“हमारी शख्सियत का अंदाजा तुम क्या लगाओगे गालिब, जब गुजरते हैं कब्रिस्तान से तो मुर्दे भी उठ के पूछ लेते हैं, कि डॉक्टर साहब अब तो बता दो मुझे तकलीफ क्या थीं”? उक्त पंक्तियाँ उन नीम हकीम चिकित्सकों पर सटीक बैठती है, जो मुर्दो से भी कफन छीन रहे हैं।
चंडी (एक्सपर्ट मीडिया न्यूज)। एक तरफ सरकार और जिला प्रशासन निजी स्कूलों और कोचिंग संस्थानों पर लगाम लगा रही है। उनके निबंधन को लेकर सख्त कदम उठा रही है।
चंडी प्रखंड के रेफरल अस्पताल के पास, माधोपुर, जैतीपुर, हिलसा रोड, हरनौत मोड़, नरसंढा सहित कई क्षेत्रों में दर्जनों निजी क्लिनिक या नर्सिंग होम फल फूल रहा है। बावजूद न स्वास्थ्य विभाग की नींद टूटती है और न ही नालंदा के डीएम की।
बिना किसी डिग्री और निबंधन के चल रहे इस क्लिनिको में न कोई डिग्री धारी चिकित्सक होते हैं, न ही कंपाउडर और न ही इलाज की समुचित व्यवस्था ।कपाउंडर ही चिकित्सक की भूमिका निभाते हैं।
चंडी प्रखंड में बगैर लाइसेंस और निबंधन के अवैध रूप से संचालित दर्जनों क्लिनिक मुर्दे से कफन छीनने की कहावत को चरितार्थ कर रहे है। लालच और पैसे की भूख ने इनसे मानवता और सारी संवेदनाएं तक छीन ली है। साथ ही टूट रहा है वह भरोसा और विश्वास, जो लोगों के अंदर चिकित्सा सेवा के प्रति अभी तक कायम थी।
इन क्लिनिकों में इलाज के नाम पर धोखाधड़ी और मरीजों व उनके परिजनों के साथ होने वाले अमानवीय व्यवहार को देखने सुनने वाला कोई नहीं।
हालाँकि तस्वीर का दूसरा पहलू भी है, वह यह कि क्षेत्र में कुछ ऐसे चिकित्सक हैं, जो अपनी ईमानदारी और कर्त्तव्यनिष्ठा की बदौलत इस सेवा की लाज बचाये हुए हैं।
चिकित्सा सेवा की गुणवत्ता और विश्वसनीयता बनाये रखने के लिए प्रशासन को चाहिए कि वह राज्य सरकार के क्लिनिकल इस्टेबलिशमेंट एक्ट को चंडी के सभी क्लिनिकों में लागू कराये।
चिकित्सा विभाग के लोगों का मानना है कि यदि डॉक्टर ईमानदारी पूर्वक अपने यहां इस एक्ट का पालन करें तो उनके क्लिनिक में इलाज की बेहतर व्यवस्था देखने को मिल सकती है। मरीजों का इलाज भी उचित तरीके से हो सकेगा।
चंडी प्रखंड में जिस प्राइवेट क्लिनिक या नर्सिंग होम में एक्ट का पालन नहीं हो रहा है, उसे फौरन बंद कराया जाना चाहिए, ताकि गलत इलाज के कारण लोगों को मरने से बचाया जा सके।
ये क्लिनिक कहीं से स्वास्थ्य मानकों के अनुरूप नहीं हैं।जहां-तहां खोले गये नर्सिंग होम्स का भी यही हाल है। दो-चार चौकियां रख दी, हरे रंग का परदा टांग दिया, किसी तरह एक ओटी और एक चिकित्सक कक्ष बना दिया और खुल गया नर्सिंग होम। ऐसे नर्सिंग होम्स ही मरीजों के लिए जानलेवा साबित होता रहा है ।
ऐसे डॉक्टर की फीस, जांच की दर और ऑपरेशन की फीस निर्धारित नहीं होने के कारण भी रोगियों को शोषण-दोहन का शिकार होना पड़ता है।
प्रशासनिक स्तर पर इन सभी चीजों की दर निर्धारित होनी चाहिए और उसकी सूची सभी क्लिनिकों और नर्सिंग होम्स में लगायी जानी चाहिए। इससे मनमानी और नाजायज वसूली पर रोक लगेगी और मरीजों को राहत मिलेगी। ऐसे अवैध क्लिनिकों में कई बार मरीजों की जान पर बन आती है।
सूत्रों ने बताया कि अब तो मरीज सरकारी रेफरल अस्पताल से इन निजी क्लिनिकों में कमीशन पर लाएँ जा रहे हैं, जिनमें कुछ स्वास्थ्य कर्मियों की भी मिलीभगत रहती है।
पिछले दिनों नगरनौसा प्रखंड के एक गाँव की महिला की मौत जैतीपुर के एक क्लिनिक संचालक की लापरवाही से चली गई थी।
इन अवैध नर्सिंग होम में पुलिस को जानकारी दिए बिना पुलिस केस वाले इलाज भी चोरी छिपे किया जा रहा है। यहाँ तक कि भ्रुण हत्या जैसे घृणित कार्य भी हो रहा है।
लेकिन स्वास्थ्य विभाग की लापरवाही और जांच नहीं होने से इन नर्सिंग होम संचालकों का मनोबल बढ़ा हुआ है। नर्सिंग होम जिला प्रशासन को आंखों में धूल झोंक कर सरकार को लाखों का चूना भी लगा रहे हैं। मरीजों को लूटकर मालामाल हो रहे हैं।