हर मुद्दे को अनावश्यक रूप से बढ़ा-चढ़ाकर पेश करता है।

इधर यह मामला सोशल मीडिया पर भी छाया हुआ है। जहां कुछ लोग नीतीश कुमार के व्यवहार की आलोचना कर रहे हैं। वहीं उनके समर्थकों का कहना है कि यह जानबूझकर किया गया अपमान नहीं था। एक यूजर ने लिखा, “राष्ट्रगान के प्रति सम्मान हर नागरिक का कर्तव्य है। मुख्यमंत्री को यह गलती नहीं करनी चाहिए थी।” वहीं, एक अन्य यूजर ने तंज कसते हुए लिखा, “नीतीश जी को लगता है राष्ट्रगान भी उनके ‘सुशासन’ का हिस्सा है, जिसे वह हल्के में ले सकते हैं।”

अब मुजफ्फरपुर कोर्ट में दायर इस शिकायत पर सबकी नजरें टिकी हैं। कोर्ट इस मामले में सुनवाई की तारीख तय करेगा और अगर यह आगे बढ़ता है तो नीतीश कुमार की मुश्किलें बढ़ सकती हैं। कानूनी विशेषज्ञों का कहना है कि राष्ट्रगान का अपमान एक संवेदनशील मुद्दा है और इसके लिए साक्ष्य और परिस्थितियों को ध्यान में रखकर फैसला लिया जाएगा।

इस बीच बिहार की सियासत में यह मुद्दा अभी और तूल पकड़ सकता है। विपक्ष इसे नीतीश सरकार के खिलाफ बड़ा हथियार बनाने की तैयारी में है। जबकि सत्ता पक्ष इसे महज एक राजनीतिक स्टंट करार दे रहा है। क्या यह मामला नीतीश कुमार के लिए संकट बनकर उभरेगा या फिर यह भी एक और सियासी हंगामे के साथ ठंडा पड़ जाएगा? यह तो आने वाला वक्त ही बताएगा।

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