मुश्किल में रघुबर, दुर्गा उरांव ने दायर की जनहित याचिका

    रांची। राज्यसभा चुनाव के स्टिंग आॅपरेशन के उजागर होने के बाद उसके और भी पर्त खुलने लगे हैं। झारखंड विकास मोर्चा के अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी द्वारा प्रेस कांफ्रेंस कर इस गड़बड़ी का खुलासा करने के बाद अब दुर्गा ऊरांव ने झारखंड उच्च न्यायालय में एक लोकहित याचिका दायर की है।

    raghubar dasश्री ऊरांव पहले से ही इस किस्म की जनहित याचिकाओं के दायर करने की वजह से एक चर्चित नाम है। मूल रुप से मुंडा होने के बाद भी उन्होंने पूर्व के एक अत्यंत विवादास्पद मामले में खुद को सुरक्षित रखने के लिए ऊरांव नाम का इस्तेमाल किया था। बाद में सरकार द्वारा उन्हें सुरक्षा भी उपलब्ध करायी गयी थी।
    अदालत में दायर जनहित याचिका में मुख्यमंत्री रघुवर दास, उनके सलाहकार अजय कुमार ,एडीजी अनुराग गुप्ता, सीबीआई, यूपीएससी और निर्वाचन आयोग को प्रतिवादी बनाया गया है। इसी क्रम में मामले की सीबीआइ जांच कराने की भी मांग की गयी है।

    हाइकोर्ट में प्रार्थी ऊरांव ने जनहित याचिका दायर कर आरोप लगाया है कि राज्य सभा चुनाव 2016 के दौरान सत्ता पक्ष को वोट नहीं होने के बावजूद भी उम्मीद को जुगार से जीत दिलाया है। उन्होने अपने याचिका में झारखंड विकास मोर्चा के सुप्रीमो बाबुलाल के द्वारा जारी किये गये सीडी को आधार बनाया है। साथ ही स्थानीय समाचार पत्रों में छपी खबरों को भी आधार बनाने हुए याचिका दायर की है।
    इस मामला के दायर होने के बाद यह स्पष्ट होने लगा है कि दरअसल इस मामले को उजागर करने में भाजपा का भी एक खेमा शामिल है। पहले से ही इस बात की चर्चा हो रही थी कि स्टिंग आॅपरेशन के नाम पर इस किस्म की रिकार्डिंग उजागर करने का श्रेय यहां के एक कद्दावर भाजपा नेता को ही दिया जाता है।

    वैसे भी श्री मरांडी के प्रेस कांफ्रेंस में एडीजी स्पेशल ब्रांच अनुराग गुप्ता ने जिन मोबाइल नंबरों से बात की थी, वे नंबर किन लोगों के नाम पर थे, इसकी जानकारी होना किसी आम आदमी के बूते की बात नहीं थी।
    वैसे इस मामले में प्रतिवादी बनाये गये अजय कुमार के विरूद्ध पहले से ही अवैध निर्माण संबंधी एक मामला अदालत में विचाराधीन है। आरआरडीए और नगर निगम के अलावा निगरानी और सीआइडी में होते हुए अवैध निर्माण का यह मामला सीबीआइ तक जा पहुंचा था।

    उच्च न्यायालय के आदेश पर रांची के तमाम अवैध निर्माण की जांच के क्रम में सीबीआइ ने जिन मामलों को अपने हाथ लिया था, उनमें 21 ऐसे मामले छोड़ दिये गये थे, जो निगरानी के पास थे। इन्हीं में से एक अजय कुमार का मामला भी है।

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