दिल्ली में दो विचार धाराएं एक पत्रकार की हत्या को कोर्ट बनाकर कबड्डी खेल रही है। पटना में सत्ता के दो धड़े टूट की कगार पर पहुंच गए कांग्रेस को अपने-अपने पाले में करने में जुटे हैं।
जाहिर है, इतने व्यस्त समय में इन बाढ़ पीड़ितों के बारे में कैसे बात की जा सकती है।
भले ही वे राहत शिविरों से फुसला कर, धमका कर अपने उन घरों में भेज दिए गए हों, जहां उनकी टूटी झोपड़ियां, चारो तरफ सड़ा हुआ पानी है, खाली बरतन हैं, सड़े अनाज हैं, तबाह हो चुकी फसलें हैं, भूख है, बीमारी है, अफवाह है। राहत की चर्चाएं हैं, दलालों के चक्कर हैं।
सर्वे करने वाले कह रहे हैं पानी में खड़े होकर फोटो खिंचवाई। कर्मचारी पूछ रहे हैं आपका आधार कार्ड कहाँ है, एकाउंट नम्बर क्या है।
अधिकारी घोषणा कर रहे हैं, एक आंगन में बसने वाले हर परिवार को एक ही परिवार माना जायेगा। जहां न घर में अनाज बचा है, न खेत में फसल।
जहां अगले नौ महीने तक फांका ही फांका है। जहां लोग सिर्फ राहत और मुआवजा बंटने का इंतजार कर रहे हैं।
बंटते ही गांव छोड़कर चले जायेंगे, दिल्ली, पंजाब, हरियाणा, अहमदाबाद, सूरत, मुंबई, बंगलौर, चेन्नई। उनकी बात कौन करेगा?