Home आधी आबादी एक था अखबारों की नगरी का ‘महापापी ठाकुर’

एक था अखबारों की नगरी का ‘महापापी ठाकुर’

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बुलंदी देर तक किस शख्स के हिस्से में रहती है,बहुत उंची ईमारत हर वक्त खतरे में रहती है ….मुनव्वर राणा की यह पंक्ति ‘मुजफ्फरपुर महापाप’ के मास्टर माइंड कहे जाने वाले ब्रजेश ठाकुर पर सटीक बैठती है।

पटना ( जयप्रकाश नवीन)। ब्रजेश ठाकुर कुछ दिन पहले तक ‘अखबारों की नगरी’ मुजफ्फरपुर का बेताज बादशाह कहलाता था। लेकिन एक पल में उसका साम्राज्य बिखर गया। उस शख्स पर अपने ही बालिका होम शेल्टर की लड़कियों से यौन शोषण के गंभीर आरोप लगे। जिसके बाद से वह जेल में है।

mahapapi brajesh thakur 2बिहार विधानसभा का दो बार चुनाव लड़ने वाले ब्रजेश ठाकुर को जब राजनीति में सफलता नहीं मिली तो वह अपने पिता राधामोहन ठाकुर की विरासत संभालने अखबार की दुनिया में आ गया।

बिहार का मुजफ्फरपुर जिसे आज भी ‘अखबारों की नगरी’ कहा जाता है। यहां सबसे ज्यादा अखबार और पत्रिकाएँ निकलती थीं। लेकिन इसी मुजफ्फरपुर में एक शख्स भी था, जिसका नाम राधामोहन ठाकुर था।  कहा जाता है कि उसके नाम पर 22 अखबार पंजीकृत था।

यह वह दौर था जब समाज में अखबार निकालना एक स्टेटस सिंबल माना जाता था। लेकिन पत्रकारिता में कुछ ऐसे तत्व भी घुस आएं थे, जिन्हें पत्रकारिता से मतलब नहीं बल्कि पत्रकारिता की आड़ में गोरखधंधा मुख्य उद्देश्य रहता था।

अख़बार निकालने के धंधे में ग़लत ढंग से कमाई का जरिया बना लिया गया था। अखबार निकालने के पीछे इनकी मंशा अख़बार का सर्कुलेशन बढ़ाकर बताना और बहुत कम प्रतियाँ छापना, फिर रियायती दाम पर अख़बार छापने के लिए मिले काग़ज़ को बाज़ार में बेच देना। साथ ही, नेताओं और अधिकारियों से सांठ-गांठ करके सरकारी विज्ञापन ऐंठना रहता था।

‘मुजफ्फरपुर महापाप’ का मास्टरमाइंड ब्रजेश ठाकुर के पिता राधामोहन ठाकुर ने 1982 में ‘प्रात:कमल’ अखबार का प्रकाशन शुरू किया था। जो पीआईबी से मान्यता प्राप्त बताया जाता है। इसका प्रकाशन अभी हाल तक हो रहा था।

लेकिन मुजफ्फरपुर बालिका यौन शोषण का मामला आने के बाद इस समाचार पत्र का प्रकाशन बंद हो गया। सरकार ने सरकारी विज्ञापन भी बंद करते हुए इसका पंजीकरण रद्द कर दिया है।

अब ब्रजेश ठाकुर से जुड़े समाचार पत्रों पर शिकंजा कसे जाने का सिलसिला शुरू हो गया है।

केंद्रीय पत्र सूचना कार्यालय के निर्देश पर हिंदी दैनिक ‘प्रातः कमल’, अंग्रेजी अखबार ‘न्यूज नेक्सट’ तथा उर्दू समाचार पत्र ‘हालात -ए-बिहार ‘ की भी जांच शुरू हो गई है।

केंद्रीय पत्र सूचना कार्यालय अब अखबारों के रजिस्ट्रेशन तथा नामों और उसे मिलने वाले विज्ञापनों सहित कई मामलों की जांच करेगी ।

इधर राज्य पीआईबी के डायरेक्टर ने मुजफ्फरपुर और समस्तीपुर में दोनों अखबारों के ऑफिस पर रेड कर छानबीन की। वही अंग्रेजी अखबार ‘न्यूज नेक्सट’ के पटना कार्यालय को भी खंगाला।

अपने पिता राधामोहन ठाकुर के अखबार संभालने की जगह ब्रजेश ठाकुर ने रियल स्टेट में पांव पसारना शुरू कर दिया। पटना के बाद मुजफ्फरपुर में भी रियल इस्टेट का कारोबार फलने लगा था।

1987 में वह एनजीओ से जुड़ गया। उसने ‘सेवा संकल्प’ और ‘विकास समिति ‘ नामक दो एनजीओ का गठन किया था। इसी एनजीओ की आड़ में उसने बालिका गृह होम के रखरखाव का टेंडर हासिल कर लिया। उसके और उसके परिवार के नाम पर लगभग 11 एनजीओ पंजीकृत है।

ब्रजेश ठाकुर ने राजनीति में भी अपनी किस्मत आजमायी। आनंद मोहन की पार्टी ‘बिहार पीपुल पार्टी(बीपीपी) के टिकट पर 2000 और 2005 का विधानसभा चुनाव भी लड़ा। लेकिन सफलता हाथ नहीं लगी।

राजनीतिक में असफलता हाथ लगने के बाद उसने अपना सारा ध्यान अपने पिता के अखबार ‘प्रातः कमल’और दूसरे अखबारों पर देना शुरू कर दिया।

उसने 2012 में ‘न्यूज नेक्सट’ से अंग्रेजी तथा ‘हालात-ए-बिहार ‘से उर्दू अखबार का प्रकाशन शुरू किया।

कहा जाता है कि उसका अखबार प्रातः कमल की तीन सौ से ज्यादा कॉपिया प्रकाशित नहीं होती थीं। लेकिन बिहार सरकार के सूचना एवं जनसंपर्क विभाग में प्रकाशन कॉपियों की संख्या लगभग 61 हजार दर्ज है। इसी आधार पर उसे हर साल तीस लाख का सरकारी विज्ञापन मिलता था।

मुजफफ्फरपुर की इस शर्मनाक घटना के बाद राज्य सरकार और पीआईबी नींद से जागती है। उसके अखबार का रजिस्ट्रेशन रद्द कर दी है। कुछ अखबारों को काली सूची में डाल दिया गया है।

बताया जाता है कि उसने अखबार की दुनिया में अपने बेटे और बेटी को संपादक बना रखा था । जिस मधु कुमारी का नाम इस मामले में सामने आ रहा है। वह उर्दू अखबार की संपादक भी थी, जो नाम बदलकर संपादक की कुर्सी संभाल रखी थी।

ब्रजेश ठाकुर पहले से ही मान्यता प्राप्त पत्रकार की सूची में था। उसके अखबार को पहले से ही पीआईबी ने मान्यता दे रखा था।

पत्रकारिता में ब्रजेश ठाकुर का रसूख इतना था कि बिहार में पत्रकारों को मान्यता देने वाली एजेंसी यानी प्रेस एक्रेडिटेशन कमिटी में भी ब्रजेश ठाकुर का सिक्का चलता था।

वह इस कमिटी का मेंबर भी था। किसे सरकारी मान्यता मिलेगी और किसे नहीं इसका फैसला भी वही करता था। यहाँ तक कि कार्यक्रम का आयोजन भी उसके ही हाथ होता था।

बहरहाल ब्रजेश ठाकुर  जिन अखबारों और एनजीओं के बलबूते अपना साम्राज्य कायम किए हुए था वह एक झटके में ताश के पते की तरह धरासायी हो गया।

सरकार को किसी भी अखबार या एनजीओं  को पंजीकृत करने से पहले विचार करना होगा कि भविष्य में अखबार और एनजीओं की आड़ में कोई दूसरा ब्रजेश ठाकुर पैदा न हो।

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