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    Tuesday, October 15, 2024
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      बिहारः आलोचनाओं के बाबजूद रामचरितमानस पर शिक्षा मंत्री की तल्खी जारी, मिला पार्टी का बल

      पटना (एक्सपर्ट मीडिया न्यूज नेटवर्क)। बिहार के शिक्षा मंत्री चंद्रशेखर सिंह ने दूरस्थ एवं मुफ्त शिक्षा प्रदान करने वाला बिहार का एकमात्र नालंदा खुला विश्वविद्यालय के 15वाँ दीक्षांत समारोह में मेधावी छात्र-छात्राओं को संबोधित किया। उन्होंने अपने संबोधन में रामचरित मानत के कई उपबंधो की आलोचना की। जिसने पूरे देश में की राजनीति में भूचाल ला दिया।

      मीडिया से लेकर एक खास विचारधारा के लोगों का सड़कों तक मुखर विरोध शुरु हो गया। लेकिन इस दौरान शिक्षा मंत्री अपने विचारों की फजीहत से जरा भी विचलित नहीं दिख रहे हैं और, दूसरी तरफ पार्टी नेता जगदानंद सिंह का समर्थन मिलने के बाद उन्होंने और भी तल्ख तेवर अपना लिया है। जगदानंद ने कहा है कि इस मुद्दे पर पार्टी शिक्षा मंत्री के साथ खड़ा है।

      शिक्षा मंत्री कहते हैं कि उनके बयान के बाद से ठेकेदारों के पेट में मरोड़ आ रही है। अरे वे परेशान होंगे ही। उन्होंने तो मंदिरों से ख़ूब माल छापे है। सवाल दलितों-वंचितों का है जिन्हें तुम मंदिर में घुसने से रोकते हो ! एक कहावत भी है न- लोहे का स्वाद लोहार से मत पूछो उस घोड़े से पूछो जिसके मुँह में लगाम है।

      वे आगे कहते हैं कि राम शबरी के जुठे बैर खाकर सामाजिक ताने-बाने को मजबूत करते हैं। अब आप बताइए और सोचिए इतने उदारवादी और समाजवादी राम अचानक से रामचरितमानस में आकर शूद्रों को ढोलक की तरह पीटकर साधने की बात क्यों करने लगते हैं? इस फर्जी पुस्तक से किसे फ़ायदा पहुँच रहा है? सवाल तो करना होगा न!!

      शिक्षा मंत्री के नजर में राम व रामचरितमानस दोनों में ज़मीन आसमान का अंतर है! मैं उस श्री राम की पूजा करता हूँ जो माता शबरी के जूठे बेर खाते हैं, जो माँ अहिल्या के मुक्तिदाता हैं, जो जीवन भर नाविक केवट के ऋणी रहते हैं, जिनकी सेना में हाशिये के समूह से आने वाले वन्यप्राणी वर्ग सर्वोच्च स्थान पर रहते हैं!

      मैं उस रामचरितमानस का विरोध करता हूँ जो हमें यह कहता है की जाति विशेष को छोड़ कर बाक़ी सभी नीच हैं! जो हमें शूद्र और नारियों को ढोलक के समान पिट पिट कर साधने की शिक्षा देता है! जो हमें गुणविहीन विप्र की पूजा करने एवं गुणवान दलित, शूद्र को नीच समझ दुत्कारने की शिक्षा देता है!

      माता शबरी के जूठे बेर खाने वाले राम अचानक रामचरितमानस में आते ही इतने जातिवादी कैसे हो जाते हैं? किसके फायदे के लिए राम के कंधे पर बन्दूक रखकर ये ठेकेदार चला रहे हैं? यही ठेकेदार हैं जो एक राष्ट्रपति को जग्गनाथ मंदिर घुसने से रोकते हैं, मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी के मंदिर जाने पर मंदिर धोते हैं।

      शिक्षा मंत्री का साफ कहना है कि उनका बयान बहुजनों के हक में है और वे उस पर अडिग व कायम रहेंगे। वे ग्रंथ की आड़ में गहरी साजिश से देश में जातीयता व नफरत का बीज बोने वाले बापू के हत्यारों के प्रतिक्रिया की परवाह नहीं करते। वे इस कटु सत्य को भी विवादित बयान समझते हैं तो यह उनकी समझ हो सकती है।

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