पटना (जयप्रकाश नवीन)। ‘लुट गए शिक्षक कॆ सारॆ अरमान,
उस पर एक नया फरमान! कलम त्याग अब थामॆंगॆ,
शराबबंदी की कमान! गुरू की महिमा है अपरंपार,
बंद हुए जहां बीयर बार,वहां शराब कहां सॆ आता है?
कौन कहां कहां छिपाता है? अब शिक्षक पता लगायॆंगॆ,
अपना कौशल दिखलायॆंगॆ,छोड पढाई, जासूसी का
हुनर भी अब आजमायॆंगॆ!’
सोशल मीडिया पर एक लंबी चौड़ी कविता की यह छोटी-सी लाइन हैं, जिसमें बिहार के शिक्षकों का दर्द है जिन्हें पहले ही पढ़ाने के अलावा बीसो काम हैं, उसमें अब सरकारी फरमान के बाद गुरूजी अब शराबियो की जासूसी करेंगें।
बिहार के शिक्षकों पर बच्चों का भविष्य निर्माण की जिम्मेदारी के बीच वे अब शराब खोजने के मिशन पर निकलेंगे। सरकार का फरमान है कि सिर्फ गुरु या गुरूआईन जी ही नहीं बल्कि नियत मानदेय पर काम कर रहे शिक्षा सेवकों,तालीमी मरकज और विद्यालय शिक्षा समिति के सदस्यों को भी शराब पीने और बेचने वालों की पहचान करनी होगी और इसकी सूचना मध निषेध विभाग को देने का काम सौंपा है।
बिहार में शराबबंदी कानून को सफल बनाने और शराबियों पर नकेल कसने के लिए शिक्षा विभाग ने नया फरमान जारी किया है।इसके मुताबिक अब राज्य के सभी सरकारी शिक्षक शराबियों की पहचान करेंगें।
इसके लिए बजाप्ता शिक्षा विभाग के अपर मुख्य सचिव संजय कुमार ने बिहार के डीईओ और डीपीओ को पत्र जारी कर इसे अमल में लाने को कहा है। यह आदेश सरकारी शिक्षकों के साथ शिक्षा समितियों को दिया गया है। शिक्षा विभाग के इस फरमान के बाद राज्य का सियासी पारा गर्म हो गया है।
सभी विपक्षी दलों ने सरकार के इस तुगलकी फरमान को हास्यास्पद और मूर्ख सोच बता रहे हैं। शराबबंदी की जिद पर अड़ी बिहार सरकार का यह फरमान सुशासनी सता की हनक और हठ माना जा रहा है।
पहले से ही सीएम नीतीश कुमार की पुलिस क्राइम कंट्रोल के बजाए दारू और धंधोबाजो को ढूंढने में लगी है। इसके अलावा उत्पाद विभाग का लंबा चौड़ा दस्ता शराब की बिक्री और चुलाई को रोकने में लगा हुआ है।
बाबजूद धड़ल्ले से शराब मिल रहा है और लोग सख्ती के बाद भी पी रहे हैं। शराबबंदी की वज़ह से एक तरफ जहां, शराब का अवैध कारोबार फल फूल रहा है,वहीं नशे का कारोबार भी चरम पर है।
बेहद खास बात यह है कि शराब माफिया शराब के अवैध कारोबार से सरकार के सामने एक अलग अर्थव्यवस्था खड़ी कर चुके हैं। लेकिन सूबे के मुखिया के सनक की वजह से पुलिस विभाग के साथ-साथ अन्य विभाग भी अपने कर्तव्य से भटक गए है।
वैसे भी बिहार में शिक्षा की हालत खस्ताहाल है। यह किसी से छिपी नहीं है। शिक्षक बच्चों को पढ़ाने के बजाय सरकारी कार्यों में लगें रहते हैं या फिर प्रखंड कार्यालय और शिक्षा कार्यालय में शोभा बढ़ा रहे हैं।
पहली शिक्षक बहाली के बाद से ही बिहार में की शिक्षा व्यवस्था चौपट हो चुकी है। जिस कारण थोड़ा बहुत ही सक्षम और जागरूक अभिभावक अपने बच्चों को सरकारी स्कूलों में कदापि पढ़वाना नहीं चाहता है। ऊपर से सरकारी फरमान तो और भी शिक्षा चौपट करने वाला है।
यह तुगलकी फरमान शिक्षकों की जान सांसत में डाल सकती है। अब मुखबिरी कोई भी करेंगे, शराब माफियाओं के शक की सूई स्थानीय शिक्षकों पर ही होगी और अकारण शिक्षक की जान जाएगी। यह नियम जरा भी कहीं से बुद्धिमत्ता पूर्ण नहीं लगती। यह ठीक है कि नशाखोरी के विरुद्ध जागरूकता अभियान में शिक्षकों का उपयोग किया जाएं तो सराहनीय कदम माना जा सकता है।
गौरतलब रहें कि सारी ताकत झोंकने के बाद भी, नीतीश सरकार शराबबंदी लागू कराने में पूरी तरह फेल साबित हुए हैं, नालंदा,सीवान और बक्सर में हाल ही में जहरीली शराब पीने से लोगों की मौत इसका सबूत है।
वैसे बिहार की शिक्षा व्यवस्था चौपट करने में सीएम नीतीश कुमार पर अंगूली उठती रही है। वोट की खातिर राज्य के स्कूलों में अनपढ़ों को शिक्षिक बनाकर नयी पीढ़ी की बुनियाद ही खराब कर दी है तो दूसरी तरफ अपने पहले कार्यकाल में पूरे राज्य में शराब के ठेके खुलबा दिया।
फिर महिलाओं की वोट बैंक पाने के लिए ठेकों को बंद करवा कर शराबबंदी का ऐतिहासिक फैसला लिया। नतीजा जबरन शराबबंदी का फैसला कारगर नहीं हो पा रहा है
ऐसे में सरकारी फरमान के बाद देखना दिलचस्प होगा कि सुशासनी सता के गुरूजी शराबबंदी कानून को लागू करने में कितना असरदार साबित होते हैं!