Home आस-पड़ोस ‘नीम हकीमों की बहार’ की यूं भेंट चढ़ी जच्चा-बच्चा की मौत, हंगामा

‘नीम हकीमों की बहार’ की यूं भेंट चढ़ी जच्चा-बच्चा की मौत, हंगामा

फर्जी  निजी क्लिनिक  के अप्रशिक्षित कथित चिकित्सकों की लापरवाही से जच्चे-बच्चे की मौत के बाद हंगामा को देखते हुए क्लिनिक के सारे कर्मचारी फरार हो गए। चंडी रेफरल अस्पताल के आशा तथा कुछ कथित नर्सो की मिलीभगत से निजी क्लिनिक में अस्पताल से मरीज हाइजैक किए जा रहे हैं…..”

नालंदा (एक्सपर्ट मीडिया न्यूज)। नालंदा का चंडी गजब का प्रखंड है।यहाँ शिक्षक फर्जी, यहां डॉक्टर भी फर्जी और उनका क्लिनिक भी फर्जी। ऐसे ही फर्जी चिकित्सक और क्लिनिक की भेंट चढ़ गया एक जच्चा और बच्चा। चंडी प्रखंड के डीहरा गाँव के दिव्यांग सुजीत कुमार की पत्नी फुलवा देवी प्रसव के लिए चंडी रेफरल अस्पताल में भर्ती हुई थी।

लेकिन देर रात अस्पताल से बिना डॉक्टर को सूचना दिए आशा की मिली भगत मरीज को निजी क्लिनिक में भर्ती करा दिया गया जहाँ इलाज के दौरान जच्चा- बच्चा की मौत हो गयी।

मृतक महिला के परिजन विद्या देवी ने बताया कि पेट दर्द के बाद आशा के द्वारा गर्भवती मरीज को रेफरल अस्पताल चंडी लाया गया।

एएनएम बोली कि बच्चा यहां नही होगा। बाहर ले जाओ।  इसके बाद चंडी में निजी क्लिनिक के बारे में तथा डॉक्टर के संबंध में पता करने गए। पता करके आये तो देखे की आशा ने गंगा जल सेवा सदन अस्पताल में मरीज को भर्ती करा दिया है।

भर्ती के बाद ऑपरेशन के नाम पर पंद्रह हजार रुपया की मांग की गयी। दस हजार रुपया तुरंत दिया। ऑपरेशन के बाद एक बच्चा पैदा हुआ। तभी बच्चे की तबीयत बिगड़ गया। नर्सिंग होम में लगाया गया बच्चा का ऑक्सीजन भी छीन लिया और कहा कि ऑक्सीजन दे देंगे तो अगला मरीज आएगा तो क्या करेंगे।

परिजन बीमार नवजात बच्चे को लेकर बिहारशरीफ जा रहे थे। तभी बच्चे की मौत हो गई। इधर महिला मरीज की भी हालत काफी गंभीर हो गई। निजी क्लिनिक के द्वारा खून चढ़ाने के नाम पर भी परिजन से दस हजार रूपया ठग लिया।

इसके बाद बच्चा के बाद जच्चा मरीज की भी मौत हो गई। इस घटना के बाद मरीज के परिजनों ने क्लिनिक में काफी हंगामा किया तथा थाना में आवेदन भी दिया। इधर निजी अस्पताल के सभी कर्मी फरार हो गए।

चंडी प्रखंड में धड़ल्ले से निजी क्लिनिक और नर्सिंग होम का संचालन हो रहा है। पूरे क्षेत्र में नीम हकीमों की चल रही है। सभी नियम कानून ताक पर रखकर क्लिनिकों का संचालन किया जा रहा है। चंडी में कुकुरमुते की तरह  निजी क्लिनिक का जाल फैला हुआ है।

चंडी प्रखंड के चंडी रेफरल अस्पताल के सामने,  माधोपुर, जैतीपुर, हिलसा रोड, हरनौत मोड़, नरसंढा सहित कई क्षेत्रों में दर्जनों निजी क्लिनिक या नर्सिंग होम फल फूल रहा है। बावजूद न स्वास्थ्य विभाग की नींद टूटती है और न ही नालंदा के डीएम की।

बिना किसी डिग्री और निबंधन के चल रहे इस क्लिनिको में न कोई डिग्री धारी चिकित्सक होते हैं,  न ही कंपाउडर और न ही इलाज की समुचित व्यवस्था। अप्रशिक्षित कपाउंडर ही चिकित्सक की भूमिका निभाते हैं।helth crime froud clinik

चंडी प्रखंड में  बगैर लाइसेंस और निबंधन के अवैध रूप से संचालित दर्जनों  क्लिनिक मुर्दे से कफन छीनने की कहावत को चरितार्थ कर रहे है। लालच और पैसे की भूख ने  इनसे मानवता और सारी संवेदनाएं तक छीन ली है। साथ ही टूट रहा है वह भरोसा और विश्वास, जो लोगों के अंदर चिकित्सा सेवा के प्रति अभी तक कायम थी।

इन क्लिनिकों  में इलाज के नाम पर धोखाधड़ी और मरीजों व उनके परिजनों के साथ होने वाले अमानवीय व्यवहार को देखने सुनने वाला कोई नहीं। हालाँकि तस्वीर  का दूसरा पहलू भी है।

वह यह कि क्षेत्र में कुछ ऐसे चिकित्सक हैं, जो अपनी ईमानदारी और कर्त्तव्यनिष्ठा की बदौलत इस सेवा की लाज बचाये हुए हैं। निजी क्लिनिकों व अस्पतालों में यदि क्लिनिकल इस्टेबलिशमेंट एक्ट को लागू कराने के प्रति जिला प्रशासन और स्वास्थ्य विभाग गंभीर होता तो स्थिति बदल सकती थी।

चिकित्सा सेवा की गुणवत्ता और विश्वसनीयता बनाये रखने के लिए प्रशासन को चाहिए कि वह राज्य सरकार के क्लिनिकल इस्टेबलिशमेंट एक्ट को चंडी के सभी क्लिनिकों में लागू कराये।

चिकित्सा विभाग के लोगों का मानना है कि यदि डॉक्टर ईमानदारी पूर्वक अपने यहां इस एक्ट का पालन करें तो उनके क्लिनिक में इलाज की बेहतर व्यवस्था देखने को मिल सकती है। मरीजों का इलाज भी उचित तरीके से हो सकेगा।

जानकारों का कहना है कि चंडी  प्रखंड में  जिस प्राइवेट क्लिनिक या नर्सिंग होम में एक्ट का पालन नहीं हो रहा है, उसे फौरन बंद कराया जाना चाहिए, ताकि गलत इलाज के कारण लोगों को मरने से बचाया जा सके।

चंडी में संचालित क्लिनिकों में रोगियों के बैठने तक की सुविधा नहीं होती है। इन क्लिनिकों का हाल देखेंगे तो ऐसा लगेगा मानो ये क्लिनिक के बजाय दरबे में दुकान चला रहे हों। कुछ को छोड़ कर ज्यादातर प्राइवेट क्लिनिकों में रोगियों के लिए न्यूनतम सुविधाएं भी उपलब्ध नहीं।

ये क्लिनिक कहीं से स्वास्थ्य मानकों के अनुरूप नहीं हैं. जहां-तहां खोले गये नर्सिंग होम्स का भी यही हाल है। दो-चार चौकियां रख दी, हरे रंग का परदा टांग दिया, किसी तरह एक ओटी और एक चिकित्सक कक्ष बना दिया और खुल गया नर्सिंग होम. ऐसे नर्सिंग होम्स ही मरीजों के लिए जानलेवा साबित होता रहा है ।

माधोपुर में  लोगों का कहना है कि डॉक्टर की फीस, जांच की दर और ऑपरेशन की फीस निर्धारित नहीं होने के कारण भी रोगियों को शोषण-दोहन का शिकार होना पड़ता है।

प्रशासनिक स्तर पर इन सभी चीजों की दर निर्धारित होनी चाहिए और उसकी सूची सभी क्लिनिकों और नर्सिंग होम्स में लगायी जानी चाहिए। इससे मनमानी और नाजायज वसूली पर रोक लगेगी और मरीजों को राहत मिलेगी।

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