Home दो टूक सीएम नीतीश कुमार की नालंदा में थानेदार-दारोगा की देखिए गुंडागर्दी!

सीएम नीतीश कुमार की नालंदा में थानेदार-दारोगा की देखिए गुंडागर्दी!

Look at the hooliganism of the SHO and Inspector in CM Nitish Kumar's Nalanda!
Look at the hooliganism of the SHO and Inspector in CM Nitish Kumar's Nalanda!

नालंदा (एक्सपर्ट मीडिया न्यूज)। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के गृह जिले नालंदा में पुलिस की बर्बरता का एक और मामला सामने आया है। इस्लामपुर थाना पुलिस ने नगर परिषद के टैक्स वसूली करने वाले एक दैनिक मजदूर के साथ हाजत में बेरहमी से मारपीट की है। जबकि उसके खिलाफ कोई मामला दर्ज नहीं था। फिर भी पुलिस ने अमानवीयता की हद पार कर दी।

नगर परिषद में ठेकेदार के अधीन टैक्स वसूली का कार्य पीड़ित मजदूर रंजय कुमार उर्फ पिंटू कुमार ने बताया कि शनिवार को इस्लामपुर थाना के दारोगा सुमन सौरव ने केवई रोड से जबरन पकड़कर थाना ले जाकर बेरहमी से पिटाई की। थानाध्यक्ष के आदेश पर चार पुलिसकर्मियों ने मिलकर उसे लाठी-डंडों से मारा। यहाँ तक कि गुप्तांग पर भी निर्ममता से प्रहार किए गए।

एसपी ने दिए जांच के आदेशः इस घटना के बाद पीड़ित ने नालंदा एसपी भरत सोनी से न्याय की गुहार लगाई। एसपी ने मामले की गंभीरता को देखते हुए डीएसपी को जांच का आदेश दिया और दोषी पाए जाने वाले पुलिसकर्मियों पर उचित कार्रवाई का आश्वासन दिया।

पुलिस अधिकारी की चौंकाने वाली प्रतिक्रियाः इस्लामपुर पुलिस सर्किल इंस्पेक्टर संजीब पासवान ने इस मामले से अनभिज्ञता जताई और कहा कि थाना की जिम्मेदारी थानाध्यक्ष की होती है। उन्होंने यह भी कहा कि उन्हें इस घटना की कोई जानकारी नहीं है। जिससे पुलिस प्रशासन की कार्यशैली पर सवाल खड़े हो गए हैं।

न्याय की मांग और जनता का आक्रोशः पीड़ित ने दोषी पुलिसकर्मियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की मांग की है। इस घटना के बाद क्षेत्र में पुलिस की भूमिका को लेकर गहरा असंतोष देखा जा रहा है। आम जनता इस घटना से गुस्से में है और पुलिस की कार्यशैली पर सवाल उठा रही है। पुलिस द्वारा इस तरह की मारपीट और अमानवीय व्यवहार प्रशासनिक लचरता को उजागर करता है।

क्या यही है ‘सुशासन’ की परिभाषा? मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के शासन में पुलिस तंत्र की इस गुंडागर्दी से साफ है कि कानून के रक्षक ही भक्षक बनते जा रहे हैं। इस घटना ने पुलिस प्रशासन की संवेदनहीनता को उजागर कर दिया है और यह दिखा दिया है कि सत्ता के करीबी होने का मतलब यह नहीं कि किसी को भी अन्याय सहना पड़े। अब देखना यह है कि इस मामले में दोषियों को सजा मिलती है या यह भी अन्य मामलों की तरह फाइलों में ही दफन हो जाएगा।

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