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मोबाइल रील्स को लेकर डॉक्टरों ने दी गंभीर चेतावनी

रील्स का असर सिर्फ आंखों तक सीमित नहीं है। जाने-माने मनोवैज्ञानिक डॉक्टर समीर भाटी एक बताते हैं कि....

एक्सपर्ट मीडिया न्यूज डेस्क। आजकल सोशल मीडिया का जादू हर किसी के सिर चढ़कर बोल रहा है। खासकर छोटी-छोटी मोबाइल रील्स, जो कुछ सेकंड में मनोरंजन का डोज देती हैं, लोगों के लिए एक नई लत बन गई हैं। लेकिन क्या आपने कभी सोचा कि ये मासूम सी दिखने वाली आदत आपकी सेहत पर कितना भारी पड़ सकती है? हाल ही में प्रमुख नेत्र रोग विशेषज्ञों और स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने रील देखने की बढ़ती लत को लेकर गंभीर चेतावनी जारी की है, जिसने सभी को चौंका दिया है।

ऑल इंडिया ऑप्थैल्मोलॉजिकल सोसाइटी (AIOS) के नए अध्यक्ष डॉ. पार्थ बिस्वास ने इसे ‘रील विजन सिंड्रोम’ का नाम दिया है। उनका कहना है कि घंटों तक स्क्रीन पर रील्स देखने से आंखों पर असर पड़ रहा है, जो भविष्य में एक बड़े स्वास्थ्य संकट का रूप ले सकता है।

डॉ. बिस्वास ने चेताया है कि लगातार स्क्रीन पर फोकस करने से पलकें झपकने की दर 50 प्रतिशत तक कम हो जाती है। इससे ड्राई-आई सिंड्रोम, मायोपिया और आंखों में तनाव की समस्या तेजी से बढ़ रही है। खासकर बच्चों और युवाओं में यह खतरा ज्यादा देखा जा रहा है, जो दिन-रात इंस्टाग्राम, टिकटॉक और यूट्यूब की रील्स में खोए रहते हैं।

एशिया पैसिफिक एकेडमी ऑफ ऑप्थैल्मोलॉजी (APAO) के अध्यक्ष डॉ. ललित वर्मा ने इसे ‘डिजिटल आई स्ट्रेन की महामारी’ करार दिया। उन्होंने कहा कि रील्स में तेजी से बदलते दृश्य और कृत्रिम रोशनी आंखों को थका देती है। अगर इस आदत पर काबू नहीं किया गया तो आने वाले समय में चश्मे और आंखों की बीमारियों का बोझ बढ़ सकता है।

रील्स का असर सिर्फ आंखों तक सीमित नहीं है। जाने-माने मनोवैज्ञानिक डॉक्टर समीर भाटी एक बताते हैं कि सोने से पहले घंटों रील्स देखने की आदत नींद को भी बर्बाद कर रही है। रात को स्क्रीन की नीली रोशनी मेलाटोनिन हार्मोन को प्रभावित करती है, जो नींद के लिए जरूरी है। इससे दिमाग को लगता है कि अभी दिन है और नींद गायब हो जाती है। नतीजा? सुबह थकान, चिड़चिड़ापन और दिनचर्या का बिगड़ना।

हाल ही में यूपी के मैनपुरी में एक चौंकाने वाली घटना सामने आई। एक मरीज की हालत गंभीर थी। लेकिन इलाज के दौरान डॉक्टर मोबाइल पर रील्स देखने में मशगूल थे। मरीज ने तड़पते हुए दम तोड़ दिया। इस घटना ने न सिर्फ डॉक्टरों की लापरवाही को उजागर किया, बल्कि रील्स की लत की गंभीरता को भी सामने लाया। परिजनों के विरोध के बाद जांच के आदेश दिए गए हैं। लेकिन यह सवाल उठता है कि क्या हमारी जिंदगी में रील्स का दखल इतना बढ़ गया है कि हम असल दुनिया को भूल रहे हैं?

वरिष्ठ नेत्र विशेषज्ञ डॉ. लालकहते हैं कि रील्स भले ही छोटी हों, लेकिन इनका असर जिंदगी भर रह सकता है। यह चेतावनी न सिर्फ युवाओं के लिए, बल्कि हर उस शख्स के लिए है, जो स्क्रीन पर घंटों बिता देता है। तो अगली बार जब आप रील्स स्क्रॉल करने बैठें तो जरा सोचिए कि क्या 30 सेकंड का मजा आपकी सेहत की कीमत पर भारी नहीं पड़ रहा?

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