पटना (एक्सपर्ट मीडिया न्यूज)। बिहार राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण में शीतकालीन प्रशिक्षण प्राप्त कर रहे विधि छात्रों ने बीते दिन आदर्श केंद्र कारा पटना का 5 जनवरी को भ्रमण किया। इसको लेकर विधि छात्रों में काफी उत्साह देखने को मिला।
विधि छात्रों ने बताया के राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण (NALSA) गठन विधिक सेवा प्राधिकरण अधिनियम, 1987 के तहत किया गया है। जो 9 नवंबर, 1995 से समाज के कमज़ोर वर्गों को मुफ्त और सक्षम विधिक सेवाएँ प्रदान करने के लिये एक राष्ट्रव्यापी समान नेटवर्क स्थापित करने सफल हुआ है।
इसी के दिशा निर्देश पर बिहार राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण के माध्यम से कारा में मुफ्त और सक्षम विधिक सेवाएं उपलब्ध कराई जाती हैं। वो अपना कार्य किस प्रकार से करती हैं उसी को भौतिक रूप से देखने के लिए विधि छात्रों को बिहार राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण के माध्यम से जेल अधीक्षक के आदेश पर यहां भेजा गया है।
विधि छात्र असीम कासमी, जितेंद्र कुमार, शशि शेखर छात्रों ने विशेष बातचीत में बताया कि भारत में कारागार और ‘उसमें हिरासत में रखे गए व्यक्ति’ राज्य का विषय है।
असीम ने बताया कि भारत सरकार मॉडल जेल अधिनियम, 2023′ तैयार किया है, जो ब्रिटिश युग के कानून (1894 का जेल अधिनियम) की जगह लेगा, ताकि जेल प्रशासन में सुधार किया जा सके, ये कैदियों के सुधार और पुनर्वास पर ध्यान केंद्रित रहेगा। जेल अधिनियम 1894 मुख्य रूप से अपराधियों को हिरासत में रखने और जेलों में अनुशासन एवं व्यवस्था को लागू करने पर केंद्रित है। इस अधिनियम में कैदियों के सुधार तथा पुनर्वास का कोई प्रावधान नहीं है।
आदर्श कारागार अधिनियम, 2023 का उपयोग राज्यों द्वारा प्रत्येक राज्य की सीमाओं के भीतर अपनाए जाने वाले आदर्श कानून के रूप में किया जा सकता है। कैदी अधिनियम, 1900 और कैदियों का स्थानांतरण अधिनियम, 1950 दशकों पुराना है तथा इन अधिनियमों के प्रासंगिक प्रावधानों को आदर्श कारागार अधिनियम, 2023 में शामिल किया गया है जिससे भारतीय कारागार प्रणाली को अंतर्राष्ट्रीय मानकों के साथ संरेखित करने और आवश्यक सुधार होने की उम्मीद है। कारागार प्रणाली एक गंभीर मुद्दा रहा है।
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो की एक रिपोर्ट के अनुसार, कारगारों की अधिभोग दर जेल क्षमता का 118.5% है। यह पाया गया कि 4,03,700 की क्षमता वाले कारगारों में कैदियों की संख्या लगभग 4,78,600 थी। भीड़भाड़ के कारण रहने की स्थिति खराब होती है। इससे कई संचारी रोगों के संचरण का जोखिम बना रहता है। कैदियों को हिरासत में यातनाएँ काफी प्रचलित है।
हालाँकि वर्ष 1986 में डी.के. बसु के मामले में लिये गए ऐतिहासिक फैसले के बाद पुलिस को थर्ड-डिग्री यातना देने की अनुमति नहीं है, फिर भी जेलों के अंदर क्रूर हिंसा का प्रचलन है।
गृह मंत्रालय के अनुसार, वर्ष 2021-2022 के दौरान पुलिस हिरासत में मौत के कुल 146 मामले दर्ज किये गए, पिछले पाँच वर्षों में हिरासत में मौत की सबसे अधिक संख्या (80) गुजरात में, इसके बाद महाराष्ट्र ( 76), उत्तर प्रदेश (41) में दर्ज की गई। महिला अपराधियों की संख्या अपेक्षाकृत कम है।
हालाँकि उन्हें स्वच्छता सुविधाओं की कमी, गर्भावस्था के दौरान देखभाल की कमी, शैक्षिक प्रशिक्षण की कमी सहित शारीरिक और मानसिक समस्याओं का सामना करना पड़ता है। बच्चों को ज़्यादातर जेलों के बजाय सुधार गृहों में रखा जाता है ताकि वे खुद को सुधार सकें और अपने सामान्य जीवन में वापस जा सकें। हालाँकि उन्हें बहुत अधिक दुर्व्यवहार का भी सामना करना पड़ता है एवं मनोवैज्ञानिक आघात से गुज़रना पड़ता है।
सर्वोच्च न्यायालय ने वर्ष 2018 में जेल सुधारों पर अपने सेवानिवृत्त न्यायाधीश न्यायमूर्ति अमिताभ रॉय की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया। भीड़भाड़ यानी स्पीडी ट्रायल, वकीलों से कैदियों के अनुपात में वृद्धि, विशेष न्यायालयों की शुरुआत, स्थगन से बचने की समस्या को दूर करने हेतु सिफारिशें की गईं। उन्होंने जेल के पहले सप्ताह में प्रत्येक नए कैदी हेतु निःशुल्क फोन कॉल की भी सिफारिश की। समिति ने आधुनिक रसोई सुविधाओं की भी सिफारिश की।
कारागार योजना का आधुनिकीकरण (2021-26) सरकार ने निम्नलिखित के लिये कारागार में आधुनिक सुरक्षा उपकरणों का उपयोग करने हेतु योजना के माध्यम से राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को वित्तीय सहायता प्रदान करने का निर्णय लिया है। कारागारों की सुरक्षा बढ़ाई जाए। प्रशासनिक सुधार कार्यक्रमों के माध्यम से कैदियों के सुधार और पुनर्वास के कार्य को सुगम बनाना, ई-कारागार योजना का उद्देश्य डिजिटलीकरण के माध्यम से जेल प्रबंधन में दक्षता लाना है।
मॉडल प्रिज़न मैनुअल 2016 मैनुअल कारागार के कैदियों को उपलब्ध कानूनी सेवाओं (मुफ्त सेवाओं सहित) के संदर्भ में विस्तृत जानकारी प्रदान करता है। पुराने स्वतंत्रता-पूर्व अधिनियम, 1894 के कारागार अधिनियम में “कई खामियाँ” हैं और मौजूदा अधिनियम में सुधारात्मक फोकस की हैं।
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