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    Thursday, November 21, 2024
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      अब इन आधा दर्जन कंपनियों को बेचने की तैयारी में जुटी मोदी सरकार !

      इंडिया न्यूज रिपोर्टर डेस्क।  दुनिया क सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश भारत में जबसे भाजपा नीत मोदी सरकार पदस्थ हुई है, सरकारी उपक्रमों को बेचने का सिलसिला चल पड़ा है।

      खबर के मुताबिक एयर इंडिया को बेचने के बाद मोदी सरकार अब निजीकरण और विनिवेश लक्ष्य पर तेजी से आगे बढ़ने की तैयारी में है।

      इस वित्त वर्ष 2021-22 में यानी मार्च 2022 तक मोदी सरकार की योजना आधा दर्जन से अधिक कंपनियों के निजीकरण या विनिवेश की तैयारी में है।

      मोदी सरकार का मानना है कि कई सेक्टर ऐसे हैं, जिनमें सरकारी कंपनी की जरूरत नहीं है। सरकार को कारोबार में नहीं रहना चाहिए। इसी तरह लगातार घाटे में चल रही कंपनियों का निजीकरण या विनिवेश कर देना ही अच्छा होगा।

      बता दें कि केंद्र सरकार ने इस वित्त वर्ष में विनिवेश से 1.75 लाख करोड़ रुपये हासिल करने का महत्वाकांक्षी लक्ष्य रखा है।

      सरकार ने एक्सिस बैंक, एनएमडीसी, हुडको आदि में हिस्सेदारी की बिक्री से सिर्फ 8,369 करोड़ रुपये और हाल में एअर इंडिया की करीब 18 हजार करोड़ रुपये में बिक्री हैं।

      आइये देखते हैं, सरकारी बिक्री  की कतार में आगे कौन-कौन सी कंपनियां हैं…

      आइडीबीआई बैंकः इस बैंक के विनिवेश प्रक्रिया को कैबिनेट ने मंजूरी दे दी है। इस वित्त वर्ष के अंत तक इसे भी कर देने का लक्ष्य है।

      पिछले छह साल में सरकार सरकारी कंपनियों के विनिवेश से करीब 3.5 लाख करोड़ रुपये जुटाई है। वित्त मंत्री ने वित्त वर्ष 2021-22 का बजट पेश करते हुए कहा था कि आइडीबीआई बैंक के निजीकरण की प्रक्रिया मौजूदा वित्त वर्ष में ही पूरी होगी।

      इस वित्त वर्ष के अंत तक सरकार एलआईसी का कुछ हिस्सा बेचने के लिए आईपीओ लेकर आएगी। सरकार ने बजट के दौरान आईपीओ यानी लिस्टिंग की सूची में रखा था।

      एलआईसीः सरकार ने भारतीय जीवन बीमा निगम का विनिवेश इस वित्त वर्ष के अंत यानी मार्च 2022 तक कर लेने का लक्ष्य है।

      ऐसा अनुमान है कि सरकार इसकी 10 फीसदी हिस्सेदारी बेचकर 80 हजार करोड़ से 1 लाख करोड़ रुपये तक जुटा सकती है।

      यह भारतीय शेयर बाजार का सबसे बड़ा आईपीओ साबित हो सकता है। इसका वैल्यूशन 8 से 10 लाख करोड़ रुपये का हो सकता है।

      यानी अगर सरकार ने इसकी 10 फीसदी हिस्सेदारी बेची और वैल्यूएशन उच्च स्तर पर रहा तो अकेले एलआईसी से ही एक लाख करोड़ रुपये जुटाई जा सकती हैं।

      बीपीसीएलः भारत पेट्रोलियम कॉरपोरेशन लिमिटेड का सरकार पूरी तरह से निजीकरण करने जा रही है। इसके लिए दिसंबर तक फाइनेंशियल बिड आमंत्रित किए जा सकते हैं।

      इसके लिए वेदांता, अपोलो ग्लोबल मैनेजमेंट और थिंक गैस जैसी कंपनियों ने रुचि दिखाई है। इसमें केंद्र सरकार अपनी पूरी 52.98% हिस्सेदारी बेच सकती है जिसकी मार्केट वैल्यू करीब 52,200 करोड़ रुपये है।

      सीइएलः एअर इंडिया के सफल निजीकरण के बाद अब मोदी सरकार ने एक और सरकारी कंपनी सेंट्रल इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड की बिक्री के लिए प्रयास तेज कर दिए हैं। सरकार को इस कंपनी की बिक्री के लिए फाइनेंशियल बिड हासिल हो गए हैं।

      वित्त मंत्रालय ने यह जानकारी दी है कि सेंट्रल इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड की 100 फीसदी हिस्सेदारी और मैनेजमेंट कंट्रोल ट्रांसफर करने के लिए सरकार को  बिड हासिल हो गया है।

      एससीआईः शिपिंग कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया का भी मार्च 2022 से पहले निजीकरण किया जाना है। इसमें भी सरकार अपनी पूरी 63.75 फीसदी हिस्सेदारी बेच रही है।

      इसके लिए भी कई कंपनियों ने रुचि दिखाई है। इसमें तीन कंपनियों का नाम फाइनल किया गया है जिनके बीच प्रतिस्पर्धा होगी।

      ये कंपनियां हैं-अमेरिका की साफेसिया, हैदराबाद की मेघा इंजीनियरिंग ऐंड इन्फ्रास्ट्रक्चर और रवि मल्होत्रा के नेतृत्व वाला एक कंसोर्टियम। रवि मल्होत्रा एससीआई में काम कर चुके हैं।

      पवन हंसः सरकार पिछले कई साल से हेलीकॉप्टर बनाने वाली कंपनी पवन हंस से बाहर जाना चाहती है, लेकिन इसका निजीकरण कायमाब नहीं हो पा रहा।

      अब सरकार ने मार्च 2022 से पहले इसकी बिक्री का लक्ष्य रखा है। पवन हंस के निजीकरण के लिए भी सरकार को कई कंपनियों से बिड मिला है।

      नीलांचल इस्पात निगमः इस वित्त वर्ष के अंत तक नीलांचल इस्पात निगम का भी निजीकरण किया जाना है। इसके निजीकरण के लिए भी सरकार को कई कंपनियों से ईओआई मिला है। इसका भी मार्च 2022 से पहले निजीकरण किया जाना है।

      यह असल में केंद्र सरकार की कई कंपनियों एमएमटीसी, एनएमडीसी, भेल, मेकॉन और   ओडिशा सरकार की दो कंपनियों ओएमसी एवं आईपीआईसीओएल के बीच संयुक्त उद्यम है।

      बीईएमएलः इस वित्त वर्ष के अंत तक सरकार ने इस कंपनी के भी विनिवेश का लक्ष्य रखा है, जिसे पहले भारत अर्थ मूवर्स के नाम से जाना जाता था। 1964 में स्थापित यह कंपनी रेल के कोच और स्पेयर पार्ट्स तथा माइनिंग इक्विपमेंट बनाती है।

      सरकार की इसमें करीब 54.03% हिस्सेदारी है जिसमें से वह सिर्फ 26% हिस्सेदारी बेचेगी। इसके लिए कई निजी कंपनियों ने रुचि दिखाई है।

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