“भगवान किसी से कुछ छीनता है तो बदले में बहुत कुछ देता भी है। जितेंद्र पटेल के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ। हाथ-पैर से लाचार जितेंद्र में भगवान ने कई प्रतिभाएं कूट-कूटकर भर दी…
एक्सपर्ट मीडिया न्यूज डेस्क। दिव्यांगता की चुनौतियों को दरकिनार कर जितेंद्र ने कड़ी मेहनत से अपनी प्रतिभा को परवान चढ़ाया और झारखंड दिव्यांग क्रिकेट टीम के कप्तान बन गए। लेकिन सरकार की ओर से आजीविका को लेकर कोई मदद नहीं मिली।
जैसे-तैसे निशक्तता पेंशन योजना का लाभ मिलना शुरू हुआ। परन्तु पिछले सात महीनों से पेंशन का भी भुगतान नहीं हुआ तो खाने के लाले पड़ने लगे। लॉकडाउन ने स्थिति को और गंभीर बना दिया तो खेल का मैदान छोड़ खेतों में उतरना पड़ा।
जितेंद्र बताते हैं कि परिवार में दो भाइयों के बीच आठ बहनें हैं। चार की शादी हो चुकी है। चार की शादी करनी है। बड़े भाई ने साथ छोड़ दिया तो सभी की जिम्मेवारी उसके कंधे पर आ पड़ी।
इन तमाम परेशानियों के बीच भी वह क्रिकेट को लेकर सबसे ज्यादा संजीदा रहे। कई राज्यों में खेली गई क्रिकेट प्रतियोगिता में उन्होंने अपनी शानदार पारी से ट्रॉफी झारखंड के नाम दर्ज कराई।
वह अबतक कानपुर, गुवाहाटी, कोलकाता आदि जगहों में आयोजित क्रिकेट टूर्नामेंट में अपना जौहर दिखा चुके हैं। लेकिन राज्य के गौरव को चार चांद लगाने के बाद भी जितेंद्र बदहाली में ही जीता रहा। सरकार की उपेक्षा के कारण आजीविका चलाने के लिए पकौड़े तक बेचे।
जितेंद्र अकेले क्रिकेट के धुरंधर नहीं। तैराकी में भी लाजवाब हैं। इसके अलावा कई डांस प्रतियोगिता में भी अपनी प्रतिभा का लोहा मनवा चुके हैं। दिल्ली, मेरठ, कानपुर समेत कई शहरों और राज्यों में डांस का जलवा दिखाकर अवार्ड अपने नाम कर चुके हैं।
हाल ही में उन्हें मेरठ में शानदार प्रस्तुति के लिए अवार्ड से नवाजा गया है। जितेंद्र पांच बार कांवर लेकर बाबा धाम जल चढ़ाने जा चुके हैं। उन्होंने संकल्प लिया था कि वह ट्राई साइकिल से बाबाधाम जाएंगे और जल चढ़ाएंगे। लगातार पांच साल उन्होंने अपना संकल्प पूरा किया।
बहुमुखी प्रतिभा के धनी जितेंद्र बच्चों को कुछ समय तक नृत्य भी सिखलाया, वह भी नि:शुल्क। उनको अफसोस यह है इतनी सारी कलाएं जानने के बावजूद वह बिल्कुल उपेक्षित हैं। डांस इंडिया डांस टीवी शो में आने के बाद भी उनको कोई खास पहचान नहीं मिली।
वेशक जितेन्द्र की यह कसक जायज है कि चाहे उनका खेल हो या नृत्य हो, उसे देखकर लोग तारीफ तो करते हैं, लेकिन उसके बाद भूल जाते हैं। (साभारः रजरप्पा से राजेश कुमार की रिपोर्ट)