राजगीर, नालंदा (INR)। रजगीर अनुमंडलीय लोक शिकायत निवारण पदाधिकारी ने एक वाद की सुनवाई के बाद अजीबोगरीब फैसला दिया है, जिससे वादी ने असंतुष्ट होकर जिला लोक शिकायत निवारण पदाधिकारी की शरण ली है।
राजगीर अनुमंडलीय लोक शिकायत निवारण पदाधिकारी के समक्ष वाद संख्या-999990124121637691 के जरिये दिनांकः 24.12.2016 यह परिवाद दर्ज किया था कि राजगीर अंचलाधिकारी द्वारा तात्कालीन अनुमंडलीय लोक शिकायत निवारण पदाधिकारी चेतनारायण राय द्वारा अनन्य संख्या- 999990116061423 में सीमांकण वाद संख्या -09/2016-2017 के अतिक्रमणकारी के विरुद्ध अतिक्रमण हटाने की घोषणा नहीं करने और न ही अतिक्रमणकारियों के स्वंय अतिक्रमण हटाने हेतु नोटिश नहीं दिये जाने के कारण त्वरित विभागीय एवं कानूनी कार्रवाई सुनिश्चित की जाये।
इस वाद की सुनवाई के उपरांत वर्तमान राजगीर अनुमंडलीय लोक शिकायत निवारण पदाधिकारी ने अपने निर्णय आदेश में लिखा है कि सुनवाई के दौरान राजगीर अंचलाधिकारी न तो स्वंय उपस्थित हुये और न ही कभी अपना पक्ष रखा। राजगीर अंचलाधिकारी का रवैया नकारात्मक है। बि.लो.शि.अ.अधिनियम-2015 के अनुच्छेद 8 के अंतर्गत राजगीर अंचलाधिकारी पर शास्ति अधिरोपण का मामला बनता है। शास्ति अधिरोपन की अनुशंसा के साथ वाद की कार्वाई समाप्त की जाति है। राजगीर अंचलाधिकारी 15.04.2017 तक अनुपालन प्रतिवेदन देना सुनिश्चित करें।
बता दें कि बि.लो.शि.अ.अधिनियम-2015 के अनुच्छेद 8 के अंतर्गत शास्ति अधिरोपण के तहत 500 रुये से 5000 रुपये तक आरोपित के वेतन से वसूली करने का आदेश देता है।
लेकिन इस संदर्भ में राजगीर अंचलाधिकारी ने अब तक कोई अनुपालन प्रतिवेदन ही दिया है और न ही शास्ति अधिरोपण की वसुली की कार्रवाई ही की गई है। जबकि लोक शिकायत निवारण प्राधिकार के सुनवाई को किसी भी लोक सेवक द्वारा धत्ता बताना एक गंभीर अपराध की श्रेणी में आता है।
इस निर्णय से असंतुष्ट वादी पुरुषोतम प्रसाद ने नालंदा जिला प्रथम अपीलीय प्राधिकार के कार्यालय में वाद संख्या- 999990124121637691 दर्ज कराया है। जिसका फैसला आना बाकी है।