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    Saturday, December 21, 2024
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      जयराम महतो और कल्पना सोरेन के उभार से सियासी गलियारों में भूचाल

      रांची (एक्सपर्ट मीडिया न्यूज)। झारखंड की राजनीति इन दिनों दो उभरते हुए चेहरों के इर्द-गिर्द घूमती नजर आ रही है। झारखंड लोकतांत्रिक क्रांति मोर्चा (JLKM) के सुप्रीमो जयराम महतो और झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) की विधायक एवं मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की पत्नी कल्पना सोरेन। विधानसभा चुनाव से पहले ये दोनों नाम पूरे राजनीतिक परिदृश्य में चर्चा का विषय बने हुए हैं। अपने आक्रामक राजनीतिक रुख और जनाधार के कारण ये दोनों नेता राज्य के सत्ताधारी और विपक्षी दलों के लिए गंभीर चुनौती बन चुके हैं।

      जयराम महतो: कुर्मी समुदाय का अगुआः जयराम महतो, जिनका प्रभाव कुर्मी समुदाय के बीच बढ़ रहा है, झारखंड की राजनीति में नए राजनीतिक ट्रेंड सेट कर रहे हैं। उनके नेतृत्व में JLKM ने विधानसभा चुनाव के लिए पहले ही छह उम्मीदवारों की घोषणा कर दी है, जिसमें जयराम स्वयं डुमरी विधानसभा से चुनाव लड़ेंगे। डुमरी JMM का गढ़ रहा है, और यहां जयराम का सीधा मुकाबला बेबी देवी से होने की संभावना है, जो कि सरकार में मंत्री हैं।

      जयराम महतो की बढ़ती लोकप्रियता ने न केवल कुर्मी वोट बैंक को आकर्षित किया है, बल्कि उनकी आक्रामक जनसभाएं और भाषण शैली युवाओं के बीच भी गहरी पैठ बना चुकी है। इस चुनावी मैदान में उनका आना भाजपा-आजसू गठबंधन और JMM दोनों के लिए एक चुनौती बन चुका है।

      राजनीतिक पंडितों का मानना है कि जयराम की पार्टी कांग्रेस, भाजपा और आजसू के वोटों में सेंधमारी कर सकती है, जिससे चुनाव परिणाम अप्रत्याशित हो सकते हैं। आंतरिक सर्वे के अनुसार JLKM 8-10 सीटों पर जीत हासिल कर सकती है, जो राज्य की राजनीतिक गणित को बदल सकता है।

      कल्पना सोरेन: झामुमो की नई ताकतः दूसरी ओर कल्पना सोरेन ने झारखंड की राजनीति में एक नया अध्याय लिखा है। उन्होंने अपने पति और मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के जेल जाने के बाद से झामुमो को मजबूती से संभाला और अपनी नेतृत्व क्षमता का परिचय दिया। गांडेय से उपचुनाव जीतने के बाद उन्होंने राजनीति में अपनी तेज़ी से बढ़ती उपस्थिति दर्ज कराई। कल्पना की कुशलता और व्यक्तित्व ने उन्हें झामुमो का एक मजबूत स्तंभ बना दिया है और वे इस समय पार्टी के चुनावी अभियान का प्रमुख चेहरा हैं।

      विश्लेषकों का मानना है कि कल्पना की वजह से झामुमो विधानसभा चुनाव में पहले की तुलना में 10-15 अतिरिक्त सीटें जीत सकती है। झारखंड की राजनीति में इतनी जल्दी इतनी बड़ी पहचान बनाना किसी भी महिला नेत्री के लिए दुर्लभ है और कल्पना ने यह साबित किया है कि वे इस राजनीति में लंबे समय तक रहने वाली हैं।

      जयराम महतो और कल्पना सोरेन की राजनीतिक ताकत: भीड़ खींचने का हुनरः चुनावी समीकरण में इन दोनों नेताओं की सबसे बड़ी खासियत यह है कि दोनों भीड़ खींचने में माहिर हैं। जयराम महतो के पास कुर्मी समुदाय का मजबूत समर्थन है, जो कि राज्य की आबादी का लगभग 15 प्रतिशत है। जबकि कल्पना सोरेन का करिश्मा झामुमो के साथ महिलाओं और आदिवासी समुदाय के बड़े हिस्से को आकर्षित कर रहा है। वे चुनावी सभाओं में विपक्षी दलों के लिए मुश्किलें खड़ी कर रहे हैं।

      वहीं कल्पना सोरेन के नेतृत्व में झामुमो की स्थिति मजबूत होती जा रही है। विश्लेषक मानते हैं कि जयराम महतो इस चुनाव में भाजपा और आजसू के वोट बैंक को नुकसान पहुंचा सकते हैं, जबकि कल्पना सोरेन झामुमो को एक नई ऊंचाई पर ले जाने में सक्षम हैं।

      डुमरी में दिलचस्प लड़ाईः डुमरी विधानसभा इस बार का हॉटस्पॉट बनने जा रहा है। जयराम महतो ने यहां से चुनाव लड़ने की घोषणा करके JMM की मौजूदा विधायक बेबी देवी के लिए एक बड़ी चुनौती खड़ी कर दी है। यह क्षेत्र कुर्मी बहुल है और इसलिए यहाँ कुर्मी उम्मीदवारों के बीच मुकाबला होना लगभग तय है।

      डुमरी में इस बार भाजपा-आजसू गठबंधन से यशोदा देवी को उतारा जा सकता है, जिन्होंने पिछली बार बेबी देवी को कड़ी टक्कर दी थी। हालांकि अब यह देखना बाकी है कि आजसू इस बार दुर्योधन महतो को मौका देती है या नहीं।

      चुनावी नतीजों पर प्रभावः राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि आगामी विधानसभा चुनावों में किसी भी पार्टी को स्पष्ट बहुमत मिलना मुश्किल है। ऐसे में जयराम महतो और कल्पना सोरेन की राजनीतिक ताकतें चुनाव परिणामों को निर्णायक रूप से प्रभावित कर सकती हैं। झारखंड के मतदाता इस बार चुनावी दांव-पेंच में बड़ी भूमिका निभाएंगे और इन दोनों नेताओं का उभार सभी दलों के समीकरण को बदल सकता है।

      यह देखना दिलचस्प होगा कि भाजपा, कांग्रेस, आजसू और JMM जैसे प्रमुख दल इन उभरते हुए नेताओं की काट के लिए क्या रणनीति अपनाते हैं या फिर वे सब कुछ जनता के फैसले पर छोड़ देते हैं।

      वेशक झारखंड की राजनीति में जयराम महतो और कल्पना सोरेन न केवल चुनावी समीकरणों को बदलने की क्षमता रखते हैं, बल्कि भविष्य में राज्य की सत्ता पर भी अपनी मजबूत पकड़ बनाने के संकेत दे रहे हैं। दोनों के पास भीड़ खींचने का जादू है, जो चुनावी नतीजों को अप्रत्याशित दिशा में मोड़ सकता है।

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