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पलटू नहीं, राजनीति के सबसे कुशल खिलाड़ी हैं बिहार के सीएम नीतीश कुमार!

एक्सपर्ट मीडिया न्यूज नेटवर्क / धनंजय कुमार।  नीतीश कुमार को पलटू कहने वाले राजनीतिक तौर पर नासमझ हैं, उन्हें नहीं पता राजनीति का मतलब क्या है।

नीतीश कुमार पिछले 17 साल से मुख्यमंत्री हैं और बिना उनके बिहार की  राजनीति पर चर्चा पूरी नहीं हो सकती, वो जिधर जाते हैं सरकार उसकी बन जाती है, सरकार कोई भी बनाए नीतीश कुमार अपरिहार्य हैं। और वो भी लटक के तौर पर नहीं बल्कि नेता के तौर पर।

बिहार की राजनीति में जातिगत आधार बड़े महत्वपूर्ण हैं, ऐसे में एक कम संख्या वाली जाति से आने वाले नीतीश कुमार अगर यादव+मुस्लिम गठजोड़ और बीजेपी के साथ हिन्दू वादियों के 40 प्रतिशत वोट होने के बाद भी लीडर बने रहते हैं, तो ये उनकी काबिलियत है। पलटू होते तो अबतक बीजेपी या राजद नीतीश कुमार को पलट चुकी होती।

इस बार जब बीजेपी ने चिराग पासवान को आगे करके नीतीश कुमार को कमजोर करने का खेल खेला, नीतीश कुमार की सीटे काफी कम हो गयीं , बावजूद इसके बीजेपी ने नीतीश कुमार को बिहार का नेता पद सौंपा। क्या इसलिए कि नीतीश पलटू हैं? और कहीं पलटकर राजद के साथ न चले जाएँ?

बीजेपी कांग्रेस के बहुमत वाली मध्यप्रदेश सरकार को गिरा सकती है और अपनी सरकार बना सकती है, वो बिहार में क्यों नीतीश कुमार के पीछे चलने को मजबूर है? नीतीश कुमार को पलटू कहने या परिस्थितियों के मुख्यमंत्री कहने से पहले विश्लेषकों को इस सवाल पर चिंतन करना चाहिए।

जातिगत जनगणना के विरोध में खड़ी बीजेपी की बिहार यूनिट जातिगत जनगणना पर ना नुकूर करके भी नीतीश कुमार के साथ खड़ी होने को मजबूर हो जाती है क्यों? विश्लेषकों को इस बिंदू पर सोचना चाहिए।

नीतीश कुमार की सबसे बड़ी ताकत है- नेता के तौर पर बेदाग होना। न तो परिवारवाद का आरोंप उनपर लगता है, न ही भ्रष्टाचार का और न ही अपने समाजवादी विचार से समझौता करने काआरोंप उनपर ठहरता है।

तमाम समाजवादी-लोहियावादी आज परिवार को कंधे पर लिए घूम रहे हैं, ऐसे में नीतीश कुमार के परिवार का कोई भी व्यक्ति आसपास भी नहीं दिखता, ये नीतीश कुमार के कद को बड़ा करता है।

सत्ता में रहते हुए भ्रष्टाचार करने और किसी पूंजीपति को फ़ेवर करने का आरोंप सहज है, लेकिन नीतीश इस मामले में भी बेदाग हैं।

नीतीश इसलिए भी अलग हैं कि जिस जाति का व्यक्ति मुख्यमंत्री होता है, उस जाति के गुंडे कुकुरमुत्ते की तरह उग आते हैं, लेकिन नीतीश की जाति के लोग यहाँ भी नहीं हैं। नीतीश कुमार ने अपराध और अपराधियों के मामले में सबको नकेल डालकर रखा है।

मोदी के अमृत काल में भी बिहार में बीजेपी के नेता हिन्दू होने को लेकर उत्पात नहीं कर पा रहे हैं, तो यह नीतीश कुमार की उपलब्धि है।

पूरे देश में श्रीराम जयंती, अजान-आरती को लेकर बीजेपी और उनके पालतू चंगु मंगु भड़काऊ और आपत्ति जनक बातें करते रहे। लेकिन बिहार में नीतीश ने ऐसा कुछ भी होने नहीं दिया।

आज देश में कांग्रेस भी मुसलमानों के पर्व त्योहारों से दूरी बरत रही है, ऐसे में नीतीश इफ्तार पार्टी में उत्साह से शामिल होते हैं, तो ये उनकी अपनी राजनीति है, जहां वह सांप्रदायिक बीजेपी के साथ होकर भी प्रदेश का सांप्रदायिक सौहार्द बिगड़ने नहीं देते। न दलितों को कोई सरेआम पीट पाता है न ही किसी मुसलमान की लिंचिंग कर पाता है कोई , तो यह नीतीश कुमार की काबिलियत है।

नीतीश कुमार भले पिछले दो दशक से बीजेपी के साथ हैं, लेकिन कोई भी पार्टी या नेता उन्हें सांप्रदायिक नेता नहीं कह सकता। कांग्रेस और राजद दोनों उनके साथ चलाने को तैयार है। जब पूरे देश में सांप्रदायिक तनाव को सरकार का समर्थन है, ऐसे में नीतीश बीजेपी और सांप्रदायिक सद्भाव के बीच खड़े हैं तो यह उनकी उपलब्धि है।

विकास के स्तर पर भी बिहार अब पहले जैसा नहीं रहा, न सड़क के मामले में न बिजली के मामले में और न ही अपराध के मामले में। घनघोर सामंती समाज वाले बिहार में लड़कियों-महिलाओं के लिए सुकून और सुरक्षा का माहौल है तो ये नीतीश कुमार की उपलब्धि है।

मुसलमान निडर हैं, बुलडोजर पर कानून का अंकुश है यह भी नीतीश कुमार की विचार वाली राजनीति का असर है।

बिहार में नीतीश कुमार के साथ बीजेपी खड़ी हो जाती है बार बार तो इसलिए कि बीजेपी जानती है, नीतीश न केवल बिहार में बल्कि केंद्र में भी उनका खेल बिगाड़ सकते हैं।

नीतीश कुमार राजनीति के सबसे बुरे दौर में भी निर्विवाद हैं, दोस्त और दुश्मन दोनों साथ पाने को लालायित हैं,  तो यह उनकी राजनीतिक सूझबूझ है। तेज दिमाग़ राजनीति है।

2 COMMENTS

  1. निःसंकोच नीतीश ने बिहार की राजनीति को बेहतरीन तरीके से साध रखा है और बिहार के पर्याय भी बने हुए हैं, परंतु उन्हें राजनीत के बेहतर खिलाड़ी या विकासपुरुष कहना अतिश्योक्ति है। साफ शब्दों में कहूं तो बिहार पर मूर्खों या चोरों का पूर्णतः कब्जा है और उन पर पकड़ बनाए रखने में नीतीश जी को महारत हासिल है। सड़क बिजली का जाल देश भर में कुलांछें मार रहा है उद्योग जगत और विश्व बैंक की कृपा से या उनके हितार्थ, परंतु शिक्षा, सामाजिकता, न्याय, अपराध आदि के मामले में बिहार आज निचले पायदान से भी नीचे है। बिन रिश्वत यहां पत्ता तक नहीं हिलता। बस खबरों में रोज विकास हो रहा है। पलायन का तो यह हाल है कि आज बिहार पुरुषविहीन राज्य बन चुका है। यदि यहां के गांवों में कुछ पुरुष दिख जाएं तो समझिए वे या तो रिटायर हैं या निकम्मे।
    ललन कुमार कंज

  2. ललन कुमार कंज जी की बातों से पूर्णतः सहमत हूं।बिहार का शायद ही कोई कार्यालय होगा जहां बिना रिश्वत के काम होता हो।

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