-मुकेश भारतीय-
रांची। स्वर्णरेखा जल विद्युत परियोजना सिकिदिरी अंदर से खोखला हो गया है। अफसरों औऱ ठेकेदारों की सांठगांठ का आलम यह है कि करोड़ों की बंदरबांद हो जाती है और कहीं कोई काम धरातल पर नहीं दिखता है। हाल के वर्षों में हालत काफी गंभीर हो गई है। यहां बिना प्राक्कलन या निविदा के कार्य आम बात है। चोरी-चोरी और चुपके-चुपके कहां क्या होता है, किसी को भी पता नहीं चलता। कागजों पर ही करोड़ों की हेराफेरी हो जाता है। यदि इसकी तत्काल सुध नहीं ली गई तो वह दिन दूर नहीं कि जब लोग कहेगें एक था सिकिदिरी जल विद्युत परियोजना।
बहरहाल, इस परियोजना का बेड़ा गर्क करने में मौखिक आदेश की आड़ में लूट खसोंट की बड़ी भूमिका है। एक ऐसा ही मामला अमर शहीद शेख भिखारी के वंशज मो. शेख अनवर से जुड़ा है। पूर्व परियोजना प्रबंधक वशीर अंसारी ने उन्हें पावर हाउस-2 परिसर में बोल्डर पिंचिग का कार्य करने को कहा।
संवेदक ने जनवरी-मई, 2015 के बीच 17 लाख रुपये का कार्य कर दिया। यह सब साईड इंजार्य ईई मनोज कुमार कमल और जेई संतोष कुमार की निगरानी में हुआ था। जब भुगतान की मांग की गई तो विभागीय स्तर पर टालमटोल अपनाया जाने लगा।
इसी बीच तात्कालीन प्रबंधक वशीर अंसारी जुलाई,15 में सेवानिवृत हो गए। दोनों इंचार्य, ईई और जेई का तबादला हो गया। वशीर अंसारी के कार्यकाल में परियोजना में चहुंओर मनमानी और भ्रष्टाचार का बोलबाला रहा। आज परियोजना की जो दुर्दशा दिख रही है, उसमें 80 फीसदी उन्हीं का योगदान माना जाता है।
यह मामला झारखंड बिजली बोर्ड तक पहुंच चुका है। बोर्ड की विवशता है कि जमीनी कार्य होने के बाबजूद बिना कागजी कार्रवाई के भुगतान कैसे किया जाए। अगर किया जाता है तो गलत परपंरा को बल मिलेगा और प्रबंधन व्यवस्था पर ही बड़ा सबाल खड़ा हो जाएगा।
अब सबाल उठता है कि संवेदक ने बिना निविदा के सिर्फ मौखिक आदेश पर इतनी बड़ी निविदा पर कार्य कैसे शुरु किया और पांच माह तक लगातार करते रहा। सतरह लाख रुपये की रकम कोई छोटी रकम नहीं है।
बकौल शेख अंसारी, वह बहुत गरीब आदमी है। इस कार्य को पाने लिए उन्होंने जाहिर है कि पर्दे के पिछे ठेका माफिया खड़े हैं, जो प्रबंधन स्तर की सांठगांठ से काम करते हैं और अनियमियता के विपरित भुगतान पाने में सफल हो जाते हैं। अगर यह मामला मीडिया में न आता। राजनीतिक लोग हो-हल्ला न मचाते, राशि का भुगतान गोपनीय ढंग से कब का हो जाता। लेकिन मामला अब इतना तुल पकड़ चुका है कि इस मामले में कोई भी विभागीय अधिकारी अपनी गर्दन फंसाने को तैयार नहीं हैं। सारा मामला काफी पेंचीदा हो गया है। आजसू की स्थानीय ईकाई इसको लेकर आंदोलन कर रही है। देखना है कि आगे क्या गुल खिलता है।
सपरिवार आत्मदाह कर लूंगाः
“ मैंने मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर न्याय की गुहार लगाई है। मैं विस्थापित परिवार से हूं। गेतलसूद डैम में मेरा 40 एकड़ जमीन डूबा हुआ है। तब प्रबंधक वशीर अंसारी ने गुमराह करके काम कराया। कहा गया कि कार्य पूरा होते ही प्राक्कलन बनाकर प्रशासनिक प्रदान कर दी जाएगी लेकिन बाद में वे पल्ला झाड़ने लगे। इधर 10 महीने से नीचे से उपर लोग दौड़ा रहे हैं। अब हिम्मत हार चुके हैं। शीघ्र न्या नहीं मिला तो सपरिवार आत्महत्या कर लेगें। ”
…… कुटे गांव निवासी मो. शेख अंसारी, संवेदक, शहीद शेख अंसारी के वंशज
परंपरा का निर्वाह कियाः
“ आपात कार्य के तहत आदेश दिया गया था। उस समय के ईई और जेई प्राक्कलन बना कर सौंप चुके हैं। इसका अप्रूवल कराना परियोजना प्रबंधक का काम है। मैंने मौखिक आदेश के तहत कार्य कराने की परंपरा का निर्वाह किया है। कहीं कुछ भी गलत नहीं किया है। ”……वशीर अंसारी, सेवानिवृत प्रबंधक, सिकिदिरी परियोजना
बिना स्वीकृति भुगतान असंभवः
“ मैंने कार्यस्थल पर जाकर हर पहलु का भौतिक सत्यापन किया है। चूकि यह कार्य मौखिक आदेश के तहत हुआ है इसलिए बगैर प्रशासनिक स्वीकृति के संवेदक को बिल का भुगतान करना संभव नहीं है। संवेदक और आंदोलनकारियों की मांग से बिजली बोर्ड प्रबंधन को अवगत करा दिया गया है। उपर से जैसा आदेश होगा, वैसा ही किया जाएगा। ” ……. अमर नायक, परियोजना प्रबंधक, सिकिदिरी।