अन्य
    Saturday, November 23, 2024
    अन्य

      CM की चिंघाड़ और PGRO के अजीबोगरीब फैसले में छुपे कागजी घोड़े

      एक तरफ सीएम नीतीश कुमार की यह चिंघाड़ कि “आप वहां जाईए। आपका काम होगा। निश्चित तौर पर होगा। निर्धारित सीमा के भीतर होगा” और दूसरी तरफ लोक शिकायत निवारण पदाधिकारियों का इस तरह की मानसिकता शासकीय व्यवस्था की दोहरी नीति की पोल खोलती है…..”  

      एक्सपर्ट मीडिया न्यूज। नालंदा में लोक शिकायत निवारण प्रणाली की काफी बुरी स्थिति है। यहां के पीजीआरओ के फैसले काफी अजीबोगरीब होते हैं। इन्हें भी लगता है कि बिना कोई विशेष प्रशिक्षण-जानकारी के यहां पदास्थापित कर दिया गया है। या फिर एक सुनियोजित प्रशासनिक रणनीति के तहत लंबित शिकायतों को दबा कागजी निराकरण कर लिया जाता है और नतीजा वही ठाक के ती पात। समस्या यथावत।

      RAJGIR PGROराजगीर अनुमंडल लोक शिकायत निवारण कार्यालय में गोरौर गांव निवासी यदु राजवंशी ने तिथि- 25/11/2018 को अनन्य संख्या- 999990125111850265 दायर की।

      इस वाद का विषयगत सार है कि… “पीठासीन पदाधिकारी सह अनुमंडलीय लोक शिकायत निवारण पदाधिकारी, राजगीर द्वारा अपने पद का दुरुपयोग कर स्वेच्छाचारिता के तहत अंचल कार्यालय, राजगीर के प्रभाव में आ कर प्रथम अपीलीय प्राधिकार सह जिला लोक शिकायत निवारण पदाधिकारी,  नालंदा के तिथि- 19/09/2018 को अनन्य संख्या – 527310105021801164/1A में पारित आदेश का अतिलंघन कर सुनवाई करने से इनकार करना और लोक भूमि के अतिक्रमणकारियों के अनुचित लाभ में शामिल अंचल कार्यालय राजगीर के प्रभाव में जुड़कर सक्षम कार्रवाई प्राधिकार के उपर नहीं करना। उदाहर्णाथ जिमि सक्शेना की अनन्य संख्या- 527310101111701026 एवं संतोष कुमार का अनन्य संख्या- 527310101021801150 आदि शामिल हैं।

      RAJGIR PGRO 1 1 ऑनलाइन दायर इस वाद के महज चौथे दिन यानि तिथि-29/11/2018 को अंतिम आदेश दे दिया गया कि “आपका परिवाद अनन्य संख्या- 999990125111850264 से पूर्व में ही अग्रेतर कारवाई हेतु प्रेषित कर दी गई है। अत: परिवाद का समान विषय वस्तु होने के कारण इस परिवाद का खारिज किया जाता है”।

      जबकि, वादी द्वारा दायर परिवाद अनन्य संख्या- 999990125111850264, जिसमें पीठासीन पदाधिकारी सह अनुमंडलीय लोक शिकायत निवारण पदाधिकारी, राजगीर की शिकायत दर्ज कराई गई थी, उसे आरोपी पीठासीन पदाधिकारी को ही निर्णय लेने के लिए सौंप दिया गया था।

      अब आगे बता दें कि जिमि सक्शेना की अनन्य संख्या- 527310101111701026 में महज एक महीने के भीतर तीन तिथियों में मामले का निष्पादन करते हुए अनुमंडलीय लोक शिकायत निवारण पदाधिकारी, राजगीर ने अंतिम आदेश दिया कि… “ऐसा लगता है कि अंचल के द्वारा जान बुझ कर प्रतिवेदन समर्पित नहीं किया गया है तथा सरकारी भूमि को अतिक्रमित करवाने में सहयोग किया जा रहा है। पुन: अंचलाधिकारी, राजगीर को निदेश दिया जाता है कि परिवादी के परिवाद के आलोक में आवश्यक कार्रवाई करते हुए दिनांक 02.02.2018 तक प्रतिवेदन समर्पित करें। इस निदेश के साथ वाद की कार्यवाही समाप्त की जाती है।”

      RAJGIR PGRO 2 1

      उधर, राजगीर दांगी टोला निवासी संतोष कुमार ने तिथि- 01/02/2018 को अनन्य संख्या- 527310101021801150 विषयगत “आपका अनन्‍य संख्‍या 527318026271700033 में आपके द्वारा दिनांक 2.11.2017 को पारित आदेश में लोक प्राधिकार अचलाधिकारी, राजगीर को दिनांक 23.01.2018 तक अतिक्रमण मुक्‍त करते हुए प्रतिवेदन समर्पित करने का आग्रह किया जिसका अनुपालन नहीं किया है। जिसके कारण लोक शिकायत निवारण अधिनियम 2015 की धारा 8 (1) के तहत ससमय कार्रवाई कराने हेतु।” दायर की थी।

      इस वाद की लगातार 13 तिथियों में सुनवाई की गई और तिथि- 30/11/2018 को रटा-रटाया लेकिन अत्यंत रोचक अंतिम सुनवाई आदेश दिया गया कि… “परिवादी द्वारा भी विगत कई सुनवाई से कहा जा रहा है कि उनके परिवाद की सुनवाई इस कार्यालय में बहुत लंबे समय से चल रही है एवं अंचलाधिकारी, राजगीर के द्वारा उनके परिवाद के निवारण हेतु कोई सार्थक कार्रवाई नहीं किया जा रहा है। अत: अंचलाधिकारी, राजगीर के असहयोगात्मक रवैया के कारण परिवाद का वास्तविक निवारण हुए बिना परिवाद की कार्यवाही समाप्त की जाती है। परिवादी अगर चाहें तो अपील में वाद दायर कर सकते हैं। इस सलाह के परिवाद की कार्यवाही समाप्त की जाती है।NALANDA LOK SHIKAYAT NIVARAN 3

      ऐसे आदेश की बाबत राजगीर लोक शिकायत निवारण पदाधिकारी मृत्युंजय कुमार ने बताया कि उपर से ही आदेश है कि अधिक दिनों यानि निर्धारित अवधि के बाद भी लंबित मामलों को किसी तरह समाप्त कर दिया जाए।

      उधर वादी यदु राजवंशी साफ कहते हैं कि इस मामले में राजगीर लोक शिकायत निवारण पदाधिकारी ने जिला लोक शिकायत निवारण पदाधिकारी एवं प्रथम अपीलीय प्राधिकार के आदेश का खुला उलंधन किया है। उनके आदेश का अनुपालन नहीं किया है। वहीं जिला लोक शिकायत निवारण पदाधिकारी ने भी जानबूझ कर अपना आदेश पत्र 30 दिन के बाद दिया है, ताकि वाली को अपील करने का अवसर न मिले।

      संबंधित खबर

      error: Content is protected !!