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दक्षिणी छोटानागपुर के कमिश्नरी भवन की अनोखी धरोहर: 176 साल बाद भी मजबूती से टिकी है लकड़ी की सीढ़ी

रांची (एक्सपर्ट मीडिया न्यूज नेटवर्क / नारायण विश्वकर्मा)। झारखंड में अंग्रेजों के जमाने की बनी कई बिल्डिंगों को तोड़कर उसे नया स्वरूप प्रदान किया गया है. पर उनके जमाने की लकड़ी की कोई सीढ़ी 176 साल बाद भी अभी तक टिकी है, यह अनोखी बात है.

Unique heritage of South Chotanagpurs commissionerate building Even after 176 years the wooden staircase is firmly established 1

छत पर जाने के लिए इस सीढ़ी का आज भी उपयोग किया जा रहा है. दिलचस्प बात ये है कि इस सीढ़ी की किसी तरह की मरम्मत या रंगाई-पुताई भी नहीं करायी गई है. आप जरूर जानना चाहेंगे कि आखिर ऐसी सीढ़ी कहां है?

176 साल पुराना है कमिश्नरी भवनः रांची के कचहरी चौक स्थित कमिश्नरी भवन में अंग्रेजों के जमाने की इस सीढ़ी को बने करीब 176 साल से अधिक हो गए हैं.

इस सीढ़ी को अभी तक मरम्मत की जरूरत नहीं पड़ी है. इतना ही नहीं कमिश्नरी भवन में आज भी कई ऐसी लकड़ी की मेज या दरवाजे हैं, जो अपनी मजबूती का अहसास करा रहे हैं. यहां की कुछ मेज के दराज में पीतल के सामान भी लगे हुए हैं.

आइए जानें कमिश्नरी भवन का इतिहासः कमिश्नरी भवन में अंग्रेज के जमाने के उपलब्ध रांची गजेटियर के अध्ययन से यह ज्ञात हुआ कि 1843 में तत्कालीन प्रधान प्रिंसिपल एसिस्टेंट टू द एजेंट ने अपना मुख्यालय लोहरदगा से रांची लाया गया था.

इसका लाभ कैप्टन आर ओसले को मिला. दस्तावेज के अनुसार ओसले ने अपना घर बनाने के लिए छोटानागपुर के महाराजा से चडरी बस्ती में तीन मील जमीन ली.

मकान निर्माण के लिए 1846 में रॉबर्ट ओसले ने 12 हजार रुपए की सरकारी राशि का गबन किया. इस गबन की जांच से प्रतिष्ठा हनन होने के कारण तत्कालीन एजेंट ओसले के बड़े भाई मिस्टर क्रॉफर्ड ( जिनका नाम आयुक्त के उत्तराधिकार पट्ट पर अभी भी अंकित है) ने  इसी कमिश्नरी भवन की बिल्डिंग के प्रथम तल पर आत्महत्या कर ली थी.

कैप्टन ओसले इस घटना के बाद पागल हो गया था. बाद में वह भुतहा तालाब (जयपाल सिंह स्टेडियम) में डूब कर मर गया. आजादी के बाद भारत सरकार अधिनियम 1858 के पारित होने के बाद यह अंग्रेजी हुकूमत का भवन छोटानागपुर कमिश्नर कहलाया।

1858 के बाद छोटानागपुर कमिश्नर कहलायाः उल्लेखनीय है कि भुतहा तालाब एवं रांची का बड़ा तालाब का निर्माण कार्य ओसले ने ही कराया था. यह लगभग 50 एकड़ भूमि में फैला हुआ था.

रॉबर्ट ओसले के मृत्युपरांत उनके द्वारा 1846 में निर्मित उनका आवास तत्कालीन इस्ट इंडिया कंपनी ने अपने कब्जे में ले लिया था. 1858 के बाद यह छोटानागपुर कमिश्नर के कार्यालय के रूप में तब्दील हो गया.

दस्तावेज में यह भी उल्लेखित है कि रांची शहर को पहले किशुनपुर के नाम से जाना जाता था. 1834 में जहां कैप्टन हेमलेट का कोर्ट चलता था, वहां अभी पीडब्लूडी का ऑफिस है.

बड़ा तालाब का निर्माण रॉबर्ट ओसले ने कराया थाः उल्लेखनीय है कि भुतहा तालाब एवं रांची का बड़ा तालाब का निर्माण कार्य रॉबर्ट ओसले ने ही कराया था. यह लगभग 50 एकड़ भूमि में फैला हुआ था.

ओसले के मृत्युपरांत ओसले द्वारा 1846 में निर्मित उसका आवास तत्कालीन इस्ट इंडिया कंपनी ने अपने कब्जे में ले लिया था. 1858 के बाद यह छोटानागपुर कमिश्नर के कार्यालय के रूप में तब्दील हो गया.

दस्तावेज में यह भी उल्लेखित है कि रांची शहर को पहले किशुनपुर के नाम से जाना जाता था. 1834 में जहां कैप्टन हेमलेट का कोर्ट चलता था, वहां अभी पीडब्लूडी का ऑफिस है.

कमिश्नरी भवन का चल रहा है मरम्मत कार्यः कमिश्नरी भवन की मूल सरंचना को यथावत रखते हुए पिछले 6 माह से कमिश्नर परिसर और भवन का मरम्मत कार्य चल रहा है. अंग्रेंजी काल में भवन की सभी दीवारें और छत चूना-सुर्खी से निर्मित की गयी है.

परिसर में स्थित कई पुराने पेड़ों को वन संरक्षक के सर्वे के बाद विहित प्रक्रिया अपना कर पेड़ों की कटाई-छंटाई की जा रही है. इसके अलावा भवन की रंगाई-पुताई भी चल रही है.

आयुक्त के प्रयास से हो रहा है कायाकल्पः अखंड बिहार के समय से लेकर झारखंड बनने के 21 साल बाद भी कमिश्नरी भवन और इसके परिसर को अपने हाल पर छोड़ दिया गया था.

वर्तमान प्रमंडलीय आयुक्त नितिन मदन कुलकर्णी के प्रयास से अब भवन का कायाकल्प किया जा रहा है. भवन की मूल संरचना से कोई छेड़छाड़ नहीं की जा रही है, बल्कि इसकी खूबसूरती को बरकरार रखा गया है.

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