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मोरबी हादसाः 141 लोगों की अकाल मौत, एक्ट ऑफ गॉड या एक्ट ऑफ फ्रॉड?

"मोरबी हादसे के सवालों के जवाब मिलने जरूरी हैं, अन्यथा ऐसी और दुर्घटनाओं की गुंजाइश बनी रहेगी। सांत्वना के खोखले शब्दों और मुआवजों के चंद रुपयों से पीड़ितों को इंसाफ नहीं मिलेगा। उनके साथ न्याय तभी होगा, जब इसके असली दोषी सजा पाएंगे...

इंडिया न्यूज रिपोर्टर डेस्क। गुजरात में मोरबी में माछू नदी पर बने सौ साल पुराने झूलते पुल पर बड़ा हादसा हुआ। रविवार को यह पुल एकदम से टूट गया और उस वक्त इस पर मौजूद कई लोग नीचे नदी में गिर गए। इस भयानक हादसे में अब तक 141 लोगों की मौत की खबर है, लेकिन अब भी कई लोगों के नदी में होने की आशंका है। इनमें से कितने बच पाएंगे, कहना कठिन है।

morbi hadsa modi 2रविवार शाम से यहां बचाव कार्य चल रहा है, जो सोमवार को भी जारी रहा। दरअसल नदी में सीवर का पानी भी आता है, और ये पानी ठहरा हुआ है, जिस वजह से गोताखोरों को नीचे तक रोशनी लेकर जाना पड़ रहा है। यह काम काफी कठिन और जोखिम भरा है। लेकिन इस मुश्किल वक्त में न केवल बचावकर्मी बल्कि स्थानीय निवासी भी पूरी शिद्दत से लगे रहे और अपनी भूख-प्यास की चिंता किए बगैर लोगों को बचाने में लगे रहे।

संयोग से देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी 31 अक्टूबर को अपने गृहराज्य गुजरात में ही थे। उनका यह दौरा सरदार पटेल की जयंती के मौके के उपलक्ष्य में आयोजित हुआ। हालांकि इसके सियासी मकसद भी हैं। गुजरात में जल्द ही चुनाव होने वाले हैं। चुनावों की औपचारिक घोषणा दीपावली के बाद 1 या 2 नवंबर को होने की उम्मीद जतलाई जा रही थी। उससे पहले प्रधानमंत्री मोदी के गुजरात दौरे बढ़ गए हैं।

सोमवार को भी जब मोरबी में पीड़ितों का करुण क्रंदन चल रहा था, उस वक्त श्री मोदी एकता नगर में सरदार पटेल को पुष्पांजलि दे रहे थे। इसके बाद सभा को संबोधित करते हुए उन्होंने बताया कि मैं एकता नगर में हूं, लेकिन मेरा मन मोरबी के पीड़ितों के साथ है। शायद ही मैंने अपने जीवन में ऐसा दर्द अनुभव किया होगा। एक तरफ दर्द से भरा दिल है और दूसरी तरफ है ‘कर्तव्य पथ’।

यह अनायास नहीं है कि श्री मोदी ने कर्तव्य पथ शब्द का इस्तेमाल किया, बल्कि संभवत: इसके पीछे सुविचारित रणनीति है। पाठक जानते हैं कि दिल्ली में राजपथ का नाम अब कर्तव्यपथ हो चुका है। इसी कर्तव्यपथ को अब भाजपा ने गुजरात चुनाव में भुनाने की तैयारी भी की है।

बहरहाल, यह मौका राजनीतिक लाभ-हानि देखने का नहीं है, न ही इस वक्त पुराने राग-द्वेष नजर आने चाहिए। मगर फिर भी पिछले दो दिनों से सोशल मीडिया पर नरेन्द्र मोदी के प.बंगाल में दिए एक भाषण की क्लिप खूब वायरल हो रही है, जिसमें उन्होंने बंगाल में पुल गिरने के हादसे को लोगों के लिए भगवान का संदेश बताया था और इस तरह ममता बनर्जी की सरकार पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाए थे।

अब लोग सवाल कर रहे हैं कि क्या श्री मोदी गुजरात हादसे को भी इसी भाषा और लहजे में भगवान की मर्जी बता सकते हैं। जाहिर है चुनावी मकसद से अतीत में कही गई एक बात अब श्री मोदी के लिए उल्टा तीर साबित हुई है।

वैसे चुनावी मौसम में आरोप-प्रत्यारोप का सिलसिला अभी लंबा चलेगा और पुरानी बातों से भविष्य का हिसाब-किताब लिया जाएगा। मगर इस वक्त राजनीति से परे पहली प्राथमिकता यह सुनिश्चित करने की है कि इस दुखदायी हादसे के पीड़ितों को त्वरित सहायता और न्याय मिले।

मोरबी के इस झूलते पुल को आधुनिक यूरोपीय तकनीक का उपयोग करते हुए बनाया गया था और सरकारी वेबसाइट में इसे इंजीनियरिंग का चमत्कार बताया गया है। नदी के ऊपर 1.25 मीटर चौड़ा और 233 मीटर लंबा पुल बनाना वाकई तकनीकी के चमत्कार से ही संभव है। मगर यह चमत्कृत करने के साथ-साथ सुरक्षित तभी रह सकता था, जब इसकी पर्याप्त देख-रेख होती और इसे सावधानी से इस्तेमाल किया जाता।

अभी ऐसा प्रतीत होता है कि इस पुल के रख-रखाव में घोर लापरवाही बरती गई है। इस पुल को मरम्मत के लिए सात महीने पहले बंद किया गया था, लेकिन 26 अक्टूबर को गुजराती नववर्ष के मौके पर इसे नगरपालिका से दुरुस्ती के प्रमाणपत्र मिले बिना ही खोल दिया गया।

मोरबी नगरपालिका के एक अधिकारी के मुताबिक कुछ महीने पहले पुल को 15 साल की अवधि के लिए रखरखाव और संचालन के लिए ओरेवा समूह को सौंप दिया था।

लेकिन इस निजी कंपनी ने नगरपालिका को सूचित किए बिना पुल को पर्यटकों के लिए खोल दिया और इस वजह से पालिका पुल का सुरक्षा ऑडिट नहीं करवा सकी। खबर ये भी है कि पुल की क्षमता 100 से 120 लोगों की थी, लेकिन इस पर रविवार को 4 सौ के करीब लोग थे।

टिकटों की कालाबाजारी भी होने की खबरें हैं। ये काफी गंभीर आरोप हैं, और इनकी पूरी ईमानदारी के साथ जांच की जरूरत है, ताकि ऐसे लोगों को सजा मिल सके, जो थोड़े से मुनाफे के लिए आम लोगों की जिंदगी के साथ खिलवाड़ कर बैठे।

वैसे विचारणीय प्रश्न ये है कि अगर एक निजी कंपनी रख-रखाव का ठेका हासिल करने के बाद मनमाने तरीके से काम करती रही, तो प्रशासनिक अमला सचेत क्यों नहीं हुआ। अगर फिटनेस प्रमाणपत्र के बगैर पुल खोला गया या जरूरत से अधिक लोगों को उस पर चढ़ने दिया गया तो उस वक्त नगरपालिका आंख मूंदे क्यों बैठी थी। क्या ऐसी ही लापरवाही उन सभी जगहों पर नहीं चल रही होगी, जहां सरकार अपना हाथ पीछे खींच कर निजी हाथों में अपनी जिम्मेदारियां सौंपती जा रही है।

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