Home आस-पड़ोस ‘मोक्ष एवं ज्ञान की नगरी’ गयाः अतीत से वर्तमान का गौरवशाली सफर

‘मोक्ष एवं ज्ञान की नगरी’ गयाः अतीत से वर्तमान का गौरवशाली सफर

GAYA 2गया से

एक्सपर्ट मीडिया न्यूज

के लिए

जयप्रकाश

की रिपोर्ट

‘मोक्ष एवं ज्ञान की नगरी’  गया का नाम एक राक्षस “गयासुर” के नाम पर पड़ा । गया पर पालनहार विष्णु जी का आशीर्वाद बरसता है। गया के कण -कण में छिपा है मोक्ष एवं ज्ञान की ढेरों कहानियाँ ।

गया का उल्लेख महाकाव्य रामायण में भी मिलता है ।त्रेता युग में मर्यादा पुरूषोतम राम ने राजा दशरथ को फल्गू नदी(पहले निरंजना नदी) के तट पर पिंडदान किया था ।

भगवान विष्णु के पांव के निशान पर विष्णु पद मंदिर का निर्माण कराया गया ।1787 में होल्कर वंश की महारानी अहिल्या बाई ने विष्णु पद मंदिर का निर्माण कराया था ।

गया में चीनी,जर्मन यात्री से लेकर  स्वामी विवेकानंद, महात्मा गाँधी से लेकर मो. जिन्ना गया की धरती पर आ चुके हैं । मशहूर अभिनेत्री नरगिस का बचपन तो गया की गलियों में ही बीता था ।

गया की मूल पहचान अंदर गया से होती है।यह चार फाटको के बीच बसा है ।तंग गलियां, ऊंची-ऊंची अट्टालिकाएं अतीत की याद दिलाती है ।

गया की फिजां में बिखरी है तिलकुट की सोंधी-सोंधी महक,अनरसा और लाई की खुशबू है, तो प्यार मोहब्बत की कहानी भी।माउंटेन मैन दशरथ मांझी की कहानी भी है।

 बिहार की राजधानी पटना से 100 किमी दूर मोक्ष एवं ज्ञान की धरती विश्व प्रसिद्ध गया का न सिर्फ ऐतिहासिक महत्व रहा है वरन् इसका धार्मिक महत्व भी  है।गया जितना हिन्दूओं के लिए पवित्र है उतना  बौद्ध धर्म के लिए  भी यह पवित्र स्थल है।

बौद्ध धर्म के प्रवर्तक भगवान बुद्ध को बोधगया में ज्ञान की प्राप्ति हुई थी।

गया फल्गू नदी के तटपर स्थित है।यह शहर अपनी प्राकृतिक सुंदरता के लिए भी जानी जाती है।सृंग स्थान, रामशीला , प्रेतशिला, ढूंगेश्वरी नामक धार्मिक पहाड़ियों की गोद में बसा है गया।

वैसे गया और बोधगया में देशी विदेशी पर्यटकों का हुजुम सालों भर दिखता है।लेकिन पितृ पक्ष में गया का अपना विशिष्ट स्थान है ।

गया हिन्दुस्तान में ही नहीं विश्व में श्राद्ध तर्पण हेतु प्रसिद्ध है।यहाँ देश-विदेश से प्रतिवर्ष लाखों तीर्थ यात्री अपने पितरों को पिंड दान अर्पित करने पहुँचते हैं । गया में अब तक पिंडदान के लिए कई नामी गिरामी हस्ती आ चुके हैं। उनमें सुनील दत्त का नाम अग्रणी है।

फल्गु नदी के तट पर  भव्य विष्णु पद मंदिर स्थित है। जहाँ माना जाता है कि स्वयं भगवान विष्णु के चरण यहां है।”फल्गू नदी” का अपना प्राचीन महत्व रहा है। ऐसा माना जाता है कि भगवान राम ने इसी फल्गु नदी तट पर राजा दशरथ का पिंडदान किया था ।

इस पिंडदान के पीछे एक प्राचीन  कहानी जुड़ी हुई है।यही पर माता सीता द्वारा फल्गू को श्राप दिया गया था। उन्होंने  पीपल वृक्ष को अक्षय वट का वरदान दिया था। वह पीपल वृक्ष आज भी खड़ा है।

श्रीराम के पिंडदान के बाद से यह सिलसिला चल पड़ा कि इस स्थान पर कोई भी व्यक्ति अपने पितरों के निमित्त पिंड दान करेगा तो उसके पितृ उससे तृप्त रहेंगे ।

गया का सिर्फ ऐतिहासिक ही नहीं धार्मिक महत्व रहा है…..

गया के पंचकोश में 54 पिंडवेदियां है ।विष्णु पद मंदिर में 16 वेदी के अलावा सीताकुंड, अक्षय वट तथा धर्मारण्य आदि वेदियां हैं ।

गया सिर्फ ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व के लिए नही जाना जाता है ।इसका सांस्कृतिक और राजनीतिक अतीत  भी काफी गौरवशाली रहा है ।

गया से दस किलोमीटर दूर बोधगया वह स्थान है जहाँ भगवान गौतम बुद्ध को यही ज्ञान प्राप्त हुआ था ।तबसे बोधगया बौद्ध मतालंबियों के लिए पवित्र माना जाता है । यहाँ सालों भर चीन,जापान, नेपाल,श्रीलंका,  वियतनाम, तिब्बत,भूटान,बांग्लादेश, बर्मा, थाईलैंड  समेत कई देशों से पर्यटक पहुँचते हैं।

बोधगया को ‘वर्ल्ड हेरिटेज’ का भी दर्जा प्राप्त है। इसे  को” मंदिरों का नगर” भी कहा जाता है । यहाँ पांचवीं सदी में महाबोधी मंदिर का निर्माण हुआ था ।

गया आजादी के पहले यह साहेबगंज के नाम से जाना जाता था । कभी गया में प्रख्यात साहित्यकार मोहन लाल महतो “वियोगी ” ने अपनी रचनाओं से यहाँ की साहित्यिक परंपरा को आगे बढ़ाया ।

गया के शास्त्रीय घरानों में कभी कंहैया लाल, ठुमरी गायन  में गणपत राय,मशहूर अभिनेत्री नर्गिस की माँ जद्दनबाई , मौजुद्दीन खां साहब आदि जैसे गायकों ने गया को शास्त्रीय संगीत में एक पहचान बनाई।

इतिहास के आईने में गया ……….

# 2727 ई0पूर्व राजर्षि मनु के पोते द्वारा गया में महायज्ञ सम्पन

#2000ई0पूर्व में राजा गया का शासन

#628ई0पूर्व बुद्ध के पितामह अयोधन का गया आगमन

#258ई0पूर्व मगध सम्राट राजा अशोक का गया भ्रमण

# 409 ई0पूर्व में चीनी यात्री फाहियान का गया आगमन

#636-37 ई0 पूर्व चीनी यात्री ह्वेनसांग  भी गया पहुँचे थे।

# 676 ई0पूर्व में तीसरे चीनी यात्री इत्सिंग ने भी गया का भ्रमण किया था ।

#801ई0 में आदि शंकराचार्य का गया आगमन

#1113 ई0 में बाख्तियार खिलजी ने नालंदा के बाद गया पर भी आक्रमण किया था ।

#1508 ई0 में सिक्ख धर्म के स्थापक गुरू नानक भी गया आए थे।

#1787 में महारानी अहिल्या बाई ने विष्णु पद मंदिर का निर्माण कराया था ।

# 1787 में गया को बिहार का मुख्यालय बनाया गया ।

#1787 में ही थाॅमस लाॅ गया के पहले कलक्टर बनाए गए ।

#1789 में विष्णु पद मंदिर में अंग्रेज अधिकारी फ्रांसीस गिलैंदर्सने एक विशाल घंटा लगाया था ।

# 3 अक्टूबर 1865 को गया को विधिवत जिले का दर्जा प्रदान किया गया ।

#1881,1886 और 1902 में स्वामी विवेकानंद भी गया की धरती पर पैर रख चुके हैं ।

#1887 में गया की ह्दयस्थली चौक के पास ओल्डम टावर का निर्माण कराया गया जो आज राजेन्द्र टावर के नाम से प्रसिद्ध है।

# 1921,1925,1927 तथा 1934 में राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी भी आ चुके हैं ।

# 1940 में मुस्लिम लीग के संस्थापक मो0 जिन्ना को भी गया की धरती पर आने का सौभाग्य मिल चुका है ।

गया यहाँ इतिहास, धर्म, कला, साहित्य, गायन, कुश्ती, रहन-सहन, आस्था, श्रद्धा और विश्वास हर रंग दिख जाते हैं । यहाँ आत्मीयता और संस्कार बसते हैं ।

वही गया की फिजां में सोंधी-सोंधी तिलकुट की महक बिखरी हुई है।गया की एक और पहचान है गया की तिलकुट, अनरसा और लाई।

वही गया से 25 किमी दूर गहलौर मांउटेमैन दशरथ मांझी का गाँव जिन्होंने पहाड़ का सीना चीरकर आसान रास्ता बना दिया ।

गया के विश्व प्रसिद्ध पितृ पक्ष मेला में आने वाले तीर्थ यात्री अपने पूर्वजों के बारे में भी जानकारी हासिल करते हैं ।गया के पंडो के पास डेढ़ सौ वर्ष पहले आए लोगों की कुंडली देखी जा सकती हैं । आज भी पिंडदान करने आए लोग अपने पूर्वजों के लिखे पोथियों और हस्ताक्षर देखकर भावुक हो जाते हैं ।

पिंडदान करने वालों में सिर्फ़ भारतीय ही नहीं होते हैं, रूस, स्पेन, जर्मनी सहित कई देशों से सैकड़ों विदेशी महिला पर्यटक अपने परिवार, देश की सुख समृद्धि और शांति के लिए पिंडदान करने पहुँचती हैं ।

प्राचीन ऐतिहासिक दस्तावेजों से भी यह शहर पुराना है ।गया की सुदरं परंपरा कल भी थी, आज भी है।कल भी होगी।यानि गया शानदार, जानदार और जबरदस्त शहर है।

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