Home देश सिर्फ आदेश-निर्देश से संभव नहीं है सोशल मीडिया क्राईम कंट्रोल

सिर्फ आदेश-निर्देश से संभव नहीं है सोशल मीडिया क्राईम कंट्रोल

वेशक आज समाज में सोशल मीडिया के उपयोग और दुरुपयोग के एक से एक खतरनाक आयाम इतनी तेजी से सामने आ रहे हैं कि इस पर नजर रखने और उपद्रवी तत्वों के खिलाफ समय से कार्रवाई करने की जरूरत बढ़ती ही जा रही है। अगर सरकार या प्रशासन सोशल मीडिया पर जारी गतिविधियों पर निगरानी की कोई व्यवस्था कर रही है तो पहली नजर में इसे स्वाभाविक और उचित ही कहा जाएगा। लेकिन…..

-:  मुकेश भारतीय :-

नालंदा पुलिस-प्रशासन ने संयुक्त रुप से सामाजिक सद्भाव बनाये रखने के लिये सोशल मीडिया को लेकर विशेष एहतियात वरतने का फरमान जारी किया है। अगर सोशल मीडिया पर कोई आपत्तिजनक मैसेज पोस्ट किया जाता है तो पोस्ट करने वाले पर प्राथमिकी दर्ज कर कार्रवाई की जाएगी।nalanda admin social media

डीएम डॉ. त्यागराजन एसएम और एसपी सुधीर कुमार पोरिका द्वारा जारी आदेश-निर्देश के अनुसार सोशल मीडिया पर नजर रखने के लिए पुलिस गोपनीय शाखा में एक स्पेशल सेल बनाया गया है। जिसमें खासकर आईटी के क्षेत्र में दक्ष लोगों को लगाया गया है। जो चौबीसों घंटे वाट्सएप, फेसबुक, ट्विटर आदि पर पोस्ट किए गए मैसेजों पर नजर रख रहे हैं।

पुलिस-प्रशासन ने सोशल मीडिया, खासकर व्हाट्सएप्प ग्रुपों को लेकर निम्न निर्देश दिया  है….

  1. ग्रुप एडमिन वही बनें जो उस ग्रुप के लिए पूरी जिम्मेदारी वहन करने में समर्थ हो।

  2. ग्रुप के सभी सदस्यों से ग्रुप एडमिन पूर्णत: परिचित हों।

  3. ग्रुप के किसी सदस्य द्वारा गलत बयानी, बिना पुष्टि का समाचार जो अफवाह बन जाये पोस्ट किये जाने पर या सामाजिक समरसता बिगाड़ने वाले पोस्ट पर तत्काल खंडन कर उसे तुरंत ग्रुप से निकालें और पुलिस को सूचना दें।

  4. ग्रुप एडमिन द्वारा कोई कार्रवाई नहीं होने और पुलिस को सूचना देने पर ग्रुप एडमिन भी दोषी होंगे।

हालांकि जिला पुलिस-प्रशासन का यह कोई नया आदेश-निर्देश नहीं है। ऐसे आदेश-निर्देश जारी होते रहे हैं और उसकी शोसल साइटों पर कड़ी रखने की बड़ी चुनौती बरकरार रहती है। इसका एकमात्र कारण है कि उसके पास एक्सपर्टों का अकाल है या फिर वे लापरवाह  हैं। इसके कई उदाहरण हैं।

खबर है कि एसपी नालंदा के पुलिस गोपनीय शाखा में एक स्पेशल सेल बनाया गया है। हालांकि यह पहले से भी रहा होगा और उसमें कुछ माडर्न टेकनिक-एक्सपर्ट लगाये गये होगें, सिर्फ उन पर आंखमूंद कर भरोसा कर लेना शायद ही कारगर हो।

क्योंकि एसपी के उसी स्पेशल सेल में ‘तीसरी आंख’ की व्यवस्था है, लेकिन सब जानते हैं कि बिहारशरीफ शहर में कितने अपराध पहचान में आये। मलमास मेला के दौरान झूला टूटने की अफवाह फैलाने वाले आज तक चपेट में नहीं आ सके। जबकि खुद एसपी-डीएम ने दावा किया था कि उनकी साइबर एक्सपर्ट की टीम वैसे अफवाबाजों को शीघ्र दबोच लेगी।

दरअसल, यह समस्या कोई एक जिला पुलिस-प्रशासन तंत्र की नहीं है बल्कि समूचे राज्य और पूरे देश की है। आज सोशल मीडिया की रोज डेवलप होते तकनीक पर सिर्फ आइपीसी या आईटी एक्ट की धाराओं का उल्लेख कर अंकुश नहीं लगाया जा सकता।

वाकई पुलिस-प्रशासन सोशल मीडिया के खुंखारों पर काबू पाना है तो उसे त्वरित कानूनी कार्रवाई के साथ सहभागिता की नीति भी अपनानी होगी। और यह तभी संभव होगा कि जब नियत हो।

साथ में यह भी नहीं भूलना चाहिये कि मुंबई में बाल ठाकरे की मौत के बाद मुम्बई बंद के विरूद्ध दो लड़कियों की फेसबुक पर टिप्पणी के बाद गिरफ्तारी भी एक मामला है। सुप्रीम कोर्ट ने पुलिस की कार्रवाई को अवैध बताते हुये आईटी एक्ट की उस धारा को निरस्त कर दी है, जिसके आंगिक के बल सख्त  कार्रवाई करने के विनिर्देश जारी किये जाते हैं।

बिहार ही नहीं, देश के अधिकांश राज्यों में पुलिस पूरी तरह से टेक्नोलोजी या सोशल मीडिया के विकास से अनजान है और इसलिए पुलिस को इसके उपयोग और दुरूपयोग का ज्ञान नहीं है।

साइबर-अपराध या सोशल मीडिया में कोई जानकारी या प्रशिक्षण न होने के कारण अधिकतर पुलिस वाले पूरी तरह से तैयार नहीं हैं कि वे निवारक उपाय कर सकें या किसी भी नतीजे की परिस्थिति के साथ इसका समाधान कर सकें।

सोशल मीडिया क्राईम कंट्रोल में जुटे हाई लेवल एक्सपर्ट का भी मानना है कि सरकारी तंत्र की सहभागिता ही अंतिम उपाय है। जिससे वाक्य व अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का हनन भी न होगा और उसकी आड़ में समाज प्रदूषित या भयाक्रांत भी न होगा।

एक्सपर्टों की राय में समाज में सोशल मीडिया, उसके अत्यंत गोपनीय टूल व्हाट्सएप्प के जरिये होने वाले आपसी वैमन्यस्य, दुराभाव, दुष्प्रचार आदि के खतरे रोकने लिये यह जरुरी है कि

  1. कोई भी सरकारी गैरसरकारी संस्था, संगठन या व्यक्ति यदि कोई कोई सोशल ग्रुप क्रियेट करता है तो उसमें उस लोक प्राधिकार को शामिल करना अनिवार्य कर दिया जाय, जो विधि सम्मत कानूनी कार्रवाई करने में सक्षम हो।

  2. नार्मल ग्रुप क्रियेटर और एडमिन जहां का निवासी हो, उस परिक्षेत्र के निम्नवार पुलिस इंसपेक्टर-थानाध्यक्ष को ग्रुप में जरुर शामिल करे।

  3. ग्रुप क्रियेटर यदि शासकीय, सांस्थिक, राजनीतिक, सामाजिक, वैचारिक, मनोरंजन आदि मकसद से कोई ग्रुप बनाता हो तो उसमें अंचल, अनुमंडल, जिला स्तर के न्यूनतम सक्षम लोक प्रधिकार को जरुर शामिल करे।

  4. अगर कोई सोशल मीडिया ग्रुप क्रियेटर पत्रकारिता से जुड़ी सूचनाओं के अदान-प्रदान के मकसद से ग्रुप बनाता या बनाया हुआ हो तो उसमें न्यूनतम सक्षम लोक प्राधिकार या स्थानीय सूचना एवं जनसंपर्क पदाधिकारी को जरुर शामिल किया जाये।   

  5. किसी भी सोशल साइट ग्रुप खासकर व्हाटस्एप्प ग्रुप के सदस्यों के प्रोफाईल पिक्चर, उसका मोबाईल नंबर, परिचय आदि ऑरिजनल है या नहीं, इसकी जबाबदेही ग्रुप एडमिन की तय कर दी जाये।

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