“शहीद स्थल पर बनाये गये पुलिसिया आवास को खाली करवाने के लिए कोर्ट का दरवाजा भी खटखटाया। लेकिन सफलता हाथ नहीं लगी। शहादत स्थल के पास कूड़ेदान का शक्ल ले चुकी महज छह फीट चौड़ी जमीन पर क्षेत्र विकास मद से तत्कालीन विधायक ने स्मारक बनाकर शहीदों के प्रति सहानुभूति जरुर दिखायी। इसके बाद किसी भी जनप्रतिनिधि या अधिकारी का शहीद स्मारक की तरफ कोई ध्यान नहीं दिया।”
हिलसा (चन्द्रकांत)। कभी अंग्रेजी हुकूमत से आर-पार की लड़ाई लड़ कर देश को आजाद कराने वाले स्वतंत्रता सेनानियों के सपने उनके जीते जी पूरे नहीं हो सके। आजाद भारत में चहुमुंखी विकास की सोच को लेकर अंग्रेजी सिपाहियों से लड़ने वाले स्वतंत्रता सेनानियों के गांवों की न तो सूरत बदली और न ही हट सका शहादत स्थल से अतिक्रमण।
आजादी की लड़ाई में यूं तो हिलसा तथा आसपास के इलाके के हर लोगों ने सहयोग किया, लेकिन चर्चा में वहीं रहे जो सीधे तौर पर अंग्रेजी हुकूमत से लड़ाई लड़ी। ऐसे लोगों में से किसी को शहीद का तो कई को स्वतंत्रता सेनानी का दर्जा मिला।
जंगे आजादी की लड़ाई में अंग्रेजों से लड़ते-लड़ते अपने ग्यारह साथियों को गंवा चुके राम बिहारी त्रिवेदी भले ही अब इस दुनियां में नहीं हैं, लेकिन उनके संघर्ष को लोग आज भी याद करते नहीं थकते।
बताया जाता है कि सन् 15 अगस्त 1945 को जब जंगे आजादी में हिलसा की सड़कों पर युवाओं का जत्था उमड़ा और थाना परिसर में तिरंगा लहराने की कोशिश की तो अंग्रेजी हुकूमत की पुलिस आंदोलनकारियों पर गोलियां बरसरानी शुरु कर दी। इस गोलीबारी में हिलसा के ग्यारह नौजवान शहीद हो गया।
थाना के ठीक सामने हुई इस लड़ाई में शहीद हुए सभी नौजवानों को अंग्रेजी हुकूमत की पुलिस वहीं पेट्रोल छिड़कर दफन कर दिया। आजादी के बाद इसी स्थल पर लड़ाई में गोली लगने के बाद भी किसी प्रकार बच चुके राम बिहारी त्रिवेदी शहीद स्मारक बनाने की आवाज बुलंद की।
इसके लिए शहीद स्थल पर बनाये गये पुलिसिया आवास को खाली करवाने के लिए कोर्ट का दरवाजा भी खटखटाया। लेकिन सफलता हाथ नहीं लगी। शहादत स्थल के पास कूड़ेदान का शक्ल ले चुकी महज छह फीट चौड़ी जमीन पर क्षेत्र विकास मद से तत्कालीन विधायक रामचरित्र प्रसाद सिंह शहीद स्मारक बनाकर शहीदों के प्रति सहानुभूति जरुर दिखायी। इसके बाद किसी भी जनप्रतिनिधि या अधिकारी का शहीद स्मारक की तरफ कोई ध्यान नहीं दिया।
हिलसा प्रखंड के चौदह स्वतंत्रता सेनानियों में से अब एक भी स्वतंत्रता सेनानी जीवित नहीं हैं। आजादी के लिए संघर्ष करने वालों में से एक स्वतंत्रता सेनानी कारु प्रसाद के पड़ोसी गांव चंदुबिगहा निवासी नरेश प्रसाद अकेला की मानें तो पंचायत असाढी की तो छोड़िए स्वतंत्रता सेनानी कारु प्रसाद के गांव भरेती में वैसा कुछ नहीं हुआ, जिसकी कल्पना लोगों को थी।
भरेती गांव में बुनियादी सुविधा भी बेहतर नहीं है। आवाजाही के लिए न तो बेहतर सड़क है और न ही मरीजों के इलाज के लिए हॉस्पीटल। शुद्ध पानी के लिए आबादी के अनुसार चापाकल भी नहीं है। किसानों के खेत पटवन के लिए कोई मजबूत व्यवस्था नहीं है। एक अर्द्ध प्राथमिक विद्यलाय में गांव के बच्चे पढ़ते हैं। स्वास्थ्य सेवा से पूरी तरह महरुम भरेती गांव के लोगों को हल्की-सी तबीयत बिगड़ने पर लोगों को इलाज के लिए सात किमी पैदल चल कर हिलसा जाना पड़ता है।
सार्वजनिक स्थल के रुप में एक सामुदायिक भवन है जिसमें लोग किसी तरह का कार्यक्रम करते हैं। इस प्रकार यह कहना आश्चर्य नहीं होगा कि जिस सोच को लेकर हिलसा के लोगों ने जंगे आजादी की लड़ाई लड़ी वह सोच उनकी जिंदगानी में तो हकीकत बनता नहीं दिखा।