सरेआम दिन उजाले खुले में शौच कर रहे एक ग्रामीण से जब रोका तो उसकी आक्रामक टिप्पणी थी कि ‘ई बाजार में एको गो हगे मूते के कोय जगह न हय। त का अपन जेभीये में हगीयय-मूतियय का। कहीं न कहीं त करबे न करबै ’।
सुदूर क्षेत्रों के लिये एक बड़ा ग्रामीण बाजार रहे नगरनौसा में आने वाले सारे भुक्तभोगियों की एक ही व्यथा है।
अजय यादव, नबीन कुमार, कैलाश यादव, उपेंद्र यादव सहित दर्जनों ग्रामीणों ने अलग-अगल भेंट में एक सुर में कहा कि हम लोग रोज मर्रे की समान की खरीदारी के लिए नगरनौसा बाजार आते रहते हैं, लेकिन शौच लग जाने के बाद सड़क के किनारों का ही इस्तेमाल सदियों से करने को विवश हैं, क्यूंकि इस बाजार में एक भी सार्वजनिक शौचालय का निर्माण स्थानीय प्रशासन या जनप्रतिनिधियों के द्वारा अब तक नहीं करवाया गया है।
सनद रहे कि लगभग पांच महीने पहले नगरनौसा पंचायत खुले में शौच मुक्त घोषित किया जा चुका है, लेकिन प्रखंड मुख्यालय के बाजार में आजादी के छः दशक बीत जाने के बाद भी दूर दराज से आने वाले ग्रामीणों के लिये कोई शौचालय का निर्माण नहीं हो सका है।
जाहिर है कि ओ डी एफ घोषित नगरनौसा पंचायत के मुख्य बाजार में खुले में शौच करने की प्रकिया स्थानीय प्रशासनिक अधिकारियों तथा जनप्रतिनिधियों के कार्य शैली पर सवालिया निशान खड़ा करता है।