बिहारशरीफ (नालन्दा)। पैगमबर हजरत मोहम्मद के नवासे इमाम हसन-हुसैन की याद में मनाया जाने वाला शहादत का पर्व मुहर्रम बिहारशरीफ में शांति एवं सौहाद्र पूर्ण वातावरण में सम्पन्न हो गया।
इस अवसर पर सभी मुहल्लों से निकाली गई ताजिया के साथ जुलुस बड़ी दरगाह स्थित कर्बला गई जहाँ नजरो नियाज के साथ पहलाम किया गया।
सदियों से चली आ रही परम्परा के अनुसार यह महीना इस्लाम धर्म के अनुसार साल का पहला महीना होता है। इस महीने का चाँद दिखाई देने के दिन से ही मुहर्रम का महीना शुरू हो जाता है।
इसी रोज़ से इस्लाम के मानने वाले जुलुस के शक्ल में निकाले जाने वाले अखाड़े में सिपल, ताजिया और नौबतखाने बनाने की तैयारी में की जाती है और दसवें दिन यह सम्पन्न हो जाता है। वहीं जिले में हमेशा की तरह पहलाम मुहर्रम के ग्यारह तारीख को होता किया जाता है।
जिले के तमाम प्रखंडों में भी मुहर्रम का पर्व शान्ति एवं सौहाद्र पूर्ण माहौल में सम्पन्न हुआ। इस मौके पर गिरियक प्रखंड के बकरा, डाक्टर इंग्लिश, केरुआ, जलापुर, सतौवा, बेलादरी, गिरियक बाजार, खरान्ठ, सिलाव प्रखंड के कराह, झालर, सीमा, बेलौवा, हिलसा, इस्लामपुर, बेन, राजगीर, इस्लामपुर, परवलपुर, आदि प्रखंडों में ताजिया, सिपल एवं इस्लाम के झंडे के साथ जुलुश निकाली गई।
बिहारशरीफ में देर शाम तक बनौलिया, कटरापर, सोहडीह, सहोखर, आशानगर, खासगंज, शेखाना, सकुनत, इमादपुर, मिरदाद, बैगनाबाद, भुसट्टा, मोहल्ला लहेरी, मोहल्ला थवई, मह्लपर, खानकाह, सबजी बाजार, शेरपुर मोहल्ला , बड़ी दरगाह आदि मोहल्ले से अखाड़े एवं जुलुस निकले गये। लोगों ने इस मौके पर लाठी, डंडे, तलवार, बाना के खेल का एक से एक बढ़कर नुमाइश पेश किया।
इधर जिले के विभिन्न अनुमंडलों एवं प्रखंडों में राजगीर, हिलसा सहित गिरियक, सिलाव, बेन आदि प्रखंडों में भी सिपल व ताजिये के साथ जुलूस निकाले गये और कर्बला जाकर शांति एवं श्रधा पूर्ण पहलाम किया गया।
इस मौके पर इस धर्म के मानने वाले मुख्य रूप से अपने घरों में विभिन्न प्रकार के व्यंजन बनाते हैं और अकीदतमंद लोग इसे नजरों नियाज़ करते हैं। इसके बाद लोग दोस्तों के बीच बांटकर खाते हैं ।
जानकारों की मानें तो इस्लाम के आनुआइ आज भी इमाम हुसैन के अकीदतमंद के लिए मैदाने कर्बला में अपने दिने बुनियाद के अकीदत और सच्चाई के लिए कुर्बान होने की याद में मनाते हैं। यह पर्व काफी महत्वपूर्ण माना जाता है। इस पर्व को भी कुर्बानी के पर्व के नाम से जाना जाता है ।
बताया जाता है कि इमाम हुसैन ने मैदाने कर्बला में अपने दीन की बुनियादी अकीदत और सच्चाई के लिए इज़हार किया और अहले बैत रसूल की जानों का नजराना देकर दीने मैदान के कर्बला में एक ऐसा बाबे रक़म कायम किया जिसकी मिशाल मिलना न मुमकिन है।
इमाम हुसैन की कुर्बानी मेराज दर्सगाह इंसानियत को बताता है । मैदाने कर्बला में जो वाकिया गुज़रा, उस मैदाने कर्बला में शहीदों के इंसानियत के अज़मत व जलाल रहती दुनिया तक कायम रहेगा। यह एक ऐसा नमूना पेश किया जिसे किसी भी दौर का इन्सान फ़रामोश नहीं कर सकेगा।
बताया जाता है कि आपने तमाम मुसीबतों को बर्दाश्त किया और अपने आँखों के सामने अपने प्यारों को शहीद होते देखा। ऐसा कर आपने बता दिया कि इस्लाम का असल नमूना यही है।
इमाम हुसैन ने मैदाने कर्बला में अपना सर कटा कर नाना (मोहम्मद) की उम्मतों को बचा लिया और दीन इस्लाम का परचम सरबुलंद किया।