“42 किमी की दूरी वाले फतुहा-इस्लामपुर रेलखंड में है 41 गेट, सात पर इंजीनियरिंग और आठ गेट पर ऑपरेटिंग कर्मी है तैनात, रेलखंड के तीन गेट पर अब तक नहीं हुई गेट मैन की प्रतिनियुक्ति”
हिलसा (एक्सपर्ट मीडिया न्यूज)। यात्रियों की सुरक्षा और सुविधा का रेलवे जितना भी दावा करता हो लेकिन हकीकत ठीक इसके विपरीत है। इसका जीता-जागता नमूना है फतुहा-इस्लामपुर रेलखंड।
तकरीबन बयालीस किमी की दूरी वाला इस रेलखंड में इकतालीस गेट है। अधिकांश गेट पर रेल का सरकारी कर्मचारी नहीं बल्कि निजी एजेंसी के द्वारा प्रतिनियुक्त गेट मित्र प्रतिनियुक्त है।
मालूम हो कि बड़ी मशक्कत कर तत्कालीन रेलमंत्री नीतीश कुमार बंद पड़े फतुहा-इस्लामपुर रेलखंड का आमान-परिवर्तन करवाकर वर्ष 2003 के जनवरी माह में ट्रेन दौड़वाए। रेलखंड के उद्घाटन मौके पर श्री कुमार ने यात्री सुविधा और सुरक्षा का भरोसा दिया था।
कुछ दिन बाद यात्री सुविधा के तौर देश की राजधानी दिल्ली तक मगध ट्रेन का तोहफा देकर नीतीश कुमार कुमार लोगों से दिल्ली का रास्ता मांगा, लेकिन स्थिति प्रतिकूल रही।
चुनाव में एनडीए का पत्ता साफ हो गया तो नीतीश कुमार भी रेलमंत्री की कुर्सी से हट गए। इसके बाद यूपीए की सरकार में रेलमंत्री बने लालू प्रसाद। अपने भतीजे की शादी में हिलसा पहुंचे लालू प्रसाद ने लोगों की मांग पर समधिनियां नाम देकर बक्सर-इस्लामपुर ट्रेन चलवायी।
पार्टी के गाईड लाईन से हटकर मदद करने के एवज में सांसद रामस्वरुप प्रसाद की मांग पर यूपीए सरकार द्वारा इस रेलखंड पर हटिया एक्सप्रेस चलवाया गया। लेकिन यात्रियों की मूलभूत समस्या और सुरक्षा का उतना ख्याल नहीं रखा गया जितनी होनी चाहिए।
न तो इस रेलखंड पर चलने वाली ट्रेनों में पुख्ता सुरक्षा और न ही किसी स्टेशन पर थाना या फिर कैम्प भी खोला गया। इस रेलखंड में राहगीर एवं वाहनों की आवाजाही के बनाए गए गेट पर भी सुरक्षा का इंतजाम नहीं किया गया।
इस बयालीस किमी की दूरी वाले इस रेलखंड पर इकतालीस गेट है, जिसमें आठ इंजीनियरिंग तथा सात ऑपरेटिंग के अधीन संचालित है। इन गेटों पर सरकारी कर्मचारी प्रतिनियुक्त हैं। इसके अलावा छब्बीस गेट मानव रहित (अनमेंड) है।
ऐसे अनमेंड गेटों पर होने वाली दुर्घटनाओं को रोकने के लिए हाल के कुछ दिनों से गेट मित्र की नियुक्ति की गई। इस रेलखंड में छब्बीस में से तीन अनमेंड गेट पर किसी की भी प्रतिनियुक्ति नहीं है।
अनमेंड गेट पर प्रतिनियुक्त गेट मित्र रेलवे का सरकारी कर्मचारी नहीं होता बल्कि रेलवे द्वारा प्राधिकृत एजेंसी गेट मित्र की प्रतिनियुक्ति करता है। ऐसे गेट मित्रों के पास ट्रेनों की बेहतर आवाजाही के लिए कौन सी सुविधा दी गयी इसकी जानकारी स्थानीय अधिकारियों को भी नहीं है।
बहरहाल, जो भी हो। इन स्थितियों से इतना तो स्पष्ट है कि इस रेलखंड के अधिसंख्य गेटों पर सुरक्षा के लिए रेलवे के कुशल कर्मचारी के बजाए निजी एजेंसी द्वारा प्रतिनियुक्त गेट मित्र है, जिन्हें रेलवे के कायदे कानून की पूरी जानकारी भी नहीं है। ऐसी स्थिति में कोई हादसा हो जाए तो कोई आश्चर्य की बात नहीं होगी।