अररिया (एक्सपर्ट मीडिया न्यूज नेटवर्क)। फारबिसगंज…विश्व प्रसिद्ध साहित्यकार फणीश्वरनाथ रेणु का शहर…आमजन इसे रेणुमाटी कहते हैं…जहां दावे बड़े-बड़े होते हैं…लेकिन हकीकत कुछ और ही होता है…खासकर सरकारी महकमा नगर परिषद का…कार्यशैली ऐसी की बरसात से पहले जल जमाव की समस्या से निबटने के बड़े-बड़े दावे और जब बारिश हुई तो खुल गयी सारी पोल।
जी हां फारबिसगंज शहर,नेपाल के सीमा से सटा औद्योगिक शहर। जहां विगत कुछ सालों में बरसात के समय क्या कहे हल्की बारिश में भी शहर डूब जाता है और फिर तीन दिनों से तो इलाके में मूसलाधार बारिश हो रही है। हल्की बारिश में डूबने वाले शहर का बरसात के मौसम में क्या आलम होगा,आसानी से समझा जा सकता है।
फारबिसगंज शहर का मुख्य बाजार सदर रोड है,जो पटेल चौक से लंबा पोस्ट आफिस चौक तक फैला हुआ है। सड़क के दोनों ओर सैकड़ों जरूरत की सारी चीजों के दुकान हैं।
लेकिन क्या मजाल की बरसात में दुकान में खुल जायेगा और यदि खुल भी गया तो क्या मजाल की कोई दुकान के दहलीज तक सुरक्षित पहुँच जाय। कदापि सम्भव नहीं है।
फारबिसगंज शहर दो दिनों से बरसात के पानी मे पानी-पानी है। सदर रोड वाली मुख्य सड़क पर ढाई से तीन फीट पानी जमा है।जिसके कारण आम जनजीवन प्रभावित हो गया है।
दुकानों और घरों में नाला का गंदा पानी घरों में प्रवेश कर गया है और लोगों की मुश्किलों का आलम यह है कि ऊपर से इन्द्र देव की मेहरबानी तो नीचे नगर परिषद के कार्यशैली की कुर्बानी का खामियाजा आमजनों को भुगतना पड़ रहा है।
फारबिसगंज शहर के बरसात के पानी मे डूबने से आहत शहरवासी नगर परिषद की कार्यशैली पर अपना भड़ास निकाल रहे हैं। न केवल बाजार के मुख्य सड़क बल्कि अगल-बगल के मंडियों में भी बरसात के कारण गंदगी और कीचड़ ने लोगों का जीना मुहाल कर दिया है।
बरसात और जल जमाव के कारण दुकानदार अपने प्रतिष्ठानों को बंद कर रखा है और फिर सवाल भी है तो खोले भी तो ग्राहक वाटरपार्क वाला मजा लेकर दुकान तक आने वाले हैं नहीं।
फारबिसगंज नगर परिषद समेत अनुमण्डल प्रशासन बड़े ही एक्टिव मोड में शहर को जल जमाव से मुक्ति दिलाने का दावा कर रहे थे। बकायदा नाला के उड़ाही के साथ सीताधार और किरकीचिया स्थित जल अधिग्रहण क्षेत्र की सफाई करवाने का दावा कर इस साल शहर को डूबने से बचाने का दावा कर रहे थे। लेकिन बरसात ने नगर परिषद और अनुमण्डल प्रशासन के सभी दावों की कलई ही खोलकर रख दिया।
अब तो साफ-सफाई और लाखों के खर्च को लेकर सवाल भी खड़े होने लगे हैं। आखिर बरसात से पहले साफ-सफाई और उड़ाही के नाम पर किये गये, खर्च कहीं लूट की योजना से तो नहीं की गई।
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