“कांग्रेस के वरिष्ठ नेता एवं पूर्व केन्द्रीय मंत्री सुबोधकांत सहाय का स्पष्ट कहना है कि अगर सरकार इस तरह की कड़वी सच्चाई पर सफेद झूठ की चादर चढ़ाने वालों पर कानूनी कार्रवाई नहीं करती है तो इससे साफ हो जायेगा कि उसकी ईशारे पर ही सत्तारुढ़ दल के भांड़ नेता और अकर्मण्य अफसर एक सोची समझी रणनीति के तहत काम कर रहे हैं।”
उन्होंने कहा कि राजदीप और उसका परिवार कर्ज में बुरी तरह से डूबा था। इसके प्रमाण स्पष्ट हैं। ऐसे में यह कहना सुसाइड करने वाले किसान पर कोई बैंक कर्ज नहीं था और उसने बीमारी के कारण आत्महत्या कर ली है, इस तरह के सफेद झूठ अमानवीयता की हद और एक अपराध है। सरकार को चहिये कि ऐसे नेता और अधिकारी के खिलाफ अपराधिक मुकदमा दर्ज कर कड़ी कार्रवाई करे।
उन्होंने कहा कि अगर सरकार इस तरह की कड़वी सच्चाई पर सफेद झूठ की चादर चढ़ाने वालों पर कानूनी कार्रवाई नहीं करती है तो इससे साफ हो जायेगा कि उसकी ईशारे पर ही सत्तारुढ़ दल के भांड़ नेता और अकर्मण्य अफसर एक सोची समझी रणनीति के तहत काम कर रहे हैं।
उन्होनें कहा कि इसके पूर्व कांके में कर्ज में महतो परिवार के दो किसान ने आत्म हत्या कर ली। जब वे श्मसान घाट पर मातम पूर्सी को गये तो एक मृत किसान के भाई ने फूट-फूट कर रोते हुये कहा कि अब क्या करेगें। उनकी 5-6 बेटियां हैं, प्रशासनिक रवैया देख कर लगता है कि वे भी आत्महत्या कर लें।
उन्होंने कहा कि ओरमांझी के बिजांग गाव से जो अधिकारी जांच कर गया है, उसकी मानसिकता तो देखिये कि यहां सुसाइड करने वाले किसान के ईलाज में खेत गिरवी हो गया। उसे अपनी बैल तक बेचनी पड़ी। उसके और उसके भाई के नाम बैंक के नाम 90-90 हजार रुपये का बैंक लोन है। बैंक वाले नियम विरुद्ध जबरिया तेवर अपना रहे थे। फिर भी वेशर्मी की हद पार कर बोल रहे हैं कि किसान पर कोई कर्ज नहीं था, उसकी मौत बीमारी की वजह से हुई है।
उन्होनें किसानों की आत्महत्या पर राजनीति के बावत कहा कि इस मुद्दे पर राजनीति तो सरकार कर रही है। यहां किसानों की जान भी जा रही है और इन्हें झूठा भी बनाया जा रहा है। ऐसे में वे क्या करें। उनके क्षेत्र में 3 किसानों ने आत्म हत्या कर ली। ऐसे में वे उनके साथ खड़े भी न हों और खड़े होने पर कोई राजनीति की बात करता है तो इससे अधिक शर्मनाक क्या हो सकता है। यहां कभी मुख्यमंत्री या उसके मंत्री- जनप्रतिनिधि को फुरसत तो है नहीं। उल्टे ऐसे दुःखद पहलु राजनीति की बात करते हैं।
उन्होंने कहा कि पीएम नरेन्द्र मोदी ने किसानों वादा किया था कि मेहनत और पूंजी से 50 फीसदी अधिक देगें। अब कहां दिख रहा है उनका वादा। आज झारखंड में नकली बीज किसानों को बेची बेची गई। उससे किसानों को पूरी फसल पैदाईश चली गई। उनकी मेहनत चली गई। यहां फसल बीमा का आज तक पैसा नहीं मिला।
उन्होनें कहा कि झारखंड देश का पहला ऐसा राज्य है, जहां के किसान 600-700 रुपये प्रति क्वीटंल धान बिचौलियो के हाथ बेचने को विवश हो गये। उधर सरकार प्रचार करती रही कि 1600 रुपये खरीद हो रही है। ये दाम किसको मिले। सीधे तौर पर बिचौलियों और विभागीय अफसरों को, जो एक दूसरे से सांठ-गांठ रखते हैं। किसानों को तो उनकी पूंजी भी न लौट सकी। इतना खुल्लमखुला लूट पहले कभी न थी।
उन्होंने कहा कि कितनी अजीब बात है कि रघुवर दास के राज किसानों की मौत पर एसआइटी का गठन किया जा रहा है। ताकि मनमाफिक रिपोर्ट लाई जाये कि ये किसान कर्ज तले दब कर आत्म हत्या नहीं की है। वे इतने खुश थे कि खुशी में ही जान दे दी। ये क्या नौटंकी है। किसानों की आत्म हत्या पर एसआइटी, सरकारी अमानवीयता की इतनी बड़ी हद। वाह रे सरकार।