“ नालंदा का चंडी प्रखंड शिक्षा के मामले में अपने आप में एक अद्भूत है। कहीं स्कूलों में शिक्षक नहीं, कहीं बच्चों की पढ़ाई नहीं, कहीं छात्रों को सरकारी किताबें नसीब नहीं, कहीं बिना किताबों के ही परीक्षाएं हो जाती है। तो कभी सरकारी किताबें गोदामों में पड़ी सड़ जाती है। तो कहीं धूल फांकती है तो कहीं बाजारों में या फिर कबाडखाने में बिक जाती है। जो सरकारी स्कूलों की किताबें बेचने की हिम्मत नहीं दिखाते हैं, वे छात्रों को किताब बांटने के बजाय कूडेदान में फेंक देते हैं। देखिये कैसे चंडी प्रखंड में छात्रों का भविष्य फेंका गया है कूडेदान में।”
सरकारी स्कूलों की किताब फेंके जाने की सूचना मिलते ही लोग उसे देखने के लिए पहुँचने लगें। वहीं कुछ कबाड इकट्ठा करने वाले लोग भी वहाँ जमा हो गए। जिनको जो किताब का बंडल हाथ लगा, उसे लेकर नौ दो ग्यारह हो गए।
सभी किताबें सही सलामत बंडल में फेंकी हुई थी। ऐसा लगता है कि किताबें छात्रों को बांटने के बजाय किसी शिक्षक ने अपने घर में रख लिया हो। दीपावली की साफ सफाई के दौरान उक्त किताबों को डाकबंगला परिसर के कूडेदान में ठिकाने लगा दिया। जहाँ लोगों की नजर फेंकी हुई किताबों पर पड़ गई।
जब इस संबंध में बीईओ बिंदु कुमारी से पूछा गया तो उन्होंने कहा कि ऐसा हो ही नहीं सकता। स्कूल की किताबें या तो बांट दी गई है या बची हुई गोदाम में रखी हुई है। उन्होंने स्कूल की किताब फेंके जाने की घटना से ही इंकार कर दी।
अब सवाल यह उठता है कि आखिर किसने सरकारी स्कूलों के किताबों को यहां ठिकाने लगाया। बीआरसी और डाकबंगला की दूरी भी कुछ ज्यादा नहीं है। डाकबंगला के नाक के सामने चंडी मध्य विधालय के एक शिक्षक का मकान भी है, शायद उनकी भी यह हिमाकत हो सकती है।
फिलहाल मामला चाहे जो भी हो लेकिन, चंडी प्रखंड में शिक्षा व्यवस्था तार तार हो चुकी है। यहाँ के शिक्षक छात्रों के भविष्य को कूडेदान में फेंक रहे हैं। आखिर बिना किताबों को ऐसे पढेगे छात्र तो कैसे बढ़ेगा बिहार। एक सवाल नालंदा के डीएम और डीईओ से आखिर कब सुधरेगी शिक्षा व्यवस्था।